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भोजपुरी कहानिया

सेंट फंटूस का शास्त्रार्थ (व्यंग्य)

सेंट फंटूस का शास्त्रार्थ (व्यंग्य)
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सेंट फंटूस एक सिद्ध धर्मपरिवर्तनकारी संत थे। वे इतने महान थे कि महानता उनके डर से थर थर कांपती थी। धर्मपरिवर्तन कराने में उनका कोई जोड़ न था। इस कार्य मे वे इतने सिद्धहस्त थे कि जिसके पुट्ठे पर हाथ रख दें, वही यीशु यीशु रटने लगता था।
सेंट फंटूस सेंट बनने के पहले एक नम्बर के फंटूस थे, पर फंटूस से सेंट फंटूस बनते ही उनमें अलौकिक शक्ति का संचार होने लगा था। अब उनके छूने मात्र से लोगों की केंसर जैसी बीमारियां ठीक हो जाती थीं, शराबियों की शराब छूट जाती थी, लोगों की दरिद्रता दूर हो जाती थी, और सुख की वर्षा होने लगती थी। सेंट फंटूस अगर कृपा कर देते तो घोर चरित्रहीन पति भी अपनी पत्नी से प्रेम करने लगता था, और दस दस बॉयफ्रेंड रखने की आदी वाईफ अपने पति की लंबी लाइफ के लिए चर्च में प्रार्थना करने लगती थी। कुल मिला कर उनकी अदा निराली थी।
सेंट फंटूस जब इंग्लैण्ड से भारत आये, तो भारत उनके लिए मूर्ख और अज्ञानियों का देश था। उनके अंदर कूट कूट कर यह जज्बा भरा था, कि किसी भी तरह यहां के मूर्ख मूर्तिपूजकों को यीशु के शरण मे ला कर उनका उद्धार करना है। यीशु ने उन्हें इस कार्य के लिए आवश्यक योग्यता भी प्रदान की थी।
सेंट फंटूश ने भारत आते ही धर्मपरिवर्तन का खेल प्रारम्भ कर दिया। उनकी कठिन तपस्या रंग लायी, और धीरे धीरे लोग यीशु के फैन होने लगे। ज्यों ज्यों लोगों की संख्या बढ़ती थी, सेंट फंटूस का जोश भी बढ़ता जाता था और वे दूनी ताकत से मेहनत करने लगते थे। शहर के लोग बताते हैं, सेंट फंटूस लोगों को यीशु की शरण मे लाने के लिए घर घर जाते, हिन्दू देवताओं को गाली देते, हिन्दू कथाओं को झूठा बता कर लोगों को यीशु के अद्भुत चमत्कारों के बारे में बताते। कभी कभी कोई दुष्ट कह देता कि "चुप करो सेंट, इससे अधिक चमत्कार तो हमारे यहां तेलहवा बाबा कर देते हैं", तब भी सेंट गुस्सा नहीं होते बल्कि उसे मनाने का प्रयास करते रहते थे। लोग तो यहां तक कहते हैं कि कभी कभी सेंट यीशु की शरण मे लाने के लिए लोगों के पैर पकड़ लेते थे। जब कोई व्यक्ति पैर पकड़ने पर भी नहीं मानता तो सेंट उसे अंग्रेजी में समझाते- योर गॉड इज सो ओल्ड, सो बोरिंग! लुक माई गॉड, यीशु इज सो प्रिटी, सो हॉट, सो ग्लैमरस।
अब धर्म हो या कुकर्म, भारतीय लोगों को अंग्रेजी तरीके बहुत पसंद आते हैं। लोग सेंट के अंग्रेजी वाले सो हॉट गॉड पर रीझ जाते।
सेंट फंटूस की कड़ी मेहनत रंग लाई, और इतनी लायी कि सड़क पर हर तरफ यीशु के ईसाई दिखने लगे।
सेंट फंटूस की कृपा से सड़क पर लड़कियों को छेड़ने वाले मवालियों से लेकर स्टेशन पर लोगों की जेब काटने वाले जेबकतरों तक में धार्मिक चेतना का संचार हुआ, वे सब यीशु की शरण मे आ गए। गली मोहल्ले के गुंडे, लौंडे-लफ़ाड़े, भी धीरे धीरे यीशु की शरण मे आ गए और उनका कुनबा बड़ा हो गया।
किसी भी नए सम्प्रदाय में सबसे पहले शहर के उचक्के दीक्षा लेते हैं, सेंट फंटूस ने भी सभी उचक्कों को दीक्षा दे दी। अब उनके साथ लोग हो गए थे, अब उनके पीछे भीड़ हो गयी थी।
सेंट के पास यूरोप से खूब पैसे आते थे, उन्होंने धीरे धीरे शहर के बाहर तीन एकड़ जमीन खरीद कर चर्च बनवा लिया और वहीं से उपदेश देने लगे।
सेंट अब हिन्दुओं को सरेआम बहस की चुनौती देते, और अपने धर्म को वैज्ञानिक, तार्किक, आधुनिक और जाने क्या क्या बता कर हिंदुओं को पिछड़ा, मूर्ख बताते थे।
वे मंच से कहते- हमनें दुनिया को अंग्रेजी चिकित्सा दी, हमने मोटरसाइकिल, कार, जहाज दिया, हमने मिसाइल, तोप, परमाणु बम, राइफल पिस्टल दिया, यह सब यीशु की कृपा से ही तो मिला। है किसी पण्डित में दम तो कहे कि उसके देवता की कृपा से एक रिवालबर भी बना हो।
सेंट की अकाट्य तर्कों से शहर के पंडित डरने लगे थे, अब वे उनसे हरक कर रहते थे। सेंट ने असंख्य लोगों को अपने इस तरह के तर्कों से मोहित कर यीशु की शरण दिलायी।
सेंट सरेआम कहते कि मेरे पास दुनिया के हर प्रश्न का उत्तर है, पर मेरे प्रश्नों का उत्तर किसी हिन्दू के पास नहीं।
सैकड़ों लोगों ने सेंट को तर्कों में हराने का प्रयास किया, पर खुद हार कर मजबूरी में इसाई बन गए। कभी कभी जब सेंट हारने लगते तो उनके पूर्व-उचक्के बुद्धिजीवी चेले बवाल काट कर उन्हें विजयी घोषित कर देते।
सेंट का डंका बोल रहा था।
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उसी शहर में एक गंजेड़ी रहता था। गंजेड़ी स्वभाव से ही उज्जड और दूसरे की बात काटने वाले होते हैं। गंजेड़ी सेंट की लोकप्रियता से चिढ़ा रहता था। उसे पता था कि यह झूठा यूँही लोगों को मूर्ख बना कर धर्मपरिवर्तन कराता रहता है, पर कोई उसे रोक नहीं पा रहा है। आखिर एक दिन गंजेड़ी ने चर्च जा कर सेंट के सामने ताल ठोक दी, कि यदि सेंट ने मेरे एक सवाल का जवाब दे दिया तो मैं शहर के सभी गंजेड़ीयों के साथ यीशु की शरण मे आ जाऊंगा, पर यदि सेंट मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे सके तो उन्हें हिन्दू होना पड़ेगा।
सेंट ने सोचा, जब शहर के बड़े बड़े पण्डित मुझसे हार गए तो इस कमबख्त गंजेड़ी की क्या औकात है। उन्होंने चट से चुनौती स्वीकार कर ली।
शास्त्रार्थ का दिन तय हो गया। शहर में बात का हल्ला हो गया।
शहर के लोगों को एक बड़ा ही मनोरंजक तमाशा हाथ लगा था, हर मोड़ पर इसी की बातें होती थीं। उधर सेंट भी इस मौके को भुनाना चाहते थे, उन्होंने भी इसका खूब प्रचार प्रसार किया। उन्होंने इसके लिए बड़ा इंतजाम भी कराया।
चर्च के पास शास्त्रार्थ के लिए बड़ा मंच बना था, और श्रोताओं के लिए शामियाने तन गए थे।
तय दिन को चर्च के पास भयानक भीड़ हो गयी। सामियाना खचाखच भर गया। शहर के सारे लोग तो आ ही गये थे, अगल बगल के गांवों से भी लोग तमाशा देखने पहुंचने लगे। सारांश यह कि शास्त्रार्थ की फ़िल्म सुपरहीट हो गयी।
मंच पर सेंट ऊंची कुर्सी लगा कर बैठे, और गंजेड़ी बगल में आ कर खड़ा हो गया। लोगों ने जोर से चिल्ला कर शास्त्रार्थ प्रारम्भ करने की मांग की।
गंजेड़ी ने भीड़ को प्रणाम किया, और बोला- भाइयों! मुझे सेंट से सिर्फ एक प्रश्न पूछना है, बस उसी पर निर्णय हो जाएगा। पर पहले सेंट से पूछ लिया जाय कि क्या वे अब भी मेरी शर्तों को मानते हैं?
लोगों ने आवाज लगाई, सेंट ने मुस्कुरा कर हां में सर हिलाया।
गंजेड़ी मुस्कुराया, और बोला- तो मेरा प्रश्न यह है, कि "बोंक क्यों बसाते हैं?" मतलब बोंक(मेल गोट) क्यों बदबू मारते हैं?
शामियाने में बैठी जनता उछल पड़ी, दस हजार लोगों के ठहाकों से इलाका कांप उठा।
सबने देखा- सेंट अपने गले के क्रॉस से सर खुजला रहे थे।
अगले दिन लोगों ने देखा- सेंट फंटूस चौराहे पर बैठे हरे राम हरे राम गा रहे थे।
कुछ ही दिनों में सेंट की गिनती शहर के श्रेष्ठ गंजेड़ीयों में होने लगी। अब वे एक कस में ही चिलम सुलगा देते थे।
दस दिन पहले सेंट फंटूस मर गए। उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था कि उनको चंदन की लकड़ी से जलाया जाय।
शहर के गंजेड़ीयों ने उनकी यह इच्छा धूम धाम से पूरी की।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार

श्रधेय सनातन कालयात्री को जन्मदिन की अनंत शुभकामनाओं के साथ सदर समर्पित।
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