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भोजपुरी कहानिया

बियाह कथा पार्ट वन

बियाह कथा पार्ट वन
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चंदन बाबू, एक दुकान में पहुंच कर दुकानदार से बोले अरे भाई, जरा एक डेढ़ साल के बच्चे के लिये छाते वाली मच्छरदानी निकालना।
दुकानदार ने गुलाबी कलर की मच्छरदानी थमाई और बोला यह दो साल तक के बच्चों के लिये है।
चंदन बाबू मच्छरदानी खोलकर उसकी लम्बाई की जांच किये। पता नहीं क्यूं उनको लगा कि मच्छरदानी छोटी है और बिटिया का पैर कहीँ मच्छरदानी से बाहर न निकल जाये। शंका समाधान में पत्नी को फोन लगाकर पत्नी से पूछे कि जरा इंचटेप से नापकर बताना कि गुनगुन की लम्बाई कित्ती है। अभी यह प्रश्न गया न कि उधर से बमबारी शुरू हो गई- श्रीमती जी भड़क गयीँ... गजब के लापरवाह बाप हैं।आपको अपने बच्चे का अंदाज़ा न हुआ अब तक ? उसके बाद विगत पांच साल पहले तक के उनके सभी लापरवाहियों का स्वेटर उधेड़ कर श्रीमती ने गोला बनाकर फोन काट दिया।
दुकानदार ने इनके चेहरे की हवाईयाँ पढ़ लिया और मुस्कुरा कर कहा आप लोगों को तो जैसे सुबह-शाम डांट खाने की आदत है। जब मैं कह रहा हूँ कि दो साल तक के बच्चे के लिये पर्याप्त है तो जरूरत ही क्या थी आपको छोटी-छोटी समस्याओं पर गृहमंत्रालय से परामर्श लेने की। वैसे अगर आपको अब भी शंका हो तो और बड़ी दे दूं।
चंदन जी पर तो यह दोहरी मार पड़ गयी लेकिन अपमान और गुस्से को गटक कर बोले, नहीं यही ठीक है और पांच सौ का नोट थमा कर पैसा वापसी के लिये चुपचाप खड़े रहे।
विवाह के बाद आदमी का दिमाग भी एकदम दिग्भ्रमित हो जाता है। ये वही चंदन हैं जो मेले मे से अपनी तीन प्रेमिकाओं के लिये नाग वाली तीन अंगूठी खरीदते थे लेकिन मजाल है कभी अंगूठी अनामिका के बदले मध्यमा या कनिष्का के हिस्से में आयी हो।
क्या गजब का अंदाज़ था बाबू का जब भी प्रेमपत्र मुड़िया कर फेके होंगे तो पर्ची कभी गलती से दूसरे के हाथ न लगी।
आज बीबी के नजर में भले ही नाकाम और नकारा हों लेकिन प्रेमिकाओं के किसी भी प्रकार की समस्या समाधान में निर्मल बाबा से तनिक भी कम न थे चन्दन बाबू। प्रेमिकाएं इनकी तेज़ी और सेवाभाव से इतनी संतुष्ट थीं कि पूछिए मत। शायद इसलिए तो आज वो भी अपने पतियों को नकारा ही समझती हैं।

चंदन बाबू अपने जवानी के चढ़ते दिनों में अनेक तरह के प्रेम-अचार डालने के शौकीन रहे हैं । अभी भी गाहे-बगाहे अपने पुराने अचार के मरतबान का ढक्कन खोलकर सूघं लेने में कोई गुरेज नहीं करते । लेकिन ज्यादातर ढक्कन बंद ही रखते हैं कि गलती से सुगन्ध श्रीमती जी के ज्ञानेन्द्रियों तक न पहुंच जाये वरना मर्तबान तो टूटेगा ही और मुंह भी सुरक्षित नहीं रहेगा।
दीपावली की सफाई के दिनों में सबसे ज्यादा परेशान हलकान चंदन बाबू ही रहते हैं कि कहीं कोई प्रेम का केंचुल पुरानी किताबों से न निकल आये और सफाई रोककर कुटाई शुरू हो जाये। इसलिए अभियान से आगे आगे इनका सर्च अभियान चलता है। वैसे गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ और मोर पंखी तो कुछ किताबों से अभी भी निकल जाते हैं और श्रीमती जी उससे ऐसे नफरत करतीं हैं जैसे परीक्षा कक्ष में उड़ाका दल नकल के चिट से।

शौकीन मिजाज रहे हैं अपने चंदन बाबू। अभी भी इनकी दो पुरानी स्वेटर जिसको बड़े शौक से धारण करते हैं उनके हर फंदे में उनकी प्रेमिकाओं के प्रेम उलझे हैं। एक बार तो उनकी श्रीमती जी ने उसमें से एक स्वेटर अपनी काम वाली बाई को दे दिये। यह सूचना जब चंदन बाबू को हुई तो उनके लिये ऐसा ही था जैसे नाग से कोई उसका नागमणि हड़प लिया हो
लेकिन चंदन बाबू को रहा न गया और अपनी पत्नी छुप-छुपा कर काम वाली बाई के घर जाकर अपना उपहार मांग लाये। इसके लिए भी उनको बड़ी मशक्कत करनी पड़ी और दो सौ रूपये मुड़िया कर अलग से दिये। जब से स्वेटर मांगे हैं पहन तो सकते नहीं और बाई अलग से उनको ब्लैकमेल करके पच्चीस-पचास झींस ले जाती है। बड़े शोषित रहें हैं हमारे चंदन भाई।
अब तो फैशन की परवाह न करते सिर पर गमछा फेट कर चल देते हैं। श्रीमती जी समझती हैं कि दो दशक पहले के मरद हैं लेकिन कैसे बतायें कि ये वहीं हैं जो जेठ के महीने में भी हैंकी से बड़ा कपड़ा नहीं रखें भले कपार तवंक के टीनशेड हो गया हो। लुंगी तो विवाह के एक साल बाद धारण किये पहिले तो सोने से तक जींस उतरती न थी।
पिछले एकादशी व्रत में बाबू रोड के किनारे बैठ कर गंजी छांट रहे थे तभी उनके पीछे कार से उनकी पुरानी प्रेमिका ने कार मे से ही झोला फेक कर कहा भैया पांच किलो गंजी तौल देना। चंदन बाबू को यह आवाज़ कुछ अपनी सी मालूम हुई। पलट कर जब देखे तो हाथ में गंजी थामे झेंप गये। बेचारे.... उसी प्रेमिका के सामने निरीह दीख रहे थे जिसके लिये महीने में आठ-आठ डेरी मिल्क चाकलेट्स खरीद कर ले जाते थे। गोलगप्पे के दुकान पर दोनों को एक साथ मिर्ची लगती थी और एक साथ सी-सी करते थे। वैसे प्रेमिका समझ चुकी थी कि चंदन बाबू पर विवाह की मार पड़ी है।
कितना मन से गंजी खरीदें थे कि चलकर भूनेगे लेकिन हाय रे समय......कैसे शौक और जवानी को दीमक चाट गया।
सुबह तड़के दूध का डब्बा टांगे निकल जाते हैं खटाल और अपने सामने दूध दुहवा कर लाते हैं। कितना जिम्मेदारी ओढ़ लिये हैं न पहिले इत्ती परवाह कहां थी। सब्जी मोटरसाइकिल पर से खड़े होकर खरीदते थे लेकिन अब तो नेनुआ और तरोई की नजाकत चेक करके तौलवाते हैं। तराजू का कांटा जब तक सब्जी की तरफ न झुक जाये मजाल है भुगतान कर दें। चार साल के अंदर पूरी जिंदगी गुलाटी मार गई चंदन बाबू की। अब तो सुस्त मुर्गा हो गये हैं अखबार में सबसे पहिले राशिफल पढ़ते हैं तब जाकर देश-दुनिया की खबर लेते हैं वैसे कैटरीना का इंटरव्यू भी पढ़ लेते हैं लेकिन पढ़ने के बाद कुछ बुझे-बुझे से रहते हैं।
कितना खुश थे न जब शेरवानी पहन कर घोड़ी चढ़े थे लेकिन अब तो खुद घोड़े जैसे जिनगी हो गई है बाबू चंदन की..

रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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