"एक रहेन सधुआ, और एक रहेन बधुआ"
BY Suryakant Pathak5 July 2017 7:34 AM GMT

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Suryakant Pathak5 July 2017 7:34 AM GMT
सधुआ बधुआ दोनों भाई थे। जिसमें सधुआ जी सीधे साधे टाइप के प्राणी थे, लेकिन बधुआ बिलकुल उलट व्यवहार का।
पिताजी के गुजर जाने के बाद, घर चलाने के लिए, सधुआ ने निश्चय किया कि,.. वो घर का बड़ा सदस्य है, तो वो नौकरी करने जायेगा। घर से बहुत दूर एक गाँव में पहुंचा, जहाँ एक सेठ रहता था। सेठ बहुत काइयाँ और कंजूस था। इसीलिए उसके यहाँ कोई नौकर टिकता ही नहीं था।
उसने सधुआ को कहा,. "मैं तुम्हें नौकरी तो दे दूंगा, लेकिन मेरी कुछ शर्तें हैं। और वो शर्तें ये हैं कि,.. "पत्ता भर भत्ता (भात, चावल) मिलेगा खाने में, या आधी सूखी रोटी। तो पहले ही बता दो कि तुम क्या लोगे?"
सधुआ ने सोचा कि क्या पता सेठ कहीं बेर वेर के पत्ते पर भात ना दे दे,.. सो उसने कह दिया कि,.. "मैं आधी रोटी ले लूँगा। कुछ तो पेट में ठोस जाएगा।"
सेठ ने कहा,.. "मेरी अगली शर्त यह है कि घर का कोई भी सदस्य जो कह दे, वो अक्षरश: पूरा होना चाहिए, तनखाह आखिर में ही मिलेगी। लेकिन अगर तुम नौकरी छोड़ के भागे, तो मैं तुम्हारे पैसे नहीं दूंगा,. और तुम्हारे नाक कान काट लूँगा। लेकिन अगर मैंने तुम्हें खुद निकाला तो तुम मेरे नाक कान काट लेना, और मेरी आधी जायदाद भी तुम्हारी। बोलो शर्त मंजूर है?"
सधुआ सोचा कि ये कैसी उटपटांग शर्त है,.. लेकिन नौकरी करनी मजबूरी थी, सो हामी भर दिया।
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अब सेठ, सेठानी, सेठ की माँ, और सेठ का 10-11 साल का लड़का,.. सधुआ को दिन भर इधर उधर दौड़ाते रहते, और खाने में आधी सूखी रोटी पकड़ा देते। इस तरह कई महीने बाद, कमजोरी से सधुआ की शारीरिक हालत ख़राब हो गई,. उसको लगा कि अगर वो नौकरी नहीं छोड़ा, तो यहीं मर जायेगा।
फिर एक दिन उसने सेठ को कह दिया, कि उससे अब काम नहीं हो पायेगा। सेठ तो इसी बात के इंतजार में था, उसने सधुआ के नाक कान काट लिए, और बिना मजदूरी दिए भगा दिया।
अब सधुआ घर पहुंचा, वहां पर माँ ने उसकी हालत देख कर रोना शुरू कर दिया। लेकिन बधुआ ने तसल्ली से सबकुछ पूछा,. और ऐलान कर दिया कि अब वो जायेगा नौकरी करने, उसी सेठ के पास। सधुआ और माँ के बहुत समझाने पर भी नहीं माना और चल दिया।
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कुटिलता से मुस्कुराते सेठ ने बधुआ को भी शर्तें बताया,.. तो बधुआ ने कहा,. "मैं सूखी रोटी नहीं लूँगा,. पत्ता भर भत्ता लूँगा। आप लोग जो बोलोगे, उसका अक्षरश: पालन करूँगा।" सेठ और उसका परिवार बहुत खुश हुआ, क्योंकि उनको फिर से एक फ्री का, मुफ्त का नौकर मिलने जा रहा था।
बधुआ खेत में काम पर लग गया,. और खाने के वक़्त घर पहुँच गया। सेठ ने कहा,.. "पत्ता लाओ भात दे दूँ।" बधुआ ने चारपाई के नीचे छिपाया हुआ य्ये बड़ा सा केले का पत्ता निकाला,. और सेठ को बोला,.. "ठीक से भर कर देना।" ....सेठ की हालत ख़राब हो गई, वो पत्ता देख कर। वो समझ गया कि,... अबकी चोर पर मोर पड़ गया गले। लेकिन उसको उतना चावल देना पड़ा, शर्त ही यही थी। अब नित्य का यही क्रम हो गया, बधुआ भर पेट जितना खा पाता, खा लेता,.. और बचा हुआ खाना गाय भैंस को खिला दिया करता।
एक रात, सेठ का लड़का जिद करने लगा कि उसको अभी पोट्टी करने के लिए खेत जाना है। सेठ ने बहुत समझाया कि,.. रोक ले थोड़ी देर,.. फिर सुबह हो जाएगी तो इकट्ठे चलेंगे। लेकिन बच्चा जिद पे अड़ गया। तो सेठ को नींद टूटने से गुस्सा आ गया,. उसने बधुआ को कहा,.. "बधुआ, ले जा इसको पोट्टी करा के ले आ।"
बधुआ एक मोटा डंडा लेकर चला गया,. और लड़के को खेत में बिठा कर कहा,.. "हगिहे त हगिहे,. मूतले त मारब" (पोट्टी करना है तो कर, लेकिन सूसू किया तो बहुत मारूंगा। क्योंकि सेठजी ने "केवल पोट्टी" के लिए कहा है, सूसू के लिए नहीं।)
अब बच्चा क्या करे,. बड़ी देर तक कोशिश किया लेकिन ये कैसे संभव हो सकता था? सो उसने कहा,. "मुझे नहीं करना है पोट्टी, चलो।"
बधुआ वापस उसको लेकर घर पहुंचा,.. और बच्चे से पहले खुद ही सेठ को झिंझोड़ कर उठाया,.. और कहा,.. "तुम्हारा बच्चा पोट्टी ही नहीं कर रहा है।" सेठ पहले से फुंका पड़ा था, ऊपर से झिंझोड़ कर उठाना उसको और गुस्सा दिला गया,.. वो चीख के बोला,.. "स्साला अभी पोट्टी पोट्टी चिल्ला रहा था, और अब पोट्टी नहीं करना है इसको। ...उठा के पटक दे ससुर को दालान पर।"
सेठ के मुंह से इतना निकला ही था, कि बधुआ झपट कर बच्चे को उठाया और धायँ से दालान की जमीन पर दे मारा। लड़के की हड्डी पसली टूट टाट के बराबर हो गई। सेठ सेठानी "हाय मेरा बच्चा" करते हुए दौड़े,.. और सेठ ने चीख के कहा,. "अबे स्साले, मैंने यूँ ही गुस्से में कह दिया था।"
बधुआ ने बड़े आराम से कहा,.. "शर्त तो यही थी कि आपके शब्दों को अक्षरशः पूरा करना था, तो यही मैंने किया।"
सेठ सेठानी को काटो तो खून नहीं, तड़प के रह गए। फिर लड़के को कहीं दूर इलाज के लिए किसी रिश्तेदार के पास भेज दिया।
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एक दिन बधुआ, खेत से घास का बड़ा भारी सा गट्ठर काट के लाया। सेठ की बुढ़िया माँ ओसारे में बैठ कर सूत कात रही थी। तो बुढ़िया के कान के पास जाकर चिल्लाया,. "ये गट्ठर कहाँ रखूं?" बुढ़िया गुस्से में चीख कर बोली,.. "ले आ, ले आकर मेरे सिर पर पटक दे।" बधुआ ने आव ना देखा ताव,.. और धायँ से गट्ठर बुढ़िया के सिर पर दे मारा। बुढ़िया की गर्दन चटाक से टूट गई। सेठ सेठानी फिर से अपना माथा पीटे, लेकिन क्या कर सकते थे।
तो अपनी माँ को भी बहाने से, इलाज के लिए कहीं बाहर भेज दिया,.. और सेठ सेठानी फिर बधुआ से छुटकारा पाने का उपाय सोचने लगे, क्योंकि इतना तो समझ आ ही गया था,.. "ये बधुआ साला खुद नौकरी छोड़ के तो नहीं जाएगा, और हमारे नाक कान भी काटेगा।" बहुत सोचते सोचते अर्धरात्रि हो गई, लेकिन सेठ सेठानी को कोई रास्ता ना सूझा बधुआ से बचने का।
फिर सेठानी बोली,.. "सेठ जी, ऐसा करते हैं कि अपना सारा कीमती सामान,.. रूपया पैसा, सोना चांदी सब एक बड़े बक्से में लेकर, अभी रात के रात गाँव छोड़ के मेरे पीहर चलते हैं। वहां तबतक रहेंगे जबतक कि खुद को यहाँ अकेला पाकर, बधुआ खुद ना भाग जाए।" सेठ जी को ये तरकीब जमीं और रात के अँधेरे में बक्से में सामान भरने लगे।
उधर बधुआ चौकन्ना था, उसे भनक लग गई। तो उसने मौका देखा कर, उसी बक्से में खुद नीचे लेट गया। जब बक्सा भर गया, तो सेठ उसको सर पर लाद कर ले चले। रास्ते में बधुआ को पेशाब लगी, तो उसने बक्से में ही कर डाला। ...जब बक्से के जोड़ों से पेशाब बाहर टपकने लगी, तो सेठ ने सेठानी से पूछा कि,.. "ये क्या है?" सेठानी ने कहा,. "मैंने बक्से में घी भी रख दिया था शायद, वही गिर गया होगा, चाटते रहो नहीं तो व्यर्थ हो जायेगा।"
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घर से काफी दूर चलने के बाद, इतना भारी बोझ लेकर सेठजी थक चुके थे, उनको प्यास भी लग आई। तो रास्ते में एक कुआँ देखकर रुके, और बक्से में से रस्सी लोटा निकालने के लिए उसको खोला। अन्दर से श्रीमान बधुआ अंगड़ाई लेते हुए उठ बैठे। सेठ सेठानी दोनों का चेहरा फक्क। लेकिन करें भी तो क्या करें। फिर सेठ सेठानी ने प्लान बनाया कि यहीं कुएं पर थोड़ा आराम के बहाने लेटते हैं, और जब बधुआ सो जाएगा, तो उसको इसी कुएं में धकेल देंगे। ये प्लानिंग करके सेठ सेठानी ने बधुआ को कुँए की ओर सुलाया।
बधुआ सारी प्लानिंग फिर से भांप गया। ये लोग थके हुए थे, जल्दी नींद आ गई। तो बधुआ धीरे से उठा और रात के अँधेरे में सेठ सेठानी के बीच में जाकर सो गया। थोड़ी देर बाद सेठानी की आँख खुली, तो किनारे पर पहुँच गए सेठ को बधुआ समझ, कुएं में धक्का मार दिया। और बधुआ को उठा कर, बक्सा सिर पर लदवा कर चल पड़ीं। थोड़ी देर बाद जब उजाला हुआ, तो सेठ की जगह बधुआ को देखकर अपना माथा पीट लीं। "हाय सेठ जी" करके दहाड़े मारने लगीं, कि तभी सेठ जी भी पीछे से लुटे पिटे आते दिखाई दिए।
लेकिन अब बधुआ को क्या कह सकते थे। सो सबलोग चलना शुरू किये। लेकिन चूँकि प्रथा थी, सन्देश भिजवाने की, तो सेठ ने बधुआ को पता बतलाकर कहा,.. "जाओ हमारी ससुराल में खबर कर दो।"
बधुआ भगा,.. और जाकर इत्तला किया,.. साथ में कह दिया कि,.. "सेठ जी एक गंभीर बीमारी से गुजर रहे हैं, और डॉक्टर ने उनको कुछ भी खाने पीने को मना किया हुआ है,. यहाँ तक कि पानी भी। इसलिए ना तो आपलोग ये जिक्र कीजियेगा कि मैंने आपको सब बता दिया है,.. और ना ही कुछ खाने के लिए पूछियेगा। बेचारे सेठ जी को बहुत मानसिक तकलीफ होगी।"
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अब जो भी पकवान आए, सब बधुआ के आगे ही रखा गया, सेठ को कोई पूछे भी ना। अब सेठ ख़ुद से तो कह नहीं सकते थे कि,.. मुझे भी खाने को दो।
किसी तरह पूरा दिन बीता, और रात हो गई। सेठानी को कुछ पता ही नहीं ये चक्कर, क्योंकि वो तो घर के अंदर पहुंच गई थीं।
अब रात में सेठ जी को भूख के मारे रहा नहीं गया,.. और बधुआ को ही उठा कर बोले,... "भाई, भूख के मारे जान जा रही है, कुछ व्यवस्था कर।"
बधुआ उठा और जाकर दो हांडी ढूंढ लाया कहीं से, एक मे चीनी थी और एक में साबुत मटर के दाने। मटर वाला सेठ को पकड़ाया, और चीनी वाला ख़ुद लेकर फांकने लगा। सेठ को समझा दिया कि,.. "यही मटर उपलब्ध है, खाओ या ना खाओ।"
सेठ जी बेचारे पटर पटर करके पूरी रात खाए। फिर पेट में पहुंची कच्ची मटर ने अपना प्रभाव दिखाया, और सेठ जी का पेट हो गया खराब। रात में सेठ जी फिर से बाजू में लेटे बधुआ को उठाए, और कहे कि,.. "अब क्या करूँ?"
बधुआ ने कहा कि,.. "इत्ती रात में पता नहीं किसके खेत में जाओगे, बहुत पंगा हो सकता है। इससे अच्छा यही है कि इसी मटर वाली हांडी में हग लो, सुबह मैं चुपके से फेंक आऊंगा।" सेठ जी बेचारे क्या करते, हांडी को ही भर दिए, और तान के सो गए।
सुबह उठे, तो देखे कि हांडी जस की तस है, और बधुआ सो रहा है। बधुआ को जगाने की बहुत कोशिश किए, लेकिन वो टस से मस ना हुआ। तो फिर खुद ही कंबल ओढ़े, और बाकी सबके जागने से पहले, हांडी को कंबल में छिपा कर, उसको फेंकने निकले।
बधुआ फिर से चौकन्ना था, उसने ससुराल में सबको उठा कर कह दिया कि,... "आप लोगों ने ठीक से स्वागत नहीं किया हमारे सेठ जी का, इसीलिए वो गुस्सा कर भागे जा रहे हैं। उनको रोकिए।"
सारे ससुराल वाले भागे, और किसी ने रोकने के लिए कम्बल ही खींच दिया। इधर कंबल खिंचा, उधर हांडी जमीन पर गिर के फूट गई। चारों ओर गुह ही गुह फैल गया।
सेठ ने बधुआ के पैर पकड़ लिए, कहा,... "भाई, नाक कान काट ले, जितना पैसा लेना हो, ले ले,.. लेकिन अब मुझे बख्श दे भाई।"
बधुआ ने शान से सेठ के नाक कान काटे, और पैसे लेकर चलता बना।
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तो भईया वामियों, कांगियों, सर्पण्डूओं, आपीयों,...
हमको सुधिया समझने की भूल कत्तई ना करना। हम लिंक लिंक नहीं खेलते, सीधा सिर पे धाएं से दे मारेंगे।
बाकी मोदी जी से भी तीन साल पूरे होने पर यही कहना है कि,... बुधिया बनें। सुधिया बनने में कोई फायदा नहीं है। वामपंथी कहें, कि नक्सलाइट एरिया में बम गिरा दो, तो गिरा दो। वो कहें पाकिस्तान पे मिसाइल छोड़ दो, तो छोड़ दो। बाद में उनके हल्ला मचाने पर आप भी कह देना, "अबे स्साले, तूने ही तो कहा था।"
इं.प्रदीप शुक्ला
गोरखपुर
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