छोटी सी बिंदिया क्यों ऐसे ही शर्मा जाती है? : जे पी यादव

एक काम करो तुम, अपनी बिंदिया को माथे से लगा कर खुद को शीशे में देखो तो जरा. क्या तुम्हें भी वो लाज से भरी हुई नजर आती है? क्या वो अक्सर ऐसे ही शर्मा जाती है? पूछो उससे ऐसा क्यों है कि जब मैं तुम्हारी तारीफ करता हूं तो वो खुद पर ले लेती है. हर तारीफ के साथ तुम्हारे चेहरे पर अपनी एक अगल छाप छोड़ देना. ऐसा कि वो कह रही हो कि तुम्हारी हर खूबसूरती की असल वजह सिर्फ वो है. तुम्हारी तारीफों की असल हकदार भी वो. शायद...शायद इसी लिए बिना इजाजत तुम्हारी हर तारीफ को वो खुद पर ले लेती है. अब इतनी तारीफों से कोई भी लाज से भर ही जाए, ये तो छोटी सी बिंदिया है, इसमें इसका क्या कसूर.
कसूर तो तुम्हारा है, इस छोटी सी बिंदिया को माथे पर सजा कर तारीफें लूटो तुम और लाज से भर जाए ये बेचारी. लेकिन ये भी जान लो... ऐसा ही रहा तो एक रोज तुम्हारी सारी खूबसूरती का असल इसका होगा. ऐसा के प्रेम तुमसे न होकर इस बिंदिया से हो जाएगा. क्योंकि इसका लाज से भर जाना बहुत ही प्यारा है. इस लिए अपनी तारीफों को जरा खुद तक सीमित रखो, ऐसा न हो इस बिंदिया के प्यार में पड़ जाएं हम.