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भोजपुरी कहानिया

बेबी को बेस पसंद है....

बेबी को बेस पसंद है....
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साहब सिंह वर्मा अपने समय में फिजिक्स के बहुत अच्छे अध्यापक थे, उन्होंने रिटायर होने के बाद हमारे कस्बे में पहला मान्टेसरी स्कूल खोला था-चन्द्रा मान्टेसरी।अच्छा चल रहा था स्कूल कि एक दिन साहब सिंह वर्मा का लड़का जो उसी स्कूल में पढ़ाता था, उसने आठवीं कक्षा की छात्रा के साथ ऐसा अनैतिक कृत्य किया जिससे अभिभावकों की नज़र में अध्यापक और स्कूल दोनों की गरिमा घटी। लड़के को बलात्कार के जुर्म में जेल मिली और साहब सिंह वर्मा ने फांसी लगाकर प्रायश्चित कर लिया। हां कस्बे में नई बात यह हुई कि अब प्राइवेट स्कूलों में योग्यता के साथ-साथ चरित्र के आधार पर अध्यापक रखे जाने लगे।
हालांकि इस घटना के बहुत बाद मैं टीचिंग में आया लेकिन प्रिंसिपल ने मुझे उन्हीं नजरों से घूरते हुए कहा - कौन सा विषय पढ़ाते हैं?
मैं कहने वाला था कि सर जब भूख लगी हो न, तो आदमी फारसी भी पढ़ा लेता है.. . लेकिन मुँह से निकला - हिन्दी।
और इस तरह मैं हिंदी अध्यापक और कक्षा दस का क्लास टीचर बना। तब खुद बी ए दूसरे साल में पढ़ता था। बाद में प्रिंसिपल और साथी अध्यापकों का भरपूर सहयोग मिलने लगा। मैं प्रार्थना से दस मिनट पहले गेट पर छड़ी लेकर खड़ा हो जाता और नाखून बाल ड्रेस नहाना आदि चेक करता। बिना नहाए आने वाले बच्चों को घर भेज देने पर उनकी माता जी लोग लड़ने के मूड में स्कूल आ जाती थीं।भाषा और शैली कुछ यूँ होती थी - तहार हिम्मत केतरे परल हऽ कि तूं हमरी लइका के खेद दिहलऽ हऽ?
मैं भी कम बदजुबान तो था नहीं। बड़े प्यार से कहता था कि - माताजी जितने समय में हई ललका लिपिस्टिक लगाईं हैं न, उतना ही टाइम लगेगा लड़के को नहलाने में।
उसी समय एक घटना घटी।जैसे ही मैं रजिस्टर लेकर घुसा तीसरी ब्रेंच पर एक लड़की रो रही थी।
मैं थोड़ा विचलित हुआ क्योंकि वो मेरे स्कूल की नहीं शायद पूरे कस्बे में सबसे तेज़ लड़की थी।मेरे स्कूल में मैथ और फिजिक्स पढ़ने आती थी बस। शायद आईआईटी लक्ष्य था उसका।
मैंने डांट कर पूछा क्या बात है बेबी क्यों रो रही हो?
वो रोती ही रही बगल की लड़की ने थोड़ा झिझकते हुए एक पन्ना बढ़ा दिया। लव लेटर था वो। किसी लड़के ने लिख कर उसकी डेस्क में रख छोड़ा था।मैंने
पूरे क्लास की राइटिंग मिलाई सबको पीटा लेकिन आशिक नहीं मिला। शायद चतुर आशिक था किसी दूसरे लड़के से लेटर लिखवा लाया था। मैंने
बेबी को समझाया कि इससे कुछ नहीं होता। तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।
बेबी ने सिसकते हुए कहा था कि - सर मैं तो यहां किसी भी लड़के को जानती तक नहीं। यहां मैं लेटरबाजी करने नहीं आती अपना बेस बनाने आती हूँ।मुझे अपना कैरियर बनाना है। मैंने प्यार से फिर समझा कर चुप करा दिया।
लेकिन शायद यह खबर लड़की के घर पहुंच चुकी थी उसका अगले दिन से स्कूल आना बंद हो गया।
अब मेरी जिम्मेदारी थी। मैं बेबी के घर गया हरिजनों के टोले में। उसके पिताजी कहीं से आए, उनके चाल में लापरवाही और बोली में कच्ची शराब की महक के साथ साथ दो चार गालियाँ भी थीं। मैंने उनसे कहा कि - बेबी बहुत अच्छी लड़की है, उसकी कोई गलती नहीं है, और इतनी बड़ी बात नहीं है कि उसकी पढ़ाई बंद कर दी जाए। रिक्शा चालक अभिभावक महोदय ने मुझे डांटते हुए कहा कि - मेरी कोई इज्ज़त है कि नहीं? ई साली कुतिया वहाँ पढ़ने जाती है कि...। मुझे तो उन्होंने बिना मारे पीटे छोड़ दिया यह उनकी महानता थी।
लगभग छह महीने बाद बेबी की शादी का सस्ता सा कार्ड प्रिंसिपल के मेज की शोभा बढ़ा रहा था। मैं फिर पहुंचा उसके घर कि अभी इसकी शादी करना ठीक नहीं, यह पढ़ने में बहुत अच्छी है, उसे अपना कैरियर बनाने दीजिए वगैरह वगैरह।तुरंत चार पाँच घरों के अभिभावक इक्ट्ठे हो गए बहुत मुश्किल से बिना पिटाए आ पाया। विद्यालय समिति ने भी स्पष्टीकरण मांगा था कि "असित जी! व्यक्तिगत पारिवारिक मामलों में दखल देने की आवश्यकता क्या थी आपको"?
खैर कहानी बड़ी नहीं करनी है। हाँ इतना बता दूं कि बेबी का पति सरदार नगर शराब फैक्ट्री में काम करता था, जो दो बेबियों को पैदा करने के बाद लीवर फटने से मर गया और पहले वाली बेबी आज भी खेतों में कटिया पिटिया करते कभी कभी दिख जाती है। ससुराल वालों ने कह कर छोड़ दिया कि यही अपने भतार को खा गई।
पूर्वांचल के किसी भी प्राथमिक, जूनियर, हाईस्कूल इंटर वाले अध्यापक से पूछ लीजिएगा कि गांव के ऐसे टोलों से एक एडमिशन लाने के लिए क्या क्या सुनना पड़ता है। अभिभावक साफ साफ कहते हैं कि- 'लइकवा पढ़े जाई त हमरी साथे काम करे तूं चलबा'।
मैं रोज देखता हूँ ऐसी बेबियों को कबाड़ बीते, भीख मांगते, वेश्यावृत्ति के दलदल में फंसते। एक काग़ज़ पर लिखी चंद लाइनें कैसे एक अद्भुत प्रतिभाशाली बेबी की जिंदगी नर्क से भी बदतर बना देते हैं यह मुझसे पूछिए।
फेसबुक पर चंद सुंदर बालाओं को कविता कहानी लिखते देखकर हम खुश हो जाते हैं कि बेटियां पढ़ रही हैं बढ़ रही हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों से उतर कर देखिएगा कभी आज भी सैकड़ों बेबियों की हालत वही है। ये बेबियां हेलिकॉप्टर और हवाई जहाज से दौरे करने पर नहीं दिख पातीं। बहुत छोटी होतीं हैं न!
और हमारे जैसे अध्यापकों के सीमित दायरे होते हैं। हम बहुत कुछ नहीं कर सकते चंद आँसू बहा लेने के सिवा। लेकिन जो सरकार हैं जो मंत्री हैं वो क्यों नहीं करते कुछ? आज एक मुख्यमंत्री चाह दे तो राज्य की सभी वेश्याओं को छह महीने सुधार गृह में रखकर उन्हें स्कूलों अस्पतालों में सफाई कर्मी के रूप में नियुक्त कर सकता है, उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ सकता है। जिसे संसद कहा जाता है और जिसका अर्थ मर्यादा शालीनता है उसी के निवासियों ने जो जो घोटाले किए उसमें से केवल एक टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की रकम ऐसे समझिए कि एक हज़ार के नोटों के बीस बीस तह सात बार पूरी पृथ्वी पर बिछाए जा सकते हैं। क्या इतनी रकम से विधवाओं और वेश्याओं का पुनरुत्थान नहीं हो सकता था?
आज वर्ग जाति और संप्रदाय की राजनीति करने वाले सभी राजनीतिक दल गंदी बस्तियों से बड़ी खूबसूरती से वोट चुरा ले जाते हैं लेकिन ये कथित देवी और भगवान् कभी शिक्षा संस्कार स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर सिखाने समझाने नहीं आते।
मैं तो आज भी देख रहा हूँ कि चंद इज्जतदारों की लड़ाई में कैसे एक बेबी मोहरा बन गई है। जिसे आप जनतंत्र कहते हैं इसकी राक्षसी भूख कैसे चंद वोटों की खातिर एक बेबी को स्कूली शिक्षा से दूर कर रही है।उसे मानसिक रूप से तोड़ रही है। उसे राजनीति के उस गहरे दलदल में धकेल रही है जो वेश्यावृत्ति से भी अधिक भयानक है...
रोज देखता हूँ कि किसी बेबी की तरफ फब्तियाँ कस कर सीटियाँ बजा कर लड़का तो अपनी जिंदगी में खो जाता है, लेकिन बेबियां किस अंधेरे में खो जाती हैं, बस एक दिन उस जगह पर आकर देख लीजिए आपको पता चल जाएगा। दिन भर में सैकड़ों हजारों आँखों, फब्तियों, सीटियों, अश्लील गानों और फिल्मी डॉयलागों का बलात्कार सह कर एक बेबी मेरे क्लास की तीसरी ब्रेंच पर आकर बैठती है।उसे कोई लड़का, आपकी यह गंदी राजनीति यह अश्लील फिल्म नहीं अपना कैरियर- अपना बेस पसंद है।
सारी बेबी! हमेशा की तरह मैं आज भी तुम्हारे साथ खड़ा हूँ बेबस, मजबूर और लाचार भी...
कोई और जाने या ना जाने मैं जानता हूँ कि तुम्हें राजनीति से कोई मतलब नहीं। तुम उन मर्यादित लोगों की कुत्सित चालें नहीं जानती। तुम तो उन सैकड़ों हजारों बेबियों में से ही एक हो, जिन्हें बेस पसंद था अपना कैरियर पसंद था... जानता हूँ तुम्हें भी बस बेस पसंद है।

असित कुमार मिश्र
बलिया
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