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व्यंग ही व्यंग

अथ आपिया कथा (२)-------

अथ आपिया कथा (२)-------
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(वृहद परिचय)

राजन्:- मुनिवर मुझे आपिया दल के प्रमुख नायकों का वृहद वर्णन करके बताएं

मुनिवर:-भो राजन्! किसी युग में असुरों के कुलगुरु शुक्राचार्य ही कलिकाल में आपियों की उत्पत्ति के जिम्मेदार होंगे,

उस समय गुरुशुक्राचार्य अपने पूर्व के सतकर्मों के तप से अपनी कानी एक आँख को सुधार लेंगे परन्तु ब्रह्मा जी के श्राप वस कलिकाल में नाक मोटी हो जाएगी जिसकी घ्राण शक्ति भी तीव्र होगी और इसी गुण से वह कलिकाल में धरना करने की कला विकसित करेगा तथा धरने का अवसर जानने में समर्थ होगा ।
हे राजन्! कलिकाल में यही शुक्राचार्य गन्ना खुजारे नाम से प्रसिद्धि प्राप्त करेगा और यही गन्ना ही आपियों की वंशावली की उतपत्ति करेगा!
राजन्, इसी का शिष्य जोकि त्रेता युग में कैकसी नामक राक्षसी के उदर से जन्म तो लिया था परन्तु ऋषि विश्श्रवा की सन्तान थी वह परमज्ञान को प्राप्त करता है जो कि विभीषण नाम से ख्यात होगा जो कलिकाल में चलकर आपियों की नीव धरेगा और हगेंद्र जाधो नाम को प्राप्त करेगा!!

राजन्:- मुनिवर, आगे

शुकदेवजी महराज:- राजन्! समुद्र मन्थन के समय एक कोड़िल नामक मूढ़ अज्ञानी राक्षस था जो कि मंथन के समय दिव्य वस्तुओं की प्राप्ति के लिए वासुकी नाग के मुख के सम्मुख ही पकड़ लिया , मन्थन के समय वासुकी जी की विषमयी गर्म श्वासों से तप्त होकर वह कोयला सदृश दिखने लगा,
जो कलिकाल में आशुटोप नाम को प्राप्त होगा, यह मूढ़मति आपियों का परभौकता पद को प्राप्त होगा!

राजन्! त्रेतायुग में मय दानव की बेटी रावण की पत्नि मंदोदरी ही रामनाम का अज्ञानता वश उच्चारण अधिकाधिक मात्रा में कर ली थी, जिससे वह कलिकाल में श्राप वश आपियों की रानी राजिया इम्ली तो बनेगी पर बाद में वह आपिया पाप से मुक्त हो जाएगी!

राजन्! आदिकाल में मधु और कैटभ नामक दो राक्षस थे, वे अपने बल के मान वश श्रीमननारायण को ही वर मांगने को प्रेरित करने लगे, प्रभु कमलनयन ने उन दोनों से उनकी मुक्ति का मार्ग पूछा जिसके फलस्वरूप उनको विष्णुजी ने अपने जंघो में दबाकर मार डाला, मधु विशालकाय शरीर का था उसका मेदा धरती पर यत्र तत्र फ़ैल गया जिससे यह धरा मेदिनी कहलायी और त्रेतायुग में यह राक्षस अतिकाय और कलिकाल में यह गंजय नाम को प्राप्त होगा,
तथा कैटभ कुटिल बुद्धि का राक्षस कलिकाल में ढोपालपाय नाम से कुख्यात होगा यह उस समय आवागमन विभाग का प्रधान होगा ।

राजन्! त्रेता युग में दशरथ की एक दासी मन्थरा थी, जो कुबड़ी था कुटिल थी उसने ही राम को वनगमन के लिए कैकेयी को प्रेरित किया था, वह कुटिल मन्थरा आगे चलकर कलिकाल में झपिल टिसरा नाम को प्राप्त होगी!

राजन्:- महाराज, त्रेता युग में रावण के भाई खर और दूषण को मोक्ष मिला था??

शुकदेवजी महराज:- भो राजन्! इन आततायी राक्षसों को मोक्ष लय के समय ही प्राप्त होगा।
डंडकबन के राजा खर और दूषण थे, ये दोनों छली, कपटी, परन्तु किंचित चतुर भी थे, कलिकाल में यह खर आपियों के उपप्रमुख सनीषचूतिया और दूषण प्रताण्डप्रदूषण नाम से कुख्यात होंगे ।
आगे की कहानी श्रोता एवम् पाठक गणों की अभिलाषा पर निर्भर होगी। ।। इतिश्रीअभिनवतुलविरचितोआपियाकथाद्वितीयोध्ध्यायः ।।
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