तेरे हुस्न ने दिखाई मुझे बेखुदी की राहें....
BY Suryakant Pathak22 Jun 2017 1:32 PM GMT

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Suryakant Pathak22 Jun 2017 1:32 PM GMT
तेरे हुस्न ने दिखाई मुझे बेखुदी की राहें
ये हसीन लब नसीलें ये झूकी-झूकी निगाहें ।
रोज यही गीत गानेवाले परम आदरणीय मनीष पाठक को जब पता चला कि उनकी शादी हो रही है तो इतने जोर से खुश हुए कि पायजामें में ही क्रांति हो गई लेकिन खुशी के आगे सारी दुविधाएँ भूलकर उन्होनें अपनी क्रांति पर वीरता दिखाई और विजय प्राप्त करने के बाद चल पड़े अपने महान साली भक्त प्रेमी श्री श्री ना जाने केतना करोड़ आठ पंकज यादव जी के पास अपने बियाह होने का बात बताने । जब वहाँ पहुँचे तो देखा कि पंकज जी के पीठ पर बेलन और झाड़ू की जबरदस्त वर्षा हो रही है और इतना देखना था कि वो वहीं ठिठक गए लेकिन फिर हिम्मत जुटाकर उस कालिका रूपी देवी के चरणों में गिर पड़े और उनके पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त किए लेकिन वो इन्हें अनदेखा करते हुए अपना काम करती रहीं । जब वो थक गईं तब जाकर उन्होनें पाठक जी को देखा और उनके लिए पानी लाने गई ।
इधर पाठक जी ने पंकज बाबू को खिंचते हुए पिटाई का कारण पूछा तो उन्होनें क्रोध मिश्रित रूलाई रोते हुए कहा कि आज बर्तन ना धोने के कारण ये कुटाई हुई है और मन ही भन सरापते हुए कहा कि मजा ले रहे हो , तुम्हारी इससे भी दुर्गति होगी । खूब ठठाकर हँसे पाठक बाबू और मजा लेते हुए कहा कि भई आपने आदत लगाया है तो निभाना ही पड़ेगा और फिर व्यंग्यात्मक हँसी हँसने लगे । बाद में अपने शादी होने की बात बताई और सपरिवार आने को जब कहा तो रूँआसे होकर बोलें कि आप किरन जी से कहिए , वो हमको लेकर आएँगी या नही,उनके हाथ में है । तबतक देवी जी का कमरे में प्रवेश हुआ और उन्होनें जब ये सुना तो लजाकर बोलीं कि इन्हें तो सिर्फ मेरी बुराई करने में मजा आता हैं । इतना सुनकर साँप लोट गया उनकी छाती पर और उनका अंतरमन तक खिलखिला उठा । खैर पाठक जी ने उनको न्योता दिया और जब चलने के लिए पीछे घुमे तो सफेद पायजामा जो कहीं -कहीं पीला हो गया था किरन जी को दिख गया और उसके बाद जिस घृणित शब्द के उच्चारण के साथ उन्होनें पाठक जी की खातिरदारी करी उसे सुनकर आपके कान में परमाणु बम फट जाए तो वो भी कम होगा लेकिन पता नही कैसे पाठक जी इतना सुनने के बाद भी मुस्कुराते रहे और वहाँ से धीरे धीरे निकल लिए ।
इधर शादी का दिन आ गया और किरन जी सपरिवार पहुँची भी । शादी बढिया से हुई और सारे सम्बंधी शादी के बाद अपने घर लौट गए । किरन भी चली आईं अपनी गृहणी के साथ । इधर पाठक जी रूपवती को पाकर फूले नही समा रहे थें और मोदी बने फिर रहे थें । शादी के अगले दिन जब पत्नि जी ने पौने सवा नौ बजे जब बिस्तर पर पड़े-पड़े ही चाय की डिमांड की तो जैसे भूकंप आया हो वैसे हिलने लगे मनीष बाबू लेकिन नई पत्नि है ये सोचकर उठ गए और घरवालों से नजर बचाकर चाय बनाने की सोची लेकिन सारे लोग जाग चुके थें और सब उनका जागना मनीष के लिए आतंकवादियों के बीच फँसने के जैसा था । किसी तरह मैडम को चाय पीलाना था सो उन्होनें घरवालों को अपने हाथ की चाय पीने को राजी कराया । सब नाक मुँह बनाकर मान तो गए लेकिन सबको पता था कि आज सवेरे सवेरे ही मुँह खराब होनेवाला है । जब चाय बनाकर सबको दिया और सबने चुस्की लगाई तो सबकी आँखे नाना प्रकार की कला कौशल दिखाने लगीं तो भाग खड़े हुए अपने कमने में और अर्द्धांगिनी जी को चाय दिया पर जैसे ही उन्होंने चाय का कप अपने होठों से लगाकर एक चुस्की ली उसके अगले ही क्षण पूरे कप की चाय मनीष के मुँह पर फेंक दी गई । मुँह जल उठा और रूदन-क्रंदन शुरू कर दिए दुल्हे राजा । रोना देखकर पत्नि ने पलंग के नीचे रखे हुए डंडे को उठाया और बरसात करते हुए कहा कि एक तो बिना चीनी की कड़वी चाय पिलाते हो और ऊपर से रोते भी हो , चरित्रहीन कहींके । लाज नही आती तुम्हें । मेरी तो करम फूट गई तुमसे शादी करके , ना जाने पूरी जिन्दगी कैसे कटेगी तुम्हारे साथ । पता नही मेरे पापे ने तुमसे कैसे मेरी शादी कर दी । हे ! भगवान पूरी जिन्दगी इस कड़वाहट को झेलना पड़ेगा । इधर इतना सुन-सुनकर रोते रहे और जब चुप हुए तो पंकज के पास फोन लगाकर बोलें , #जोगतितोरासोगतिमोरारामाहोरामा । इतना सुनकर खुश हो गए पंकज और अपने सराप को फलते देखकर नाचने लगे ।
इधर मनीष ने बाहर निकलकर बच्चों को बुलाकर गीत कढाया-
शादी ना करना यारों तुमको बता रहा हूँ ।
आफत गले पड़ी है इसको निभा रहा हूँ ।।
प्रीतम पाण्डेय सांकृत
दोनों मित्रों के सम्बंधी ।
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