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भोजपुरी कहानिया

"गेना हमरा ओरी फेक"

गेना हमरा ओरी फेक
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"गेना हमरा ओरी फेक." मंटूआ से शहर से छुट्टी में गाँव आईल प्रिंस कहले अउरी उ गेना उनका ओरी फेक देहलस. प्रिंस के डैड भी पीछे से सुनत रहल.
"what are you doing बेटा?" उ खिसिया के कहले "what i had told you before leaving delhi? playing with them is okay but don't spoil your language."
"sorry dad. i will take care" प्रिंस कान पकड़ के कहले अउरी उनकर डैड संतुष्ट हो गईले.
कवनो लईका के कुछु ना बुझाईल पर इ जरूर समझ में आ गईल कि प्रिंस अउरी उनकर डैड ओही गाँव के भईला के बाद भी एगो अलग श्रेणी के आदमी रहे लोग. पास ही चिंटूआ के पापा भी खड़ा रहले. एही बीच पनसा एगो भोजपुरी गाना गांवे लागल अउरी चिंटुआ भी ओकर साथे गुनगुनाये लागल.
"काहे एतना तेज गा रहा है रे ?" चिंटुआ के पापा कहले "अपने साथ साथ चिंटू का भी कान बहिर करेगा का ?"
पनसा डेरा के चुप हो गईल अउरी चिंटुआ भी. सब लईका भौचक रहल सन कि चिंटुआ कहिया से चिंटू हो गईल अउरी गाँव में सबसे खाटी भोजपुरी में बात करेवाला ओकर बाबूजी काहे आज हिंदी में बतियावतारे.
"आज के बाद इन लोगो के साथ गाना गाया कभी तो, टंगरी मिमोर दूंगा" उ चिंटुआ के चेतवले अउरी फिर प्रिंस के डैड के तरफ मुखातिब होके कहले "गाँव का गवार है सब. कुछ बुझता नहीं है. पर दिक्कत ये है कि अब बच्चा खेलने दूसरा गाँव नहीं नु जाएगा."
उहो ऐ मजबूरी के समझत रहले अउरी मूडी हिला के आपन सहमति देखवले. कुछ देर बाद बच्चन के खेल ख़तम हो गईल पर ढेर सारा सवाल अनुत्तरित रह गईल. ऐ सब सवालन के जबाब एके आदमी दे सकत रहे अउरी उ रहले फतीगन बाबा. शाम के सब लईका उनका के घेरले रहल सन.
"बाबा गाँव के लोग गवार होला का?" सब बात बता के पिंटूआ पूछलस "आखरी चिंटुआ त कबो शहर भी नईखे गईल फिर ओकर बाबूजी काहे ओयिसन कहले?"
"इ कवनो अचरज वाला बात नईखे. बाबू छोट द्वारा बड के नक़ल कईल, प्रकृति प्रदत्त गुण ह. आज तक तह लोग केहू बड के छोट के नक़ल करत देखले बाड़ लोग'. देखबो भी कईसे लोग. बड कभी छोट के नक़ल ना करेला जबकि छोट हरदम बड जईसन बने चाहेला. चिंटुआ के बाबू जी भी एही गुण के प्रदर्शित करत रहले. प्रिंस के डैड के अंग्रेजी में बोलल देख उनके इ लागल अगर हम भोजपुरी बोलब त हमहू पिछड़ा ही लौकेब ऐ लोग के नजर में. ऐ वजह से उ आपन माई भाषा छोड़ के टूटल फूटल ही सही पर एकरा से ज्यादा कुलीन माने वाला हिंदी भाषा बोलले."
"पर बाबा प्रिंस के बाबूजी भी भोजपुरिया ही न हवे" निकेश्वा सोच के पूछलस "फिर उनका काहे अईसे ऐलर्जी बा"
"इहे नु भोजपुरी के दुर्भाग्य बा बबुआ" बाबा कहनी "आज भोजपुरी चक्की के दू पाट में पिस रहल बिया. एक पाट में उ बा जे तनी पढ़ लिख के समाज में एगो रुतबा पा लेले अउरी ओकरा मन में इ बईठ गईल बा कि इ गवार लोग के भाषा ह अउरी उ एके लिखे, पढ़े अउरी बोले से भागता. दूसरा पाट में उ लोग बा जे पहिला पाट के देख के ओकरा खान बने के कोशिश में बा अउरी ऐ डर से कि कहि ओके लोग भी गवार ही ना बुझ लेउ अईसे भागता. बीच में भोजपुरी आटा नियर पिसा रहल बाड़ी."
बच्चा कुल के सब सवाल के जबाब मिल गईल रहे, प्रिंस के डैड के अंग्रेजी वाला बात छोड़ के.
"बाबा ओ अंग्रेजी के मतलब का रहे? कवनो ढेर ज्ञान वाला बात रहे का उ" प्रदीपवा पूछलस.
"कुछु खास ना हो" बाबा हँसत कहनी " उ कहले की बबुआ तू इ का करतार? तहके दिल्ली छोड़े से पाहिले हम का सिखवले रहनी. ऐ लोग के साथे खेलल त ठीक बा, पर एही लोग के भाषा में बोलके आपन भाषा काहे ख़राब करतार अउरी जबाब में प्रिंस कहले कि डैडी हमके क्षमा क द. हम आगे ऐ एकर ध्यान रखेब."
"इ बात" सब लईका कहल सन अउरी मन में संकल्प लेहल सन "अब आगे से उ आवस हमनी के साथे खेले. बस अन्ग्रेजिये छाटत रहिये पर खेल कबो ना पहिये.


धनंजय तिवारी
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