रामसांवर लबड़हत्थी हैं
BY Anonymous15 Oct 2017 2:44 AM GMT

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Anonymous15 Oct 2017 2:44 AM GMT
सुबह गेट पर किसी के पुकारने की आवाज आयी तो जल्दी से टीशर्ट डालकर बाहर आया । आगंतुक कृशकाय वृद्ध था और शक्ल परिचित जान पड़ती थी । मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से पूछा तो उन्होंने बताया कि 'हम पेंट वाले हैं , फलाना हार्डवेयर वाले भेजे हैं।' तब याद आया कि दीवाली पर साफ़ सफाई के लिये मैंने दो तीन दुकानों पर बोल रखा था , लगता है उनमें से ही किसी ने भेजा होगा ।
मैं हर साल दो साल पर कुछ न कुछ खटर पटर कराता ही रहता हूँ , हालाँकि ये खुराफाती आदत है लेकिन मुझे बदलाव सकून देता है । आजकल टीवी पर विज्ञापन आते हैं कि हमारा पेंट पोतिये और दस साल के लिये तनावमुक्त हो जाइये ... पता नही क्यों ऐसा लगता है कि मेरा तो दम घुट जायेगा ऐसी दीवारों में बंद रहकर , जिनका रंग भी दस सालों में न बदला हो !
काम शुरू हो जाने पर मैंने बुजुर्ग से पूछा "का हो चाचा , तोहार चेहरा कुछ चिन्हार लगत बा!"
बुजुर्ग ने हंसकर बताया कि वो तब से हमारे यहां काम करते हैं जब मैं स्कूल में पढ़ता था और अम्मा(मेरी दादी) जीवित थीं .. मैंने नाम पूछा तो उन्होंने 'रामसांवर' बताया। स्मृति में कौंधता है कि अम्मा के जीवनकाल में भी यही पक्का काला रंग और अपेक्षाकृत आयु में कम (तकरीबन अधेड़) चेहरा देखा-भाला हुआ है। उस स्मृति में मेरा बचपन भी गुँथा हुआ है, ये उलझन भी सुखद है। न जाने क्यों , बूढ़े के प्रति एक अनजाना आदर मिश्रित लगाव पैदा हो रहा है।
मैं फोन पर किसी से कुछ बात कर रहा था , अचानक महसूस हुआ कुर्सी के बगल में कोई खड़ा है । पलटकर देखा तो रामसांवर हाथ में बनायी हुयी सुर्ती(खैनी) लेकर खड़े थे । मैं तमाम व्यसन करता हूँ लेकिन सुर्ती नहीं खाता ,थोड़ा ऑकवर्ड भी महसूस होता है मुझे । मैंने मना कर दिया "चचा हम सुर्ती नाही खालीं।" रामसांवर एक क्षण संकोच किये लेकिन फिर सहज हो गये ।
मैंने भी झट से बात बदलते हुये कहा 'कहो चचा, तू उल्टा हाथ से काम करेला का?'
बूढ़े ने एक सेकेण्ड को नाखुशी से देखते हुये कहा कि "लबड़हत्थी हईं त का भइल? दूना काम करब दहिनहत्थी से!"
मैंने मुस्कुराकर कहा "अरे हम अइसही पूछ् लिहली।"
बूढ़े ने उलटे हाथ से सुर्ती फांककर फिर जीभ से उसका चुनियाकर होठों के बीच प्लेसमेंट किया और ऑंखें थोड़ी और छोटी करके बताया "बाऊ अगर हम लाबड़हत्थी न होतीं त आज यहां नाहीं होतीं।"
मैंने रस लेते हुये पूछा 'तब कहाँ होत चचा?'
(अब कथाक्रम फ्लैश-बैक में चलेगा , आइये चलते हैं । अब आप पूछोगे 'किस सन में?'..तो मुझे झुंझलाहट होगी .. क्योकि सन मुझे भी नहीं पता । आपकी सुविधा के लिये अगर रामसांवर की आज उम्र 65 वर्ष मान ली जाएँ तो तत्कालीन कालखंड को 46-47 वर्ष पहले का मान लें)
जब रामसांवर अठारह उन्नीस साल के थे तब घर से भागकर दिल्ली चले गये थे । वजह रोजी-रोटी भी हो सकती है , वजह कोई इश्क-मुश्क भी हो सकता है और वजह कोई और भी हो सकती है .. मुझे नहीं पता , उन्होंने बतायी भी नहीं । तो रामसांवर दिल्ली में बेरोजगार घूम रहे थे तभी उन्हें पता चला कि रेलवे की भर्ती चल रही है । एक कृतप्रतिज्ञ बेरोजगार का धर्म निभाते हुये वो वहां पहुंचे । परीक्षक ने रामसांवर को कहा अंग्रेजों के देस का नाम लिखो .. रामसांवर ने बड़ी मुश्किल से साढ़े तीन दिन तक विद्याध्ययन किया था लेकिन अ से ज्ञ तक लिखना जानते थे । परीक्षक उनको कॉपी देकर आगे बढ़ गया और रामसांवर ने बड़ी मुश्किल से अच्छर अच्छर मिलाकर "लनडन" लिख दिया ।
परीक्षक लौटकर आया तो रामसांवर की कॉपी देखी और ख़ुशी से बोल पड़े "रामसांवर पास हो गया" ।
जब रजिस्टर पर नाम लिखने के लिये रामसांवर को बुलाया गया और रामसांवर ने अपनी समस्त ज्ञानेन्द्रियों को झोंककर कलम के निब पर एकाग्र करते हुये अपने कठिन नाम का पहला अक्षर 'र' बनाना शुरु किया तभी परीक्षक झा साहब चौंके ... उनकी आंखें शिकायती गोल हुयी और अपनी धीमी/सख्त आवाज में उन्होंने जबड़े भींचकर पूछा 'रामसांवर ... तुम लेफ्टी हो?'
रामसांवर को आजतक किसी ने कलुआ कहा था , किसी ने हरमिया कहा था ... गांव में एक भौजाई ने अश्लील मजाक करने पर एकबार 'लतमरूआ , मूतपियना' भी कहा था.... लेकिन आजतक किसी ने 'लेफ्टी' नहीं कहा था । वो समझ नही पा रहे थे कि ससुरी ई कौन सी नयी गाली है , जिसको इतना बड़ा साहब देता है।
उन्होंने दयनीय मुखमुद्रा में पूछा 'साहब लेफ्टी का होता है?'
झा साहब ठठाकर हंसे, साथ ही साथ उनकी तोंद हिल हिलाकर हंसी और उसके साथ कमरे में बैठा हर शख्स और पंखा तक हंसा 'मेरा मतलब है , तुम बायें हाथ से काम करते हो?'
"हां साहब हम लबड़हत्थी हूँ।"
झा साहब ने गंभीर होकर जवाब दिया " रामसांवर हम तुम्हे नौकरी नहीं दे सकते । हमको लेफ्टी आदमी नहीं पसंद , वो कामचोर होता है ।"
और इस तरह रेलवे के साहब की नापसंदगी की वजह से गोरखपुर की धरती को मिला उनकी दीवारों को रंगने वाला लियोनार्डो दा विन्ची.... रामसांवर .... जो कि लबड़हत्थी है ... जो कि कामचोर भी नहीं है और 65 साल की उम्र में अपने नाती नातिनों के लिये भी चार रोटियां कमाकर घर लाता है ।
अतुल शुक्ल
गोरखपुर
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