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भोजपुरी कहानिया

"मोतीझील केंद्र"

मोतीझील केंद्र
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नमस्कार! यह दूरदर्शन का मोतीझील केंद्र है, और आप देख रहे हैं हमारा प्रायोजित कार्यक्रम "मुद्दों का चीरहरण"। मैं श्रीमुख पार्थ आप सब का स्वागत करता हूँ।
आज की चर्चा में हमारे साथ हैं राष्ट्रवादी पार्टी से भकचोन्हर सिंह, और धर्मनिरपेक्ष पार्टी से श्री कबूतर महतो। इनके अतिरिक्त चर्चा में शामिल हैं महान चिंतक श्री आलोक पाण्डेय जी, और वरिष्ठ तो नहीं, पर गरिस्ट व्यंग्यकार और मेरे पिता सर्वेश तिवारी श्रीमुख।
तो सबसे पहले हम चलेंगे श्री भकचोन्हर जी के पास। तो भकचोन्हर जी, राष्ट्रपति चुनावों में आपने दलित उम्मीदवार उतार कर जो छक्का मारा था, उसको कैच करने के लिए विपक्षियों ने भी दलित उम्मीदवार उतार दिया है। अब आप क्या कहेंगे?
भकचोन्हर- देखिये, हम पक्के छक्केबाज हैं। हमारे छक्के को कैच करना नामुमकिन ही नहीं असंभव है।
- रुकिए रुकिए, नामुमकिन और असंभव दोनों समान अर्थ वाले शब्द हैं भकचोन्हर जी, क्या आपको इतना भी नहीं पता?
- अरे इतना पता होता तो हम नेता होते? खैर, हम कह रहे थे कि इनका जो दलित है, वह वास्तव में दलित नहीं "दलितुली" है। उसकी दलितायी में न वह ताव है न भाव। आप हमारे दलित को देखिये, उनका मुह देख कर ही लगता है वे महान दलित है। उनके हाव भाव से ही दलितायी टपकती है। ऐसा लगता है कि कुछ ही देर पहले उन्हें दला गया है।और इनका जो दलित है उसके तो मुह से ही सामंतवादी झलक आती है। इनका दलित नकली है, हमारा दलित असली है।
कबूतर- ख़बरदार जो आपने हमारे दलित को नकली कहा तो, हम अभी आपको दल देंगे। आप समझते क्या हैं? आपका दलित भी कोई दलित है, वह तो इतना अदलित है कि उसने आज तक खुद को दलित कह कर वाह वाही न लुटी। आप हमारे दलित को देखिये, ब्राह्मण से शादी करने के बाद भी उसने दलितायी नहीं छोड़ी। उन्होंने दलितायी को ओढ़ रखा है, युग बदल जाये, लोग मंगल पर चले जाएं, पर हमारा दलित दलित ही रहेगा। अब ऐसे दलित के सामने इनका दलित तो पानी भरने लायक भी नहीं।
भकचोन्हर- आपकी मति मारी गई है। हमारे दलित तो इतने दलित हैं कि उनके ल में दीर्घिकार है।
कबूतर- अरे हमारी दलित तो इतनी दलित हैं कि उनको देख कर हमारी अध्यक्षा के आँख से आंसू निकल पड़ते हैं।
भकचोन्हर- हमारे दलित तो इतने दलित हैं कि आज तक कोई चुनाव नहीं जीते।
कबूतर- हमारी दलित तो देश के सबसे दलित राज्य से आती हैं, इस तरह वे दलित नहीं दलित स्क्वायर सिद्ध होती हैं।
- अरे ज्यादा फुटुर फुटुर मत बोलो, नहीं तो मार के गोबर काढ़ देंगे।
-अबे तू चुप, ज्यादा बोलेगा तो तेरा थुथुर फोर देंगे।
श्रीमुख पार्थ- अरे चुप हो जाइये महानुभावों, अन्यथा आपके पाकिस्तान पर इतना इजराइल गिराएंगे कि आपका अंग अंग बलूचिस्तान हो जायेगा।
खैर, अब हम चलेंगे महान चिंतक श्री आलोक पाण्डेय जी के पास। पाण्डेय जी, आपको क्या लगता है, ये दोनों लोग जो देश के उच्च पदों पर रह चुके हैं उन्हें दलित कहना कहाँ तक उचित है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को उनकी योग्यता की जगह उनकी जाति के लिए नामित करना क्या लोकतंत्र का पतन नहीं दिखाता?
पाण्डेय- देखिये पार्थ जी, सावण्य में लावण्य हो न हो, दालित्य का लालित्य अद्भुत होता है। लोकतंत्र में जिसने भी एक बार दालित्य का स्वाद चखा, वह युगों युगों तक दालित्य ओढ़ कर रहता है। तुम्हारे पिता श्रीमुख का ही एक शेर है-
दलितायी कुछ चेहरों का पुस्तैनी पेश है,
प्रभुताई से भी इसमें बदलाव नहीं आता।
वैसे मुझे लगता है कि देश में हर राजकीय पद को दलितों के लिए आरक्षित कर देना चाहिए। वैसे भी, सवर्ण नेताओं ने आज तक ऐसा कौन तीर मार दिया जो दलित नहीं मार सकते? और रही बात योग्यता के स्थान पर जाति की चर्चा की, तो लोकतंत्र की चर्चा नैतिक नहीं अवसरवादी होती है।
पार्थ- बहुत अच्छा। अब हम चलेंगे श्रीमुख जी के पास। तो हे तात, आप इस विषय में क्या कहेंगे?
श्रीमुख- देखो भई, देश के सर्बोच्च पद पर किसी दलित का होना सुखद है, पर उसका चयन सिर्फ इस लिए होना क्योंकि वह दलित है, यह दुखद है। पर सुखद से दुखद की ओर की अंतहीन यात्रा का नाम ही लोकतंत्र है, सो मुझे यह बिलकुल भी अप्रत्याशित नहीं लगता।
पार्थ- बहुत अच्छा। अब हम इस चर्चा को यहीं विराम देंगे क्योंकि हमें अब बेटी बचाओ के विज्ञापन के साथ साथ सन्नी लियोनी का भी विज्ञापन दिखाना है। हम फिर मिलेंगे अगले दिन, तब तक के लिए सा रा रा रा

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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