Janta Ki Awaz
भोजपुरी कहानिया

ऐतिहासिक झूठ या झूठा इतिहास २

ऐतिहासिक झूठ या झूठा इतिहास २
X
" जोधाबाई"

वामी इतिहासकारों और भारतीय गौरव की हँसी उड़ाने वालो का एक बहुत बड़ा हथियार है-एक काल्पनिक नाम "जोधाबाई"। आज आप किसी से पूछें कि जोधाबाई कौन थी, तो भारत का बच्चा बच्चा कह देगा कि जोधाबाई अकबर की पत्नी, अम्बर नरेश भारमल की पुत्री, और मुगल शासक जहाँगीर की माँ थी। पर यदि ऐतिहासिक दस्तावेजों को खंगालें तो "जोधाबाई" भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी झूठ साबित होगी।
कुछ दिन पहले पद्मावती मुद्दे पर छिड़ी बहस में कुछ इतिहासकारों ने कहा कि पद्मावती का जिक्र
पद्मावत से पहले किसी पुस्तक में नहीं मिलता, इसलिए हम पद्मावती को मात्र एक काल्पनिक पात्र मानते हैं। अब यही बात "जोधाबाई" के विषय मे कहें तो जोधा बाई का जिक्र "के.आसिफ" की फ़िल्म मुगलेआजम के पहले कहीं नहीं मिलता। आपको आश्चर्य होगा पर सत्य यही है। कुछ इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में हरकबाई, हिराकुंवारी, रुक्मावती आदि लिखा है, पर इसमें कोई शक नहीं कि यह पूरी तरह से फर्जी है।
तमाशा देखिये, इतिहासकारों में अकबर की अन्य पत्नियों सलीमा सुल्तान बेगम, रजिया बेगम, कासीमा बानो बेगम, और बेगम दौलत शाद के नाम में कोई असहमति नहीं है, दोमत है तो सिर्फ जोधाबाई के नाम में। जबकि जोधाबाई यदि हिन्दू कुमारी थी, तब तो उसका नाम ज्यादा स्पस्ट और चर्चित होना चाहिए, क्योंकि वह अकबर की सबसे महत्वपूर्ण पत्नी और जहाँगीर की माँ थी।
तनिक सोचिये तो, जिस तरह से आधुनिक इतिहासकारों ने कहा है कि भारमल का अपनी पुत्री से अकबर का विवाह करना एक युगान्तकारी घटना थी, और अकबर की इसी नीति के कारण राजपूत मुगलों के निकट आये जिसके कारण मुगल साम्राज्य स्थाई हो पाया, तो अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने 2000 पन्नों में आईना-ए-अकबरी, और अकबरनामा लिखने के बाद भी इस घटना का एक पंक्ति में भी जिक्र क्यों नहीं किया?
चलिए अबुलफजल को छोड़िये, मान लिया कि वह भूल गया होगा, पर कथित रूप से जोधाबाई का पुत्र जहाँगीर अपनी जीवनी "तुजुक-ए-जहांगीरी" लिखते समय इस घटना को कैसे भूल गया? क्या ऐसा हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपनी जीवनी लिखते समय अपनी माँ को ही भूल जाय?
इसी क्रम में झूठ की पराकाष्ठा देखिये- एक तरफ तो अकबर को धार्मिक रूप से उदार बताते हुए कहा जाता है कि उसने अपनी हिन्दू रानी को हिन्दू रिवाजों के साथ रहने की इजाजत दी, पर साथ ही साथ यह भी बताया जाता है कि उसने बाद में जोधाबाई का नाम बदल कर "मरियम जमानी" रख दिया। अब इससे ज्यादा हास्यास्पद और क्या होगा कि एक तरफ इतिहासकार जोधाबाई के "मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे" गाने को भी सही कहते हैं, और दूसरी तरफ उसे मरियम जमानी भी बताते हैं।
असल में सत्य यह है कि अकबर को उदार और महान बताने के लिए ही यह सारी कहानी गढ़ी गयी। हालांकि अकबर की धर्मिक उदारता तो बस इसी से साबित हो जाती है कि महान संगीतकार तानसेन और राजा बीरबल तक को धर्म परिवर्तन करना पड़ा था।
मरियम जमानी को जोधाबाई बताना उतना ही झूठ है, जितना झूठ अकबर का उदार होना है।
मरियम उज्जमानी की कब्र आज भी मरियम जमानी की छतरी के रूप में मौजूद है, जहां उसे मुस्लिम रिवाज के अनुसार दफनाया गया था। आप चाहें तो अब भी वह खंडहर देख सकते हैं, जो अकबर की कथित उदारता, और मरियम जमानी के जोधाबाई होने के सत्य को मुह चिढ़ा रही है।
सत्य यह है कि जब मानसिंह अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बाद मुगल दरबार मे शामिल हुए और अकबर की ओर से राजपूतों के विरुद्ध ही लड़ाइयों में भाग लिए, तो समूचे राजपूतों के लिए अछूत जैसे हो गए। पूरे राजपुताना ने उनका तिरस्कार किया। और इसी का फायदा उठा कर जब वामपंथी इतिहासकारों ने जोधाबाई का किस्सा गढ़ा, तो किसी ने इसका विरोध नहीं किया, क्योंकि हल्दीघाटी के अपराधी मानसिंह और उनके खानदान के प्रति किसी के अंदर वह सम्मान का भाव नहीं था, जो अन्य राजाओं के लिए था। सो बड़ी सफाई से जोधा का किस्सा गढ़ लिया गया, और अकबर महान हो गए। किसी ने यह नहीं पूछा कि यदि मरियम हिन्दू थी तो उसके बेटे को सुल्तान बनाने की इजाजत मुगल दरबार के मौलवियों ने कैसे दे दी।
मुगलों के हरम में जितनी भी हिन्दू स्त्रीयां थीं, सब युद्धों में लूटी गयी स्त्रियां थीं। ठीक उसी तरह, जिस तरह खिलजी ने देवलदेवी को लूट कर अपने हरम में शामिल किया था। मरियम उज्जमानी भी पश्चिमोत्तर के एक मुश्लिम अमीर की बीवी थी, जिसे लूट कर अकबर ने अपनी बीवी बना लिया। जोधाबाई का कोई अस्तित्व नहीं था।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
Next Story
Share it