"चंदनिया प्रीत"
BY Anonymous11 Dec 2017 12:39 PM GMT

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Anonymous11 Dec 2017 12:39 PM GMT
बात तब की है जब मुँह में 'तिरंगा' और जुबान पर 'जा झार के' वाली पनीली तान थी ..., तब रेडियो पर विविध भारती बजती थी ..., तब टाटा इंडिकॉम का 'नया टुनटुना' आया था ...., तब अल्ताफ़ राजा का 'जा बेवफा जा...तुझे प्यार नहीं करना' चोट खाये मुलाजिमों की पहली पसंद थी ..., तब चिट्ठीयां प्रेम संग सूखा-पिचटा गुलाब लिये सरसो के खेत मे मिलती थी ..., तब दो दिलदार दिल भी हुआ करते थे ..., एक प्रीति और एक चंदन ।
इशकजादे चंदन की प्रीत ओढे प्रीति चंदनिया हुई जा रही थी , लेकिन पहल के अभाव में भाव एवं भावनाओं की मंगनी भी न हो पाई थी अभी,,,,,,न तो शुभ नक्षत्रों का संयोग जुट पा रहा था न ही डीह बाबा , काली माई की अगरबती - मोमबत्ती , धूप - सकील वाली भभूति ही काम आ रही थी।
"तमाम तरह की मौजूद फ्लू के बीच 'प्रेमफ्लू' दुनिया का एकलौता ऐसा ज्वर है जिसमें बदन तपता नहीं जम जाता है"
इस अवस्था में प्रेमी दिलों की हलचल अगर कोई महसूसता है तो वो है बेचारा आईना...।
अजय देवगन कट से लेकर तेरे नाम कट तक दुनिया सफर कर चुकी पर जो चिर , अपरिवर्तित है अब तक , वो है आँखों में ढाई किलो मोहब्बत और बालों में पौने दो सौ ग्राम करुआ तेल पोत आईने में खुद को निहारते हुए गुनगुनाना !
'भोली सी सूरत,,,,आँखों में मस्ती,,,दूर खड़ी शरमाये,,,आये हाय!'
हाय रे प्रेम ...
अचानक से रातें बड़ी लंबी हो गई थी ..., नींद जो न आनी थी ..., नींद भला कैसे आये जब आँखों में 'वो' आ गये थे और तब 'इंडिया डिजिटल' भी कहाँ हुई थी । चंदन का ख्वाब राजनीति की घोषणापत्र बन गई थी और उधर प्रीति की करवट नेता जी के बयान की तरह कभी इस तरफ कभी उस तरफ...
'प्यार बिना चैन कहाँ रे....' हाय रे...
खैर ! खरमास के बाद मधुमास भी आता ही है !
माहे दिसंबर साल समेत अंत की तरफ अग्रसर था पर कुछ तो था जो अभी भी बाकी था , अटक गया था कहीं...
मिलते तो नदी के दो किनारे भी है ..., बस नियति का बाँध भर हो!
'प्रीति जी ! हमको कुछ कहना है '
'क्या ? कहिये '
'आप न हमारे गांव ही रुक जाइये'
'यहीं कहना था..?'
'ह....न,...न....आप न साड़ी में बड़ी अच्छी लगेंगी'
'ये कहना था ?'
'हम्म्म्म ..., न ..., आप न हमको बहुत अच्छी लगती हैं'
'अच्छा जी ! हम तो सबको अच्छे लगते हैं तो ? '
'मने हम दिल मे बसाना चाहते हैं आपको , अपना बनाना चाहते हैं आपको'
'
'अच्छा! तो आपका दिल , दिल्ली की कॉलोनी है ?
'मेरा मतलब है कि हम आपसे बहुत प्रेम करने लगे हैं ..., हम अब किसन भगवान के कसम खाये हैं आपही के साथ जीना आपही के साथ मरना है ...., हम न जी पायेंगे आपके बिना '
चंदन की मोहब्बत की मिसाइल छूट चुकी थी और इस यंत्र की सफलता की तस्दीक़ ही थी कि प्रीति लाज की चंदनिया में नहा गुलाबी हो चली थी।
पैर की उँगलियों से मिट्टी कुरेदते हुए मद्धिम स्वर में प्रीति भी बोल पड़ी 'ए जी ! प्रेम तो हम भी आपसे करते हैं '
और चंदन जब तक इस जवाबी झटके से उबरते तब तक प्रीति लज्जाते हुए भाग चुकी थी ।।
सुने थे कि बड़ा नशा था उस मोहब्बत में !
आप सुने थे???
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संदीप तिवारी 'अनगढ़'
"आरा"
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