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भोजपुरी कहानिया

"अब के सजन सावन में....."

अब के सजन सावन में.....
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" गांव में के के रहेला भइया?" फर्नीचर मिस्त्री अजय पूछता है।
उसकी उम्र करीब 25 साल होगी पर बात में भोलापन साफ़ साफ़ दिख रहा है। आज वह अपने बड़े भाई के साथ मेरे घर फर्नीचर का काम करने आया है। थोड़ी देर काम करने और उसके अपने भाई के साथ बात करने के बाद मुझे पता चल गया कि वह भी मेरे ही प्रदेश का है।
फिर क्या हम लोगो की बातचीत भोजपुरी में शुरू गयी। मेरी एक आदत है। जैसे ही मुझे पता चलता है कि सामने वाला भोजपुरिया है बिना इसकी परवाह किये मै अपनी मातृभाषा में बात करना शुरू देता हूँ कि सामने वाला मुझे गवाँर समझेगा। हालाँकि मुझे पता है कि भोजपुरिया लोगो का एक बड़ा वर्ग ऐसी सोच रखता है।
"गावं त केहू ना रहेला हो।" मै थोड़ा मायूसी से कहता हूँ "परिवार बहुत छोट बा। अब एइजा रोटी रोजी खातिर बानी त ओइजा परिवार के देखी।" मै कहता तो नहीं हूँ पर फिर भी अपने हाव भाव से जरूर जता देना चाहता हूँ कि गांव छूटने की कितनी कसक मेरे अंदर है।
"तहरा परिवार कहाँ रहेला?" मै पूछता हूँ।
"हमार परिवार त गाँवे ही रहेला।" यह कहते हुए उसके चेहरे पर संतोष और उदासी का मिश्रित भाव है।
कुछ देर बाद कुछ सामान लाने के लिए वह नीचे चला जाता है।
उसके जाते ही मेरे बैडरूम में चार्जिंग के लिए लगे उसके मोबाइल का रिंग टोन बज उठता है - अब के सजन सावन में ......"
रिंग टोन सुनके घोर परन्तु सुखद आश्चर्य होता है। चोय चोय वाले ज़माने में जब भोजपुरी प्रदेश के युवको के आदर्श खेसारी लाल और कल्लुआ जैसे संस्कृति विनाशक है, वहां ऐसी रिंग टोन रखना साबित करता है कि सभी अंडे अभी ख़राब नहीं हुए है लेकिन सड़े हुए अंडो के साथ रहने के कारण शायद उन्हें भी सड़ा मान लिया गया है।
लेकिन इस गाने का अर्थ सिर्फ अजय जैसे असंख्य भोजपुरी भाषी लोगो पर ही सटीक नहीं बैठता जो हर साल रोजी रोटी के तलाश में अपने घर परिवार, बीबी से दूर सावन व्यतीत करते है और बिरह की आग में जलते है बल्कि ये गाना मुझ जैसे प्रवासी पर भी उतना ही सटीक बैठता है जो अपने परिवार के साथ बाहर बस गया है। जब जब सावन आता है हमारा भी मन कुहुक उठता है गांव में उन पलो को याद कर और ऐसे लगता है जैसे गांव का कण कण, बाग़ बगीचे, ताल तलैया, पुल पुलिया, धान के छोटे छोटे पौधों से पटे खेत सब हमारी बिरह में यही गीत गा रहे हैं। गांव के सावन में एक बार फिर से भीगने को मन छटपटाता है।
रिंग टोन बंद हो जाता है और कुछ देर बाद फिर बज उठता है और पुनः बंद हो जाता है। मतलब साफ़ है उधर से मिस्ड साल आ रहा है।
मै अंदर जाके देखता हूँ। किसी m भाभी का नंबर स्क्रीन पर है। मुझे लगता है कि शायद ये अजय की भाभी का मिस्ड कॉल है। मै मोबाइल बाहर ले जाके अजय के बड़े भाई को देता हूँ और कहता हूँ - तहार मिस्ड कॉल आवता।"
तभी फिर से वही रिंग टोन बज उठता है और अजय के बड़े भाई अपना हाथ पीछे खींच लेते हैं। उनके चेहरे की लज्जा साफ़ देखी जा सकती है।
मै फिर कहता हूँ और मोबाइल आगे बढ़ता हूँ पर उनकी वही प्रतिक्रिया रहती है। अब मुझे समझते देर नहीं लगती कि ये m भाभी कोई और है। मतलब उनकी पत्नी नहीं। शायद उनकी भवही होगी और इसी बजह से वो मोबाइल को हाथ नहीं लगा रहे हैं। एक पुराने परम्परा को जिसमे सिर्फ भवहि ही नहीं भसुर भी अपने भवहि से शर्माता है, उसे आज के खुली संस्कृति में भी जिन्दा रहना देख कर आनंद की अनुभूति होती है।
बदलाव बहुत हुआ है पर कुछ परम्पराये अभी भी जिन्दा है।
मै फ़ोन टेबल पर रख देता हूँ।
हर एक मिनट पर मिस्ड कॉल आना चालू है। पर मै क्या कर सकता हूँ।
कुछ देर बाद अजय वापस आता है।
"तहरा कवनो m भाभी के तबसे मिस्ड कॉल आवता" मै उससे कहता हूँ।
"भाभी नहीं हमरा वाइफ के फ़ोन ह" अजय शर्मा के कहता है "हमरा छोट भाई के नाम ह मंटू। हम नंबर मंटू के भाभी नाम से सेव कईले बानी।" कह के अजय मोबाइल लेके नीचे सीढ़ियों पर उतर जाता है।
"फ़ोन चार्जिंग में लगा हुआ था। हम नीचे गए थे। घर में सब ठीक है न।" सीढ़ियों से अजय की आवाज आती है।
अपनी पत्नी के साथ उसका हिंदी में बात करना दर्शाता है कि वह भी यह दिखा देना चाहता है कि भले ही उसका परिवार गांव में रहता है पर पिछड़ा हुआ नहीं है। वो भी एडवांस है।
कितनी घातक है ये एडवांस होने की चाहत, ये दिखावा जो अपने लोगो के बीच में होने के बाद भी अपने भाषा और संस्कृति से दूर ले जाती है। लोग एडवांस हो रहे है और इस एडवांस होने की कीमत चुका रही है मातृभाषा।
पर इसमें अजय क्या दोष। जब उच्च शिक्षित वर्ग भी इसी मानसिक विकृति का शिकार है फिर उसे मै क्यों दोषी मानू।
मेरे सामने गाँव का दृश्य जीवंत हो उठता है। मै जब भी गांव जाता हूँ और कोई मिलता है तो पूछता हूँ - काहो का हाल बा ?
और सामने से जबाब आता है - हमारा सब ठीक है। आप अपना बताईये।"
"अब के सजन सावन में ........" सीढ़ियों पर यही टिंग टोन फिर बज उठता है। शायद अजय का फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया था।


धनंजय तिवारी
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