धियापूता की अप्रत्याशित सफलता का फंडा
BY Anonymous28 Oct 2017 11:34 AM GMT

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Anonymous28 Oct 2017 11:34 AM GMT
आओ बताएँ तुम्हें..
फंडे का फंडा..
ये नहीं प्यारे..
कोई मामूली..धंधा..
इसमें छुपा है..जीवन का...फलसफा..🤔
गोविन्दा...का एक गाना था....फिलिम....फार्गाट...मने भूल गया...। संजू बाबा भी थे...
तो...जीवन भी एक फंड है...समय,श्रम,.....सहयोग।
पुरुआ की #धियापूता ...एक क्राउड फंडिंग जैसी संकल्पना पर चलकर बनी है। कलाकारों ने भी उदारता से काम किया।
जब बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बनी थी..तो मालवीय जी घर घर गये थे ....भिक्षाम् देहि....!
किसी यज्ञ में समिधाएँ जुटाना हमेंशा कठिन काम रहा है। समिधाओं की सात्विकता का भी सवाल है।कोई..लूट का माल भी इन्वेस्ट करता है....कोई लूटने को भी।
किसी यज्ञ में स्वेच्छा से आहुति देने का जमाना नहीं रहा। कई बार यज्ञकारी बाबा कुछ और निकल आते हैं।
फिर भी...
जहाँ पारदर्शिता है......प्रश्न सुने जाँय ....प्रेम हो....विश्वास हो.....भावना ठीक हो....वहाँ.....ईश्वर भी सिर पर हाथ रख देते हैं।
फिर......
एक आदमी के अनेक हाथ हो जाते हैं। वह खुद का बावन बीघा पोदीना बोकर.....खुद उखाड़ता है। फिर....
मोथा भी कोड़ लेता है......
फिर........
मुझे फंड का फंडा समझ नहीं आता.......शब्द....खिलौने हैं....खेल लेता हूँ.......जहाँ....कोई प्यार से बुलाए......मरने भी चला जाता हूँ.......
जिस मरने से जग डरे.....
मेरे मन....आनंद।
वेद प्रकाश मिश्रा
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