राकेशवा की डायरी का एक और पन्ना
BY Suryakant Pathak24 Jun 2017 2:30 PM GMT

X
Suryakant Pathak24 Jun 2017 2:30 PM GMT
कुछ ज्यादा नहीं बदला तुम्हारे जाने के बाद से बस थोड़ा सा भूलने लगे हैं , पर फिर भी न जाने क्यों तुमको नही भूल पा रहें हैं ।............
काली मिर्च - लाल मिर्च , जीरा - अजवाइन , काला नमक - सेन्हा नमक ......... इन सब के बीच भेद समझने में ही कई दिन लग गए थे । अब पहले ही देख लो तुम क्लचर लगा के कहाँ भूल जाती थी , ये हम तुम्हें याद दिलाते थे , ये अलग बात है कि तुम अक्सर अपने सूट के नीचे ही लगा के भूलती थी.............और अब हम बाल झार के कंघी कहाँ रख देते है ये हमे खुद नही याद रहता , फिर अपनी उंगलियों से बाल झार के काम चला लेते है , ये सोचते हुए की हटाओ यार बाल कौन देखेगा । ............. याद करते हैं हम पानी की उन अविरल बूंदों को जो उन्मुक्त हो कर हमारे चेहरे पे गिरा करती थी , जब तुम अपने बालों को सुखाती थी , जग तो हम भी पहले ही जाते थे पर बस अच्छा लगता था इसी लिए सोने का नाटक करते थे , और तुम्हे लगता था कि हम आलसी हैं .......................
पता है जब तुम हज़ारों सवाल करती थी ना , और मैं चुप हो जाता था ...........जब तुम साथ चलते हुए बारिश में टहलने की बात करने लगती थी और मैं रुक जाता था................... बस उसी पल तुम भी पढ़ ली होती मेरे मौन को , बस उसी पल रुक गई होती तुम भी मेरा हाथ पकड़ के मेरे साथ तो शायद हो जाता हमारा भी अद्वैत मिलन ।
_____________
शायद ये मेरा आखिरी जन्म हो , और हमने अपने पिछले छियासी हज़ार योनियों में सिर्फ तुम्हारा ही रेखा चित्र उकेरा हो अपने मन मस्तिष्क पे और अब जब इस जनम में तुम्हे देखा हो तो शायद उस रेखा चित्र को रंग मिल गया हो ......शायद इस लिये ना भूल पा रहें हो तुम्हे................
~ हिमांशु सिंह
Next Story