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भोजपुरी कहानिया

"फुलेसर के कोहनाइल"

फुलेसर के कोहनाइल
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फुलेसर के कोहनाइल बिहार के बिजुली जइसन ह. बिहार के बिजुली कब आई आ कब जाई, एकर कवनो ठेकाना नइखे. ओही तरे फुलेसर कब कोहना के खाइल छोड़ि दीहें, दइबे जानेलें. हप्ता में लगभग आठ दिन त जरूर कोहनालें. मलिकाइन का साथे टोला- मोहाला के लोग केतनो मनावे, जले भुवर ना आके मनावसु, तले का मजाल कि पानिओ पियसु?
अब काल्हिए के बात सुनि लीं. मलिकाइन गोधना के बेरहिन, रसिआव आ आलोदम बनाके, बहुते प्रेम से खएका परोसली. फुलेसर खूब धेयान से देखलें, जइसे सीआइडी सिरियल के जासूस भोजन में जहर सूँघत होखे. ई देखके मलिकाइन मनहीं- मन गोधनबाबा के गोहरावे लगली- ' हे गोधनबाबा, जवनिंगा मंथरवा केकई के मति फेरले रहे, ओही तरे रउरो कुछ अइसन करीं कि आजु बरिस- बरिस का दिने त मलेछहू कवनो मीन-मेख निकालके थरिया ना पटके पावसु.'
बाकी, एको गोहार कामे ना आइल, थरिया पटकाइए गइल. सगरे गोहार धिकल तावा पर दू- चार बूँन पानी नियर बिला गइल. खएका भरि अंगना छिटा गइल, जइसे केहू खेत में गोहूँ के बिया छिट देले होखे. भइल ई कि फुलेसर पूछलें कि आज गोधन का दिने गोझापीठा काहें ना बनल ह? मलिकाइन आपन मजबूरी गनावते- बतावत रहि गइली कि बिहाने से घर- आंगन करत, सरापत, गोधन कूटत आ रसोई बनावत बेरा ना मिलल ह. साँझि बेरा उहो बनि जाई. बाकी, फुलेसर के बीखि त नाकहीं पर रहे. कहलें कि ले तब तेहीं खो आ लरिकन का गेंना का तरे थरिया फेंक दिहलें. थरिया का झनझनाहट जइसन मलिकाइनो के देह झनझना गइल आ मन में सोचि लिहली कि आजु कुछऊ हो जाई, मनावे त नाहिंए जाएबि.
अगलो- बगल के लोग गोधना के मेला करे चलि गइल रहे. भुवर के त अता- पता ना रहे. दिन बीतल, राति भइल. आजु केहू मनावेवाला ना आइल. दुनू बेकत सुति गइल लो. भूखे अंघी त लागत ना रहे. करवट बदलत आधा रात हो गइल. फुलेसर भूखे कुल्हुरत रहलें. उनका बुझाउ कि पेटवा में बीस- बीस गो मूस हे पार से हो पार ले बिना ब्रेक लगवले कूदतारे सन. मलिकाइन के तनकी भर आँखि झपल. फुलेसर का भूखि रोकाइल ना. धीरे से उठिके घर में गइलें आ दिनहीं के खएका काढ़िके खाए लगलें. खएका काढ़त में बरतन खड़खड़ाइल त मलिकाइन का बुझाइल कि रसोइया घर में कुक्कूर ढुकल बा. हाली- हाली में एगो डंटा उठाके रसोईघर में राजधानी एसपरेस जइसन धउरल गइली. फुलेसर बइठिके खात रहलें. आव देखली ना ताव. अन्हारे चिन्हाइल ना. दिनभर बेगरजे उपासला के रीसि रहबे कइल, कुक्कूर का भक्के हुमचि डंटा फुलेसर का कपारे पर जमा दिहली. फुलेसर आँइ-आँइ करत गिरि गइलें.छपटात आ हाथ से कपार दबले चिल्लाए लगलें. निखिदिन गारी देत कहलें-' आजु त हमार गोधन कुटिए दिहले, रे सत......'



सुभाष_पाण्डेय
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