जानती हैं डार्लिंग जी, आज हमारा बर्थडे है....
BY Anonymous12 Jan 2018 11:43 AM GMT
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Anonymous12 Jan 2018 11:43 AM GMT
गांव की नवकी बहुरिया सब भले डेढ़ इंच के मुह पर पौने चार किलो किरीम पोत लें, पर घर से पचास पचास घर दूर जब किसी का बेटा जवान होता है तो माँ कहती है, हे भगवान बहु देना तो अभिनव बो जैसा देना। गांव के चंवर में उंख तोड़ कर खाते खाते जब नवविवाहित लौंडो में मेहरचर्चा छिड़ती है तो एक स्वर में सभी स्वीकार कर लेते हैं कि बीबी के मामले में गांव के सबसे खुशनशीब ब्यक्ति हैं अभिनव पाण्डेय।
लोग कहें भी क्यों न, डोली से छम छम करती बांस की दौरी में डेग डालते उतरने के दो साल के अंदर ही सारे गांव ने जान लिया था कि अभिनव की पत्नी झाँसी की रानी की मौसीआउत बहिन है। रूप ऐसा कि बियाह के दिन ही अभिनव बाबू अपना सारा सटिफिकेट उनके चरणों में रख के बोले- मुझे हमेशा अपना दास समझना देवी, यूपी बिहार के छोकडे परीक्षा में चीट करना छोड़ सकते हैं, पर मैं नारायण दत्त तिवारी की सपथ ले कर कहता हूँ, तुम्हारे चरणों से दूर जाने की सोचूंगा भी नही। और आज तक वचन निभाते भी आये हैं... किसी दिन सुबह सुबह क्लीनिक जाते समय अगर देवी की मोहिनी मुस्कान के साथ वक्र दृष्टि डाकदर साहब पर पड गयी तो दिन भर मरीजों को पकड़ पकड़ कर फ्री में पी एस वाला अल्बेंडाजोल बांटते रहते हैं।
पर गांव सिर्फ सुंदरता से मोहित हो कर बड़ाई नही करता। बड़ाई की वजह तो कुछ और ही है। एक दिन यूँ ही अभिनव बाबू का किसी पटीदार के साथ लफड़ा हो गया। अब वह कमबख्त आ कर लगा उनके दुआर पर बवाल करने। बवाल बढ़ कर लठा लाठी तक आने ही वाला था कि अचानक घर से रौद्र स्वर में डमरू की आवाज आने लगी, और इससे पहले कि लोग कुछ समझें, घर से एक भाला उड़ता हुआ आया और उसका घुटना छेदता हुआ लिबर में घुस गया। उधर लोग भौचक हुए और इधर कड़क नारी स्वर में आल्हा सुनाई देने लगा-
लाखन शीश उड़े अम्बर में और रक्त से धरा नहाय,
जब आल्हा के भाला चमके मर्दों केभी गर्भ गिर जाय
क्षण भर में ही माहौल महाभारती हो गया। हाथ जोड़ कर थर थर कांपने लगे विरोधी। दौड़ कर घर के अंदर गए अभिनव बाबू और आल्हा गा कर ही किसी तरह अर्धांगिनी को शांत कराया। तब से गांव की सभी औरते देवी जितना आदर करती हैं उनका..... सती है सती, पति की विपति पर मति बदल कर दुर्गा हो जाती है।
तो इस अद्भुत देवी का वर्णन और उनकी प्रेम कथा किसी और दिन सुनाएंगे, आज तो बस यह जानिए कि पिछले बारह जनवरी को क्या हुआ था।
फजीरे उठ कर नहा धो कर अभिनव बाबू ने देवी का चरण स्पर्श किया तो देवी ने नित्य की भांति पीठ ठोक कर आशीष दिया- मस्त रहो।
पर याचक खड़ा रहा....
देवी ने कहा- क्या हुआ? जा क्यों नही रहे, देखते नही कितने काम पड़े हैं। अभी हमे व्रश करना है, फिर मेकअप करना है, फिर खाना है, फिर मेकअप करना है, फिर महकता आँचल पढ़ना है, फिर मेकअप करना है, फिर श्रीमुख की कहानियाँ पढ़नी हैं, फिर मेकअप करना है, फिर खाना है, फिर मेकअप करना है, फिर...,.......... और एक आप हैं कि अबतक चार पराठे भी नही पका पाये।
- हें हें हें हें , उ त बनिए जायेगा पर जानती हैं डार्लिंग जी, आज हमारा बर्थडे है....
हाँइ.... आपका बर्थडे है और आपने हमे बताया भी नही? मन तो करता है कि बैठा कर आपको "हंस" पढ़ने की सजा दें, पर जाइए छोड़ देते हैं। जल्दी से दस बार उठक बैठक कीजिये....
अभिनव बाबू ने जल्दी से दंड बैठक किया और तन कर मुस्कुराते हुए खड़े हो गए। अर्धांगिनी ने भी अखिलेश यादव की नाक जैसी सीधी मुस्कान छोड़ी और कहा- आइये शाम को आपके लिए गिफ्ट बना के रखेंगे।
दिन भर मन में लड्डू फूटता रहा अभिनव बाबू के मन में। ख़ुशी का आलम यह था कि कमरदर्द के मरीज को सिप्रोफ्लोसासिन दे देते तो खजुअट के मरीज को रिंग गार्ड दे कर कहते, जाओ रोटी से बोर के दिन भर में तिन बेर खाना।
शाम को जब घर पहुचे डाकदर साहेब तो देखे की साढ़े सताईस किसिम का ब्यञ्जन बना हुआ है और अर्धांगिनी हाथ में सटका ले के मुस्कुराती हुई इंतजार कर रही हैं। किसिम किसिम का डिस नाक दाब कर किसी तरह खाने के बाद अकेले में मुस्किया के बोले अभिनव बाबू- तब डार्लिंग जी, हमार गिफ्टवा क्या हुआ?
डार्लिंग जी ने उन्ही के अंदाज़ में मुस्किया के कहा- भक, बाजार से खरीद कर अकट बकट तो कोई भी दे देता है, पर आज आपके जन्मदिन पर मैं एक वचन देती हूँ कि आज के बाद कभी भी मैं भूल कर भी आपके ऊपर हाथ नही उठाऊंगी। और अगर उठा भी दिया तो वह बात अपनी किसी सहेली को नही बताउंगी। यह मेरी अखंड प्रतिज्ञा है...................
अभिनव बाबू धन्य हो गए....
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज
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