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भोजपुरी कहानिया

'शिकायत" (कहानी)

शिकायत  (कहानी)
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नित्य की भांति अपने नर्सिंग होम के सभी वार्डों का चक्कर लगाते डॉ शशिशेखर शुक्ला जब जेनरल वार्ड में पहुचे तो एक बेड के पास ठिठक गए।बेड पर एक पचास पचपन साल की महिला पड़ी थी। डॉ शुक्ला ने ध्यान से उसके चेहरे को निहारा और सर घुमा लिया, कहीं ये.......
उन्होंने वार्ड में ड्यूटी पर तैनाद जूनियर डॉक्टर से पूछा तो पता चला- आज ही एडमिट हुई है, किडनी का केस है। दोनों पैर सूजे हुए हैं, पेशाब में परेशानी है, शायद अंतिम स्टेज..........
डॉक्टर ने फिर दिमाग पर जोर डाला, ये वही है... पर यहां??
डॉक्टर ने मरीज के कागजात चेक किये...... प्रगति शुक्ला। अटेंडेंट के नाम के स्थान पर दिनकर शुक्ला लिखा हुआ था, और सम्बन्ध बेटा। डॉक्टर को यकीन हो गया, ये वही है। डॉ शुक्ला तेजी से अपने केबिन में आए, नर्स से एक ग्लास पानी माँगा और खो गए।
वह पंद्रह अगस्त की पुर्व संध्या थी जब कुशीनगर के महात्मा बुद्ध इंटर कॉलेज में बुद्ध की मूर्ति के निचे एक दूसरे का हाथ पकड़ कर शशि और प्रगति ने साथ जीने मरने की कसम खाई थी। सन् 1974 के जे.पी आंदोलन ने देश की तरुणाई को पूर्ण आंदोलित कर दिया था। इसी आंदोलन में मैथ सेक्सन की सबसे प्रखर वक्ता प्रगति पाण्डेय ने आंदोलन के मंच पर जोश में आ कर बायलॉजी के सबसे तेज विद्यार्थी शशिशेखर शुक्ला का हाथ पकड़ कर हवा में लहराया और भावी इतिहास हमारा है का उद्घोष किया, तो वह नही जानती थी कि आंदोलन के मन्द पड़ते पड़ते ये दोनों हाथ इतनी प्रगाढ़ता से जुड़ जायेंगे।
आंदोलन के दिनों में ही इनकी कहानी हिट से सुपर हिट होती गयी और नई उम्र की इन चार आँखों ने अपने अंदर हजारों सपने बसा लिए। कॉलेज की लाइब्रेरी में दिनकर की रश्मिरथी खोजते खोजते जब दोनों के हाथ एक दूसरे से टकराये तो प्रगति ने मुस्कुरा कर कहा- अपने बेटे का नाम दिनकर ही रखेंगे। जवाब में शशि ने उसी मुस्कुराहट के साथ कहा- हाँ, शशि की गोद में दिनकर....... रश्मिरथी इफेक्ट।
नर्स के टोकने पर डॉक्टर की तन्द्रा भंग हुई। कहाँ खो गए सर?आपने पानी मंगाया था.....
ओह! अच्छा, रख दो और तुम जाओ...
डॉ शशिशेखर शुक्ला को याद आता है, फर्स्ट डिवीजन से इंटर पास करने के बाद जब घर पहुचे शशि तो पिता ने हाथ जोड़ कर कहा था- माफ़ करना शशि, मेरी दरिद्रता तुम्हारे और तुम्हारे सपनों के बीच आज भी वैसे हीं खड़ी है जैसे पहले खड़ी थी। इंटर तक तो ठीक था पर आगे का खर्च नही दे पाउँगा। तुम तो सब जानते ही हो, अच्छा रहेगा काशी संपूर्णानंद से संस्कृत पढ़ लो। कुछ नही तो पंडिताई तो कर ही लोगे। शशि सचमुच सब जानते थे। पंद्रह दिन के बाद जब शशि C.L.C निकालने कॉलेज पहुचे तो प्रगति अभी नही आई थी। प्रिंसिपल के ऑफिस पहुचे तो प्रिंसिपल ने अपने होनहार छात्र से उसके भविष्य के बारे में पूछा। मुरझाये शशि ने कहा- संपूर्णानंद काशी...।।
प्रिंसिपल प्रोफेसर सिन्हा ने आश्चर्य से पूछा- क्यों?
- पिता के पास आगे पढाई के लिए पैसा नही। संक्षिप्त सा उत्तर।
दो मिनट सोचने के बाद प्रोफेसर सिन्हा ने कहा- आगे पढ़ने की हिम्मत है?
शशि चुपचाप मुह देखने लगे।
प्रोफेसर ने फिर कहा- तोड़ सकोगे अपने सपनों के लिए सामाजिक बंधनो को?
शशि ने झटके से कहा- सब कुछ!
आधे घंटे बाद जब शशि प्राचार्य कक्ष से बाहर निकले तो फिल्ड में प्रगति ने दौड़ कर मुस्कुराते हुए शशि का हाथ पकड़ा- कैसे हो?
शशि ने सामान्य उत्तर दिया- अच्छा हूँ।
अब?
दिल्ली जा रहा हूँ, मेडिकल की तैयारी के लिए।
प्रगति थोडा सकुचाई, उसे शशि की आर्थिक दशा के बारे में पता था। शशि समझ गए, बोले- प्रो. सिन्हा के साथ। अब वे हीं मेरा सारा खर्च उठाएंगे।
प्रगति मुरझा सी गयी। बोली- फिर?
अब आगे का भविष्य उन्ही के हाथ में है, मुझे दुःख है प्रगति, तुम्हारे साथ न्याय नही कर पाउँगा।
प्रगति चुपचाप शशि के चेहरे की ओर देखती रही। उसके हाथ से शशि का हाथ जाने कब का सरक गया था।
शशि ने फिर कहा- मुझे माफ़ करना प्रगति, शायद समय को यही मंजूर है। मुझे भूल जाना।
वहां से आगे बढ़ कर गेट तक आने के बाद शशि ने मुड़ कर देखा था, प्रगति वहीँ खड़ी थी,मूर्ति की तरह।
आज डॉ शुक्ला भी अपने ऑफिस में वैसे हीं मूर्ति की तरह खड़े थे।
शशि ने प्रो.सिन्हा की कृपा से मेडिकल की पढाई पूरी की तथा सामाजिक बंधनो को तोड़ने वाले समझौते को निभाते हुए प्रो.सिन्हा की कुरूप सुपुत्री का पाणिग्रहण किया।
तीस वर्ष बीत गए। इन तीस वर्षों में डॉ शुक्ला कितनी बार घर गए, यह वे अंगुलियों पर गिन कर बता सकते हैं। इन दिनों में डॉ शुक्ला का अपना नर्सिंग होम खुल गया। उनके दोनों बेटे और दोनों बहुएं भी डॉक्टर हैं। उनका नर्सिंग होम शहर का सबसे बड़ा अस्पताल है। रही प्रगति, तो डॉ शुक्ला ने उसे कभी याद करने का प्रयास नही किया।
पर आज......
सर! वह 32 नम्बर बेड की पेसेंट प्रगति शुक्ला को देख लेते।
डॉ शुक्ला ने सर उठाया, जूनियर डॉक्टर था। बोले- क्या हुआ?
सर, लास्ट स्टेज है। दोनों किडनी ख़राब हो चुकी है। डायलिसिस से भी कोई फायदा होने वाला नही,पर उनका बेटा जिद कर रहा है।
डॉ शुक्ला की चेतना लौटी, झटक कर वार्ड में पहुचे। पेसेंट के चेहरे की तरफ देखा और बांह पकड़ कर नब्ज़ टटोलने लगे।
कैसे हो शशि?
डॉ शुक्ला का मुह खुला रह गया। तुम मुझे पहचान रही हो?
प्रगति के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट फैली, पर कुछ कहा नही।
डॉ शुक्ला ने कुछ सोचा और जूनियर डॉक्टर और नर्स वगैरह को बाहर जाने के लिए कह दिया। फिर औपचारिकता निभाई- कैसी हो?
-देख ही रहे हो।
-हाँ..... कैसे रही अबतक? तुमसे कभी मिल नही पाया! डॉ शुक्ला को बार बार अपना थूक निगलने में परेशानी हो रही थी।
प्रगति फिर मुस्कुरा कर रह गयी।
तुम्हारे पति क्या करते हैं? कहाँ हैं? पूछा शशि ने।
प्रगति फिर मुस्कुराई- डॉक्टर हैं।
डॉ शुक्ला की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पूछा- किससे की शादी? कौन हैं?
- शादी नही की।
- शादी नही की..... फिर बेटा?
- तुम्हे तो कुछ याद नही डॉक्टर...... पर मैंने बेईमानी नही की। देखो नाम भी वही रखा जो तुम चाहते थे,
- क्या..? दिनकर...?
- उस दिन यही कहने तो आई थी शशि.... पर तुम तो...... खैर छोडो....।
डॉ शुक्ला ने जोर से प्रगति का हाथ पकड़ लिया, पर कुछ बोल नही सके। सिर्फ उसके चेहरे की तरफ देखते रहे।
कुछ देर बाद पूछा- बेटे को क्या बताया?
पिता के नाम के अतिरिक्त पूरी कथा जानता है। पर उसे अपनी माँ से कोई शिकायत नही।
डॉ शुक्ला फिर चुप हो गए। कुछ देर बाद फिर बोले- और तुम्हे?
- क्या
- शिकायत??
प्रगति के चेहरे पर एक मरी हुई मुस्कान फिर तैर गयी, डॉक्टर ने सर झुका लिया।

* * * *
अचानक वार्ड का दरवाजा ढकेल कर दिनकर अंदर घुसा, डॉक्टर! मेरी माँ को बचा लीजिये प्लीज......!!
आप.... आप मेरी माँ को जानते हैं?
डॉ शुक्ला ने थूक निगल कर कहा- हाँ तुम्हारी माँ मेरी क्लास मेट रही है।
प्रगति के चेहरे पर फिर मुस्कुराहट तैर गयी, पर शायद यह आखिरी थी। उसकी आँख धीरे धीरे बन्द होने लगी।
डॉ शुक्ला ने चिल्ला कर जूनियर डॉक्टरों को बुलाया। डायलिसिस की तैयारी करो जल्द......!!
उनके हाथ से प्रगति का हाथ धीरे से सरक गया।
सर....
क्या है? जल्दी करो...
सर.... बेकार है सर.... शी इज नो मोर।
डॉ शुक्ला धम्म से बैठ गए। अचानक सामने दीवाल पर टंगे कैलेंडर पर नजर गयी, आज भी चौदह अगस्त था।
डॉ शुक्ला कभी प्रगति के मरे चेहरे की ओर देखते कभी दिनकर की ओर।फिर अचानक उठ कर दिनकर के पास गए और उससे लिपट कर फफक पड़े...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
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