नमस्कार मैं नाराज़ पत्रकार
BY Suryakant Pathak7 July 2017 1:28 AM GMT

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Suryakant Pathak7 July 2017 1:28 AM GMT
एक फेसबुक पोस्ट लिख दिया जाता है, और मुसलमानों की एक भीड़ आहत होकर घर, बाज़ार, परिवार जलाने को सड़कों पर आ जाती है। मालदा, धूलागढ़ जैसी जगहों पर भी ऐसी ही भीड़ निकली थी। ममता बनर्जी इस बात को ऐसे ढक रही हैं कि गवर्नर ने उनको गरिया लिया फोन पर। ज़ाहिर सी बात है कि दंगों से ज्यादा अहमियत उनका ये बयान रखता है कि उनको किसी ने गरिया लिया, जिसका कोई सबूत नहीं है।
ऐसी ही बयानबाज़ी कि 'कुछ नहीं हो रहा है धूलागढ़ में' कुछ समय पहले आई थी। क्या हुआ था, वो जाकर विकीपिडिया पर पढ़ लीजिए। जब से ममता की सरकार आई है, तब से दंगों और धार्मिक हिंसा की घटनाओं में बंगाल के विकास दर से सौगुणा इज़ाफ़ा तो हुआ ही है। 2008 में धार्मिक हिंसा की मात्र 12 घटनाएं दर्ज होती हैं, वहीं ममता के आते ही 2013 में बढ़कर 106 हो गईं थीं। राष्ट्रीय अपराध अन्वेषण ब्यूरो के आंकड़े के अनुसार 2015 में कोलकाता में 293 केस दर्ज किये गए। 293 का मतलब समझते हैं? लगभग हर सप्ताह छः दंगे, और रविवार को छुट्टी, हें, हें, हें... ज़ाहिर है जिनका काम दंगा करना है, उनको भी सप्ताह में एक दिन छुट्टी मिलनी चाहिए, वो भी तब जब ये काम आपकी राजधानी और देश के मेट्रो में हो रहा हो।
इस पर मीडिया का स्पिन देखकर बहुत मज़ा आ रहा है। बीबीसी के लेख में अपूर्वानंद जी ये समझ नहीं पा रहे हैं कि ये घटना इस्लामी हिंसा है कि नाराज़ मुसलमानों की हिंसा। सही बात है, ज्ञानी आदमी को शब्दावली पर ध्यान देना भी चाहिए। लिख कुछ भी दीजिए लेकिन शब्दविन्यास बेहतरीन होना चाहिए। ये 'नाराज़ मुसलमान' क्या शिया, सुन्नी, देवबंदी, बहावी टाइप कोई नया मुसलमान है, या फिर वही है जो नमाज़ पढता है, और जिसकी भावनाएँ व्हाट्सएप्प और फेसबुक के फ़ॉरवर्ड से इतनी आहत होती हैं कि वो दंगा करने लगे?
ऐसे ही रवीश कुमार ने प्रोग्राम किया। आम दर्शक को लगेगा कि एकदम बैलेंस्ड रिपोर्टिंग है, लेकिन आप थोड़ा दिमाग़ लड़ाईए तो पता चलेगा कि उन्होंने ममता से ज्यादा भाजपा को, और मुसलमानों से ज्यादा हिन्दुओं को ही घेर लिया है। बिहार में जदयू और भाजपा के अलग होने के पहले और बाद की हुई हिंसा की वारदातों का बशीरघाट के मुसलमानों द्वारा आगज़नी करने से क्या संबंध है? क्या आप ये बताना चाहते हैं कि ये काम भाजपा करवा रही है? अगर ये काम भाजपा करवा रही है, और आपके पास पुलिस है, फिर भी आप हर महीने भड़कने वाली साम्प्रदायिक हिंसा पर लगाम नहीं लगा पा रही हैं तो फिर विधानसभा भंग कर दीजिए!
क्या कमाल की बात है कि अपूर्वानंद जी, जिनके नाम के आगे राजनैतिक विश्लेषक लगा हुआ है, वो इन हिंसा की घटनाओं को, चाहे वो हिन्दू गौरक्षक करें, या फिर मुसलमान, जोड़ते मोदी से ही हैं। मतलब मोदी और अमित शाह इतना पावरफुल है कि वो घर बैठे, इज़रायल से बंगाल में दंगा करा सकता है। फिर तो इतने दिमाग़ी इन्सानों को ही सत्ता थमा दी जाय क्योंकि आपसे तो सरकार सँभल नहीं रही।
अखलाख मरता है तो मोदी ज़िम्मेदार, यूपी की पुलिस नहीं। कलबुर्गी मरा तो भाजपा ज़िम्मेदार, कर्नाटक की पुलिस नहीं। दभोलकर की हत्या की ज़िम्मेदार भाजपा, महाराष्ट्र सरकार नहीं। मोदी और भाजपा जब इतने सर्वशक्तिमान हैं, तो फिर आपलोग चुनाव क्यों लड़ते हो? इनकी योजना सफल हो रही है, इनको ही बना दो सबकुछ!
मतलब, विश्लेषक होने का यही अर्थ हो गया है कि हम पहले ही तय कर लें कि विश्लेषण का निष्कर्ष क्या होगा, विश्लेषण तो बाद में होता रहेगा।
व्हाट्सएप्प और फेसबुक से भावना भड़क रही हैं तो फिर तो बीफ़ खाने पर हिन्दुओं की भावना भड़कना भी ज़ायज है! क्योंकि टाइप किए अक्षरों से किसी के देवता का अपमान हो रहा है तो उस गाय का, जिसमें तैंतीस प्रकार के देवताओं का अंश हैं, (ऐसा करोड़ों लोग मानते हैं) उसको काट कर खाने वाले के ऊपर तो हिन्दुओं की भावनाओं को भड़क कर आग बन जानी चाहिए, और हिन्दुओं को सड़कों पर उतर आना चाहिए!
ये कहाँ का लॉजिक है कि कुछ नाराज़ मुसलमानों की हिंसा है! फिर तो गौरक्षक भी कुछ नाराज़ और सतर्क हिन्दू हैं। जब बात टेक्निकली जस्टिफाय करने की ही है, तो फिर मेरे ही शब्द क्यों ना लिए जाएँ? बात ये है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के दौर में केरल और बंगाल में हिन्दुओं की हत्याएँ, साम्प्रदायिक हिंसा बहुत ही आम है। चूँकि मरने वाला हिन्दू है, उसमें भी वो अगर सवर्ण है तो किसी को घंटा फ़र्क़ नहीं पड़ता। रवीश और अपूर्वानंद को तो बिल्कुल नहीं।
आदमी आदमी को मार रहा है, और एक योजनाबद्ध तरीक़े से हो रहा है ये सब। बात ये नहीं है कि कोई करवा रहा है, बात ये है कि इन मुसलमानों को ट्रकों में बैठाकर सड़कों पर घुमाता कौन है? कौन है जो इनको इतनी जल्दी टोपियाँ पहनाकर, पन इंटेंडेड, डंडे, पत्थर, किरासन तेल से भींगी मशालों से लैस कर देता है? कौन है जो इतने व्यवस्थित तरीक़े से अव्यवस्था का नाटक करता है? कौन है जिसके सामने बंगाल की शेरनी की पुलिस बकरी बनकर रह जाती है?
इस पर सोचिए कि क्या नाराज़ मुसलमान और आम मुसलमान एक ही है? क्या आम मुसलमान नाराज़ हो सकता है? क्या आम मुसलमान लाठी लेकर किसी के बुलाने पर सड़क पर उतर सकता है? क्या इस्लाम पर की गई टिप्पणी हिन्दुओं के घरों, दुकानों, गाड़ियों को आग लगाने से मिट जाती है? क्या कोई है जो मुसलमानों की इस हरकत को देखकर उसकी फ़ाइल बनाकर फ़रिश्तों को देता है? कहीं ये वही तो नहीं है जो गौरक्षकों को स्वर्ग का रास्ता देता है? अगर ये दोनों एक ही हैं, तो फिर पहचानने में ग़लती कौन कर रहा है? इन दलालों को पहचानिए और अपने देवताओं को बचाईए।
बाकी जे है सो त हईए है
नमस्कार!
अजीत भारती
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