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भोजपुरी कहानिया

"फिर एक कहानी और श्रीमुख"

फिर एक कहानी और श्रीमुख
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लाखों सेकेण्ड पूर्व की घटना है, एक बार शिवेंद्र मोहन सिंह ठाकुर साब को किसी पंडित ने कह दिया- ठाकुर साब! आपकी कुंडली में राहुल गांधी योग चल रहा है। यदि आपने शीघ्र ही विद्वान ब्राह्मणों को भोजन न कराया तो आपका बेड़ा गर्क हो जायेगा, आपकी सम्पति का कांग्रेसीकरण हो जायेगा, आपके हाथी-घोड़े लालू संतति की सम्पति की तरह जब्त हो जायेंगे। आप पूरी तरह से देवगौड़ा हो जाएंगे।
ठाकुर साहब ठहरे धर्म भीरु आदमी, उन्होंने तुरंत ब्राह्मण भोज की व्यवस्था की, और अपनी जानकारी के सर्वश्रेष्ठ विद्वान ब्राह्मण द्वय नीरज मिश्रऔर कपिल देव को भोजन के लिए आमंत्रित कर दिया।
अब नीरज मिश्र और कपिल देव ठहरे महाभुक्खड़, वे शाम के आमंत्रण पर दोपहर में ही चहुँप गये। ठाकुर साब बेचारे अति प्रसन्न हुए, चाकरों से ब्राह्मणों का चरण धुलवाया; आरती उतरवाई, उसके बाद मिष्ठान चखवाया। भोजन में अभी घंटो शेष थे, सो विप्रों ने अपना भाव बढ़ाने के लिए धर्मशास्त्र छेड़ दिया। ठाकुर साहब ने पूछा- अच्छा देवताओं, ईश्वर क्या है?
नीरज मिश्र मन ही मन बोले- अरे बुड्ढे, ये जो तेरे शिल्क के कुर्ते की जेब से दो हजार का नोट झांक रहा है न, वही ईश्वर है। पर प्रकट में बोले- देखिये यजमान, केनोपनिषद में लिखा है-
यद्वाचानभ्युदितं येन वागभ्युद्यते।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते।।
अर्थात- जिसे वाणी द्वारा नहीं बताया गया बल्कि जिसकी शक्ति से वक्ता बोलता है, उसे ही तुम ब्रह्म जानो।
ठाकुर धन्य धन्य कर उठे। उन्होंने जेब से दो हजार का नोट निकाल कर नीरज के चरणों में रख दिया और बोले- धन्य हैं आप विप्रवर, आपके आने से मेरा दुआर धन्य हो उठा।
ठाकुर की यह खुशी कपिल मुनि को खल गयी, वे पिनक कर बोले- अजी काहे का धन्य, ये सब बाभनों के चोंचले हैं। सच तो यह है कि ईश्वर ब्राह्मण के पेट में है, बाभन खुश तो ईश्वर खुश।
नीरज को लगा जैसे कपिल मुनि ने उनकी बात नहीं नाक काट दी हो। वे पिनक कर बोले- इट्स ए हाई लेवल डिबेट डार्लिंग, यु कांट कैच इट।
अब कपिल मुनि पिनके, बोले- अजी काहे का हाई लेबल? आप का लेबल खूब जानते हैं हम, दिन भर महिलाओं के इनबॉक्स में सोभान अल्ला सोभान-अल्ला करते रहते हैं, चले हैं विद्वान बनने।
नीरज का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया। वे बोले- अरे तो आपकी क्यों फट रही है? हममें कुछ बात है तभी तो मुझे हाथों हाथ लिया जाता है।
कपिल- अजी बात क्या है, बिना मूंछ के आदमी, लगता है कि मर्द ही नहीं है। चले हैं बात बताने।
नीरज- आ हहा, अपनी मुछ के फेर में रहिये न, लगता है कि मूंछ नहीं बिल्ली की पूंछ है। और आपकी मर्दानगी खूब जानते हैं हम। चमारिपट्टी में ससुराल है न आपकी, वहां के सारे बूढ़े मिल कर दामाद को कैसे हुलुलुलु खेलाते हैं, खूब जानता हूँ मैं। चले हैं मर्द बनने।
बात बिगड़ रही थी। ठाकुर साब बीच बचाव के लिए बोले- अरे विप्रगण, यूँ गदहों की तरह मत लड़िये, शांत हो जाइये।
नीरज गरजे- अजी शांत क्यों हो जाएं, देख नहीं रहे यह आदमी किस तरह लड़ रहा है?
कपिल गरजे- हम लड़ रहे हैं कि आप लड़ रहे हैं। मुह नहीं देखते अपना, लगता है जैसे कोई चूसा हुआ कलकतिया आम हो।
नीरज- ओहोहो.. आप अपना मुह न देखिये, लगता है जैसे मायावती के ट्रिपल एक्स ब्वायफ्रेंड हैं।
झगड़ा बढ़ता देख कर शिवेंद्र जी ने नौकर को इशारा किया, नौकर चूल्हे पर हँसुआ गर्म करने लगा।
इधर कपिल गरजे- ज्यादा तमाशा न कीजिये, नहीं तो आपका सारा नक्शा बिगाड़ देंगे। ब्राह्मण का ब तक जानते नहीं, चले आये खाने।
नीरज- तो आप कौन से वशिष्ठ मुनि के अवतार हैं, कभी आज तक संध्या गायत्री किये हैं?
कपिल- ओहोहो, आप तो जैसे रोज ही वेद की ऋचा रचते हैं। हम कितने भी ख़राब हैं तो आपसे ज्यादा जानते हैं।
नीरज- अच्छा चलिये, हम आपको सच्चा ब्राह्मण मान लेंगे, आप केवल शंख बजा कर दिखा दीजिये।
कपिल देव जी का एकाएक खून सूख गया। बोले- हम क्यों शंख बजाएं।
नीरज- क्यों? आप बजा कर दिखाइए तो, हम तभी आपको ब्राह्मण मानेंगे।
कपिल- आप हमको ब्राह्मण मत मानिये, हम दलित सही, पर हम शंख नहीं फूकेंगे।
अचानक शिवेंद्र मोहन सिंह ने राइफल की नली कपिल महाराज की छाती से सटा कर कहा- शंख तो अब आपको फूंकना ही होगा महाराज, बरना जान जायेगी। यह लीजिये शंख और फूंकिये।
राइफल की नली और जान का भय, कपिल बाबा ने शंख लिया और अपनी समूची ताकत से फूंक दिए। लोगों ने सुना, एक साथ दो दो शंखों की ध्वनि गूंज उठी थी। सबने देखा- धरा पीतवर्णी हो गयी थी।
शिवेंद्र गरजे- रामलाल, जल्द से हँसुआ ला कर इस दुष्ट का पाकिस्तान दागो, इसने नाश कर दिया।
कपिल और नीरज ने एक दूजे को देखा और शताब्दी एक्सप्रेस की गति से भागे, पर पकड़े गए।
फिर?
मत पूछिए, दोनों तबसे लंगड़ा कर चलते हैं।

मोतीझील वाले बाबा
आर्यावर्त.......
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