आपके ऊपर है आपका बच्चा आईआईटी जाएगा या शमशान.....!!
BY Suryakant Pathak26 May 2017 3:08 PM GMT

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Suryakant Pathak26 May 2017 3:08 PM GMT
मुझे दसवीं में 73%, और बारहवीं में 58% आए थे। मैं निराश नहीं हुआ था। पहली बात ये थी कि मुझे पता था मैंने उतना ही लिखा था। दूसरी ये कि मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता था क्योंकि मैं पढ़ रहा था साइंस और रुचि आर्ट्स में थी। ख़ैर, मुझे ये पता था कि मुझे क्या अच्छा लगता है, और मैं क्या कर सकता हूँ। स्कूल में पढ़ने में औसत था लेकिन आर्ट्स सब्जेक्ट्स और बाक़ी एक्टिविटीज़ में हमेशा आगे रहा।
जो भी हो, इतने कम नंबर पर दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन भूलने में ही भलाई थी। अतः मैंने पहला साल अंग्रेज़ी ऑनर्स पत्राचार द्वारा स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग से किया और वहाँ 58% लाकर किरोड़ी मल पहुँचा। ये वो कॉलेज था जहाँ का कटऑफ 97% होता था अंग्रेज़ी के लिए। मुझे वहाँ के सारे फर्स्ट ईयर वालों से ज्यादा नंबर थे। और हाँ, इस विषय में 2004 में 50% नंबर बहुत अच्छा माना जाता था।
फिर मास्टर्स किया जिसमें 84% नंबर हैं। इसका मतलब साफ है कि बोर्ड के नंबर न तो मुझे नीचे खींच पाए, न ही मुझे उसका बहुत ज्यादा मलाल रहा। मुझे ये पता था कि मैं कहाँ बेहतर करूँगा। घरवालों ने कभी धकेला नहीं कि ये करो, वो करो जबकि लगभग अनपढ़ माँ-बाप थे। उन्होंने हमेशा यही कहा, "तुम्हारी ज़िन्दगी, तुम देखो हमें तो गाँव से बाहर का भी पता नहीं।"
लेकिन क्या किरोड़ीमल का टॉपर होना, मास्टर्स में 84% लाना मेरी काबिलियत को तय करता है? जी नहीं। बिल्कुल वैसे ही जैसे कि बोर्ड का 58% मुझे ख़राब नहीं बना सकता। ये नंबर तो कहीं से भी आपको नहीं आँक सकते। ऐसे माँ-बाप से भी अनुरोध है कि आप लोग तो पढ़े लिखे हैं, मेरे अनपढ़ माँ-बाप से सीखिए नहीं तो रेल की पटरी पर कटा शरीर आपके बच्चे का हो सकता है। फिर वो कुछ नहीं बन पाएगा, IIT नहीं जा पाएगा। वो काँधों पर जाएगा, श्मशान।
अजीत भारती
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