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"बुद्ध-आनंद संवाद" ये सरकार भी तो वही कर रही है!

बुद्ध-आनंद संवाद    ये सरकार भी तो वही कर रही है!
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बुद्ध अपने किसी श्रद्धालु द्वारा प्रदत्त चार्टर्ड विमान से यात्रा कर रहे थे। आनंद उनके सामने बैठा न्यूज़ पढ़ रहा था। तभी उसे किसी ने चैट भेजा कि मोदी सरकार ने नियम बदलते हुए अडानी को पाँच सौ करोड़ रूपए का लाभ दे दिया है।

"भगवन्! ये देखिए। ये सरकार तो भ्रष्टाचार पर काफ़ी बातें कहती थी, लेकिन ये कर क्या रही है?" आनंद ने चैटबॉक्स वाला लिंक उन्हें आईमैसेज द्वारा भेज दिया।

बुद्ध ने सरसरी निगाह डाली और कहने लगे, "देखो आनंद, सरकार, बस सरकार होती है। इसकी प्रकृति एक ही होती है। इसकी प्रवृत्ति भी एक ही होती है। बाहर से लगता है कि ये सरकार फलानापंथी है, तो ये हो जाएगा, लेकिन होता कुछ नहीं, क्योंकि विचारधारा का समय ख़त्म हो चुका है। विचारधाराओं की जंग आम जनता लड़ती है। उसमें गोरक्षक होते हैं, बीफ़ फ़ेस्टिवल वाले होते हैं, मंदिर होता है, मस्जिद होता है, गरीब होता है, दलित होता है, भ्रष्टाचार होता है, उसका विरोध होता है...

"सरकारों को सिर्फ सरकार मानकर देखना चाहिए। उसके पहले आने वाले शब्दों को हटाकर देखना चाहिए। मोदी सरकार और मनमोहन सरकार में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता। इसमें आप लॉ ऑफ कन्जर्वेश्न लगा सकते हैं। भ्रष्टाचार तो होना ही है, राजनीति तो होनी ही है, एक इनफायनाइट समय में, ये सिर्फ रूप बदलते हैं, रंग हल्का या गहरा हो सकता है। परंतु, प्रकृति वही है तात्!"

आनंद ने पूछा, "तो क्या बवाल काटना सर्वथा अनुचित है, तथागत?"

"बवाल काटना एक अवस्था है। काटना चाहिए। लेकिन तुम्हें मालूम होना चाहिए कि इससे होता कुछ नहीं है। दिमाग़ी विकार को, मवाद को बवाल काटकर बाहर निकालना उचित है, लेकिन इससे बहुत सुधार होगा, ये मानना मूर्खों के स्वर्ग में होने जैसा है। यू नो, फूल्स पाराडाइज़..."

आनंद बुद्ध का मुँह ताकने लगा। पायलट ने बाहर का तापमान सुनाया और दोनों ने सीटबेल्ट बाँध ली।

अजीत भारती
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