धृतराष्ट्र-संजय संवाद: क्या फेसबुक स्टेटस की किताब बनाना उचित है?
BY Suryakant Pathak24 May 2017 12:23 AM GMT

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Suryakant Pathak24 May 2017 12:23 AM GMT
धृतराष्ट्र ने दिव्यदृष्टि वाले संजय से पूछा: " हे संजय, क्या फेसबुक स्टेटस की किताब बनाना उचित है?"
दिव्यदृष्टि वाले संजय ने कहा, "नहीं, ये सर्वथा अनुचित है राजन्। और मैं स्कूपपूप की तर्ज़ पर आपको सात कारण बता सकता हूँ!"
धृतराष्ट्र ने कहा, "द हेल मैन! आठ क्यों नहीं? दस क्यों नहीं दिव्य दृष्टि वाले संजय? आजकल तो मैट्रिक सिस्टम का बोलबाला है?"
दिव्यदृष्टि वाले संजय बंगले झाँकने लगे और भुनभुनाए, "साला, वो सात भी कैसे-कैसे पहुँचाए हम ही जानते हैं, और इनको दस चाहिए! हुँह!"
"तुमने कुछ कहा क्या प्रिय दिव्य दृष्टि वाले संजय?" धृतराष्ट्र ने भुनभुनाहट सुनकर पूछा। कोई जवाब ना पाकर उन्हें लगा कि दिव्यदृष्टि वाला संजय भाग तो नहीं गया, "अरे यहीं हो? अब सात कारण बोले हो तो बता भी दो।"
दिव्यदृष्टि वाले संजय पीछे मुड़े और अपनी अलौकिक क्षमता के बल पर आँख बंद करके बोलने लगे, "पहला कारण तो ये है..." तभी धृतराष्ट्र ने उन्हें रोक दिया और बीच में काटकर बोले, "ऐसा करते हैं, कि दो कोक मँगवा लेते हैं, फिर तुम एक कारण बताना, हम उसपर अपना विचार रखेंगे। ठीक है?"
"जैसी आपकी इच्छा राजन्। तो पहला कारण ये है कि किसी भी किताब को लेकर एक curiosity होती है लेकिन जब आप अपनी फेसबुक पोस्ट को किताब बनाते हैं तो आप अपने हाथों पाठक की उस curiosity को मार देते हैं," दिव्यदृष्टि वाले संजय ने फ़रमाया।
कोक का एक सिप लेकर धृतराष्ट्र बोले, "अच्छा ये बताओ कि तुमने कहीं किसी नई दिव्य किताब के बारे में कहा था कि उसपर एक फ़िल्म बननी चाहिए?" संजय ने 'हम्म' कहकर सहमति दी। "तो फिर ये बताओ कि तुम्हारे तर्क से तो किसी भी किताब पर फ़िल्म बनाना मूर्खता ही है क्योंकि क्यूरियोसिटी तो किल हो चुकी है। लोग तो पढ़ चुके होंगे, कई तो मुफ़्त में ही। फिर ये तर्क कहाँ तक सही है?"
"आप दूसरा कारण सुनें राजन्," दिव्यदृष्टि वाले संजय ने चर्चा को आगे बढ़ाए बिना कहा, "स्टेटस की किताब बनाना एक तरह का आलस है। हर अच्छी किताब जो आपने पढ़ी होगी उसमें एक सुर होता है। उस किताब की एक रिदम होती है। स्टेटस से किताब बनाने पर वो सुर नहीं बन पाता।"
ये सुनकर धृतराष्ट्र अट्टहास करके हँसने लगे और सिंहासन से गिरते-गिरते बचे, "अबे! तुम जो दिव्य किताबें पढ़ते हो, उनमें क़िस्में कौन सा सुर था भाई? एक में तो तुमने इतने बड़े क्लासिक की वो हालत की है कि बेचारे सुधा-चंदर सब रो रहे हैं ऐसी श्रद्धांजलि पर! वो किताब इतनी घटिया है कि अमेजन पर फ़्री में रखे हुए बीस पन्नों में तीन पढ़ते-पढ़ते आदमी की इच्छा ख़ुदकुशी की होने लगती है। खासकर उनकी जिन्होंने 'गुनाहों का देवता' पढ़ रखी है। तुम ये दिव्य ज्ञान बाँटना बंद क्यों नहीं कर देते?"
दिव्यदृष्टि वाला संजय थोड़ी देर के लिए चुप हो गया, लेकिन हिम्मत करते हुए आगे बोल पड़ा क्योंकि उसे लगा कि उसने कुछ लिखा है तो वो बोलना निहायत ही ज़रूरी है, "ये बहाना लोग सबसे ज़्यादा बताते हैं कि दोस्त कह रहे हैं कि किताब कब आएगी तो सोचा दोस्तों के लिए किताब ले आएं। ये एक तरह का fraud है। बस बात ये है कि आप अपनी किताब लाने की वजह सही सही समझ लें।"
"ओ हो हो! वैसे ही जैसे कि किसी महान् लेखक का ये सोचना कि उसे हर साल एक किताब छपवानी ही है चाहे वो टट्टी ही क्यों ना हो? तुम्हें नहीं लगता कि ज़बरदस्ती के स्तरहीन, छिछले संवाद डालकर एंटर मार-मार कर एक लम्बी, लेकिन घटिया कहानी को उपन्यास जितना मोटा कर देना भी एक तरह का फ़्रॉड है? दिव्य किताबों के मार्केट में आने की क्या वजह है? यही ना कि उसकी पहली किताब बहुत बिकी है? फिर ये दिव्य ज्ञान क्यों संजय?" धृतराष्ट्र ने फिर संजय के तथाकथित तर्क को काट दिया।
निरुत्तर संजय ने चौथा कारण रखा, "ऐसा नहीं है कि स्टेटस को जोड़कर किताब नहीं बन सकती है। मैं रोकने वाला कौन होता हूँ। लाइक के लिए किताब मत लिखिए। याद रखिए जैसे पहला प्यार दुबारा नहीं होता वैसे ही पहली किताब दुबारा नहीं आती।"
"यार ये फ़िल्मों वाले डायलॉग मत मारा करो। ऐसे ही संवाद और सतही कहानियाँ लिख-लिख कर तुमने हिन्दी लेखन की ले रखी है। ऐसी ही दिव्य संवादों से भरी किताबें बिक रही हैं और उसे तुमने महान साहित्य का पैमाना बना रखा है। सही में तुम रोकने वाले कोई नहीं हो। तुम सिर्फ किसी किताब को अपने पसंद के आधार पर घटिया कह सकते हो, जैसे कि मैंने कहा। लेकिन ये फ़िल्मी डायलॉग वाले कारण देकर किसी को ये कन्विन्स करना कि स्टेटस की किताबें नहीं बन सकती, ये तुम्हारी अकुलाहट दिखाता है... पाँचवा कारण बताओ दिव्यदृष्टि वाले संजय!"
"पाँचवा कारण ये है कि फेसबुक की राइटिंग को बस अपने रफ़ रजिस्टर से ज़्यादा अहमियत मत दीजिये। फेसबुक के स्टेटस से किताब बनाने का मतलब है कि हम रफ़ से फेयर नहीं करना चाहते," संजय ने कहा जिसके पास दिव्यदृष्टि थी।
"फिर तो उस हिसाब से वो दिव्य किताब भी रफ़ रजिस्टर से ज़्यादा नहीं लगती। क्योंकि उसको आँकने वाले नहीं हैं, पढ़ने वाले नहीं हैं, तो इसका मतलब ये नहीं कि वो एक मास्टरपीस हो गई! और हाँ, फेसबुक पर कई लिखने वाले ऐसे हैं जो कई किताबों के पूरे सार से बेहतर बातें एक स्टेटस में लिख देते हैं। कभी अपने बड़े लेखक वाले ईगो को हटाकर, आलोचना के लिए हृदय खुला रखकर, उनको पढ़ना। बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।"
"आप बस हमारी हर बात काटते रहिए," संजय उद्विग्न हो गया, "छठा कारण सुनिए। आप खुद मेहनत नहीं करना चाहते लेकिन दुनिया से चाहते हैं कि वो पूरी मेहनत से पढ़े और बताये। आपके स्टेटस पर हर तरीके का फीडबैक आपको पहले ही मिल चुका होगा।"
"फ़ीडबैक से याद आया कि तुम्हारे ही कोई दिव्य मित्र हैं ना जो अपनी किताबों के फ़ीडबैक ख़ुद लिखकर लड़कियों को इनबॉक्स में पहुँचाते हैं और कहते हैं कि नहीं भी पढ़ा फिर भी पोस्ट कर दो? क्या ये अच्छी बात नहीं कि अच्छे लेखों का एक बंडल पाठकों को एक ही जगह मिल जाए? इस पर कभी गौर करना।" धृतराष्ट्र ने मज़े लेते हुए कहा।
"और सातवाँ कारण ये है कि लोग सोच सकते हैं कि बहुत लोगों की फेसबुक स्टेटस वाली किताब आयीं हैं बिकी भी हैं। लोगों को पसंद भी आ रहीं है फिर मैं क्यों मना कर रहा हूँ। मैं भी यही चाहता हूँ कि आप किताब लिखें। आप अपनी भाषा में बुरी किताब भी लिखते हैं तो आपकी भाषा का दायरा बढ़ता है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप अच्छी किताब लिखने पर मेहनत करें फेसबुक के स्टेटस को किताब बनाने पर मेहनत न करें।" दिव्यदृष्टि वाले संजय ने कहा।
"थैंक गॉड! दिव्य ज्ञान ख़त्म हो गया भाई! झेला दिए! और ये अंतिम कारण में कहना क्या चाह रहे हो भाई? तुम सही में मना करने वाले कोई नहीं होते, वो भी तब जब कोई ढंग का कारण नहीं है। कुछ दिव्य किताबें है जो तुम्हारे तर्क के अनुसार ही अपनी भाषा में लिखी गई बुरी नहीं, बहुत बुरी किताबें हैं, लेकिन इससे उनके भाषा का दायरा कितना बढ़ा ये जानना मुश्किल है," धृतराष्ट्र ने कोक का ग्लास उठाते हुए कहना जारी रखा।
"ये कौन कहता है कि फेसबुक के स्टेटस को किताब बनाने पर मेहनत नहीं करनी चाहिए? ये अच्छी किताब लिखने की तैयारी कैसे नहीं है? क्या वेद के रचयिता को वाले को काग़ज़ के आविष्कार होने तक रुकना चाहिए था? और हाँ उदाहरण तो तुम्हारी आँखों के सामने है कि ऐसे ही स्टेटस से बनी किताब को उसी अमेजन पर जहाँ तुम रिव्यू जुटाने के लिए कैम्पेन चलाते हो, भीख माँगते हो, २०१६ की सर्वश्रेष्ठ किताबों में जगह मिली थी। और वो आज भी अपनी विधा में, अपनी भाषा में नंबर एक पर क़ायम है डेढ़ साल से।"
"तुम उतना ही ज्ञान दिया करो जितना तुम्हारी औक़ात है। और तुम्हारी औक़ात ये है कि तुम दुर्घटनावश लेखक हो गए हो। छपने से आदमी लेखक नहीं हो जाता, बढिया लिखने से होता है। लेखक वो है जो सामाजिक परिस्थितियों को, उसकी विविधताओं को, परेशानियों को, उसकी कठिनाइयों का सरलीकरण करते हुए एक-एक पंक्ति से अपने समय की बात कहता है। लेखक वो नहीं है जो छिछले साहित्य की रचना सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि उसके पास ख़ाली वक़्त है, और टाइप करने के लिए ऊँगलियाँ। ख़ैर, दिव्य ज्ञान लेने वाले लोग नहीं समझेंगे। तुम भी नहीं समझोगे संजय। ये तुम्हारा दुर्भाग्य है।"
धृतराष्ट्र ने अपनी बात ख़त्म की। संजय दिव्यदृष्टि का प्रोजेक्टर लिए निकल चुका था।
अजीत भारती
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