हास्य लेख - (बबिता )
BY Suryakant Pathak4 July 2017 7:49 AM GMT

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Suryakant Pathak4 July 2017 7:49 AM GMT
-"इ बबिता के ह जी? "
-"केहू ना ।"
रोज रोज के वाट्स अप व फेसबुक पर चर्चा -ए -आम से त्रस्त नीतू भउजी एक दिन आलोक पाण्डेय का पैर दबाते हुए पुछ बैठी ।आलोक पांडेय सोचे कि बस दो शब्द में उत्तर देकर वो नीतू भउझी के जटिल प्रश्न से पीछा छुड़ा लेंगे ।लेकिन अचानक एक अप्रत्याशित घटना घटी जिसकी कल्पना आलोक पांडेय जी ने कभी नहीं किया था । यह उत्तर सुनते ही नीतु भउझी जिस पैर को दबा रही थी उसी पैर को जोर से पकड़कर उनको घसीटते हुए आँगन से दुआर पर ला दीं ।
-"इ हमार सवती ह आ तू कहतार की केहू ना ह।
हे बरम बाबा! ए नावका बाबा । हामार जीनगी बारबाद कइदिहलस होगइल।"
हाथ जोड़कर इससे पहले की आलोक पांडेय जी कुछ और बहाना बना पाते कि तुरंत नीतू भउजी पैर छोड़कर गला पकड़ लीं ।उसके बाद पांडेय जी का जीभ दस मीटर बाहर निकल गया ।गाँव के लोगों को लगा की लग रहा है पांडेय जी के शरीर में काली माई आ गई ।घर के सामने भीड़ देखकर आलोक पांडेय सोच रहे थे -
"आ गये मेरे बेइज्जती का तमाशा बनाने सब। "
बहुत मुश्किल से गाँव वालों ने नीतू भउजी के चीते के तरह पंजे से जकड़े पांडेय जी के गले को मुक्त कराया । उसके बाद खांसते हुए पाण्डेय जी एक सौ अस्सी के स्पीड में भागे और मन ही मन गोपालगंज के सर्वेश तिवारी श्रीमुख को कोस रहे थे
-"जो रे सरबेशवा ।हामार जिनगी ते नरक कई दिहले।आखिर हम का बिगाड़ा हूं रे तुम्हरा।"
नीरज मिश्रा
बलिया ।
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