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व्यंग ही व्यंग

गड्ढे.............: रिवेश प्रताप सिंह

गड्ढे.............: रिवेश प्रताप सिंह
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"गड्ढे" केवल सड़कों पर नहीं होते। तनिक ध्यान से देखिए ! खुद की जिन्दगी में, बहुत छोटे- बड़े गड्ढे मिलेंगे आपको। हम अपनी जिन्दगी की राह पर चलते हैं उन रास्तों के छोटे-बड़े गड्ढों के सामने से गुजरते हैं। वो गड्ढे हमें रोकते भी हैं हचके भी देते हैं लेकिन हम अपने जिन्दगी का पहिया काटकर घुमा लेते हैं। हम नजरअंदाज कर जाते हैं ऐसे गड्ढे क्योंकि वो गड्ढे हमारे द्वारा खोदे और बनाये गये हैं।
हम सोचते हैं कि इस बार अम्मा के लिये यह करेंगे पापा के लिये वह करेंगे। भाई या बहन के लिए भी बहुत कुछ सोचते हैं, हम करना भी चाहते हैं लेकिन हम पूरी तरह वो नहीं कर पाते जो हमने, उनसे वादे किये थे। हमारे माता-पिता के मन में एक कशक या रिक्तता सी रह जाती है जो हमारे प्रेम और समय के लेपन से भरनी थी या यूं कहें वो गड्डा छूट जाता हैं जिसको हमें अपने प्रेम से समतल करना था।

हम अपने उज्ज्वल एवं उन्नत जीवन के लिए संकल्पित होकर आगे बढ़ते हैं। खुद को झकझोरते हैं, जगाते हैं और तैयार करते हैं। लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक सीमा का निर्धारण करते हैं लेकिन खुद ही विचलित हो उस लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर पाते जो वांछित था या जिसके लिये हम संकल्पित थे। हम खुद से किये वादे, समय पर पूरा नहीं कर पाते और एक गड्ढे से बन जाते हैं खुद की जिन्दगी में, जो हर दस कदम पर हमसे पूछते हैं कि तुमने अपने जीवन को गड्ढा मुक्त क्यों नहीं किया, तुमने यह गड्ढे खुद बनाये हैं नहीं तो तुम बिना किसी रुकावट के अपनी मंजिल पर होते।
लोग अपने प्रिय से उधार मांगकर समय देते हैं लेकिन परिस्थितियां और उनका प्रबन्धन उन्हें ऐसा विवश कर देता हैं कि वह खुद के किये वादे और वक्त पर खरे नहीं उतर पाते.. लोगों के फोन की घंटी बिल्कुल उस रोड के गड्ढे की तरह होती है जहाँ से लोग राह बदल देते हैं।

मैं यह कतई नहीं कहता कि 15 जून तक सड़कें गड्ढा मुक्त न हों मैं यह भी नहीं कहता कि हम अपनी सरकार को कटघरे में न खड़ा करें। मैं यह भी नहीं कहता कि हम उनसे सवाल न पूछें। लेकिन इतना जरूर है कि हमें भी अपने जीवन को गड्ढा मुक्त करने के लिये एक तिथि निर्धारित करनी पड़ेगी। यदि हम उस तिथि पर गड्ढा मुक्त नहीं हुए तो हमें खुद से भी यह सवाल करना पड़ेगा। हमें खुद भी कटघरे में खड़ा होना पड़ेगा क्योंकि सड़क कितनी भी समतल हो किन्तु हमारी जिन्दगी गड्ढा मुक्त नहीं है तो समतल पर भी हिचकोले लगेंगे।

रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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