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व्यंग ही व्यंग

सरकारें काटती हैं, हम कटवाते हैं, यही हमारे समय का गीता-सार है

सरकारें काटती हैं, हम कटवाते हैं, यही हमारे समय का गीता-सार है
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नमस्कार,
मैं बहल जाने वाला आदमी!

जी! मैं वही हूँ जो आप हैं, आपका ब्वॉयप्रेंड है, गर्लफ़्रेंड है, आपके बग़ल वाला आदमी है जो फेसबुक पर लिखे को लीगली बाइंडिंग और सार्वभौमिक सत्य मान लेता है। मैं वही हूँ जो व्हाट्सएप्प के मैसेज से विराट हिन्दू जैसा फ़ील करता है, और मैं वही हूँ जो एक फेसबुक पोस्ट पर कुछ लिखे जाने के कारण हिन्दुओं को जलाने के लिए मशाल लेकर दौड़ता है।

मैं वही हूँ जो आप हैं: जिसका दिन और रात टूटी सड़कों, अंधेरे पार्कों, लेट चलती ट्रेंनों, कंधे पे ढोई जा रही लाशों, भीड़ द्वारा की गई हत्याओं, जजों-पुलिसों-नेताओं के भ्रष्टाचार की ख़बरों में बीतता है।

मैं वही हूँ जो आप हैं: एक उन्मादी भीड़ का हिस्सा जिसे अपने आप के अलग होने का गुमान है, लेकिन वो जानता है कि उसने किसका झंडा पकड़ा हुआ है।

मैं वही हूँ जो आप हैं: जो अपने धर्म को बचाने के लिए आतंकी हमलों के बाद फ़ैज़ और फ़राज़ की शायरी लिखता है; और वो भी जो भीड़ द्वारा की जा रही हत्याओं को ज़ायज मानता है क्योंकि मरने वाला उसकी जात-धर्म का नहीं है

ये जो हो रहा है, वो नया नहीं है। जो आगे होगा वो भी नया नहीं होगा। जो हो गया वो तो खैर नया था ही नहीं। यही गीता का नया ज्ञान है। सरकारें देश की आत्मा होती हैं, जो ना तो जन्म लेती है, ना मरती है, ना ही कहीं जाती है। वो बस पार्टी बदल कर नए रूप में आ जाती है। ये गीता का नया ज्ञान है।

आप पर शब्द, जुमले, नीतियाँ, योजनाएँ, आँकड़े फेंक कर मारे जाते हैं और आप झाल-ढोलक लेकर सुर में गाने लगते हैं। आपने ये हर समय, हर काल, हर परिस्थिति में किया है।

ये जो मीडिया बँटा हुआ है, वो तो हमेशा ही ऐसा था। उन्नीस-बीस… बस इतना ही फ़र्क़ है। आप ज्योंहि सड़क के दूसरे किनारे जाते हैं, आपके हाथ एक मैग्निफाइंग लेन्स लग जाता है और लगने लगता है कि ये पत्रकार तो ये हो गया, वो तो वैसा हो गया!

अरे पत्रकार वही है, उसके मालिक के मालिक ने रूप बदल लिया है। अब उसको नेवीकट से अल्ट्रा माइल्ड होना पड़ रहा है; या पानी पीने वाला ब्लैक कॉफ़ी, विदाउट शुगर हो गया है।

अजेंडाबाजी के दौर में हम और आप हर उस बात में उलझ जाते हैं, जिसका ना तो कोई अंत है, ना ही महत्व। हम हर उस बात के लिए समय निकाल लेते हैं जिसके लिए समय होना ही नहीं चाहिए। हम वो बच्चे हैं जिसे सिर्फ रोना और हँसना आता है, दोनों ही मौक़े पर हमारे हाथ में झुनझुना थमा दिया जाता है और हम उसको बजाने से ज्यादा चाटने लगते हैं। हमें ये भी पता नहीं कि झुनझुना बजाना है कि खाना है।

व्हाट्सएप्प के सारे ग्रुप से निकलिए जहाँ नकारात्मक बातें हो रही हैं। हर उस स्टेटस से अनटैग कीजिए खुद को जो देश में गजवा-ए-हिन्द ला रहा है, या जावा तक भगवा लहराने की बात करता है। खुद को बचाईए। खुद को बचाना ज़रूरी है क्योंकि आपको एक ही बात इतनी बार, इतनी जगह से, इतने लोगों के द्वारा, इतनी तरह से बताई जाएगी कि वो आपको सच लगने लगेगी।

आपको पता भी नहीं होता कि हम और आप जो लिखते हैं, उसको आधार मानकर मुसलमानों को मार दिया जा सकता है, और हिन्दुओं के घरों को आग लगा दी जा सकती है। आपको नहीं लगता कि दंगे भड़कते नहीं, भड़काए जाते हैं? आपको नहीं लगता कि दलितों की मौतों का इस्तेमाल होता है? आपको नहीं पता कि नजीब अहमद क्यों नहीं मिलता? आपको नहीं पता कि कन्हैया जैसे लोग रातोंरात कैसे तैयार होते हैं और इस्तेमाल किए गए कॉन्डोम की तरह उतार कर फेंक दिये जाते हैं?

क्या आपको नहीं लगता कि शब्दों का एक मौसम आता है और हैशटैग वो शब्द नहीं हम और आप बन जाते हैं? हम ही हैशटैग हैं जिसके आगे के जुमले बदलते हैं जिसे कोई आईटी सेल में बैठा अपनी सहूलियत के हिसाब से स्प्रे करता है। हम सब पर एक नशा छा जाता है और हम उस ख़ुमारी में अपने अपने पाये पकड़ के झूमने लगते हैं।

इन्टरनेट को कमोड मत बनाईए। ये आपका बाथरूम सिंक नहीं है। यहाँ हाथ मत धोईए। क्योंकि साबुन के नाम पर आपके हाथों पर, चेहरे पर सरकारी कैमिकल मारा जा रहा है, जिसका झाग उतर जाता है गंध नहीं जाती। बहुत लम्बे समय तक इसमें लिपटे रहने के बाद इस गंध को अपने शरीर से हटाना नामुमकिन हो जाता है।

आँखें खोलिए, आकर आपको कोई और बहका रहा है, बहला रहा है तो आप खुद को भी अपने हिसाब से चला सकते हैं। सरकार और मीडिया तय कर रही है कि आप क्या सोचेंगे। उसके पास बातें हैं, दस्तावेज़ हैं, जो तिजोरियों में हैं और वो तब निकलते हैं जब वो चाहते हैं। यानि कि आपका भूतकाल तो आपका था नहीं, वर्तमान पर सरकार और मीडिया का क़ब्ज़ा है, और भविष्य में भी आपको किस समय क्या सोचना है, क्या लिखना है, क्या बोलना है, किस बात पर जान लेनी है, ये भी निश्चित है।

जागिए।

नमस्कार!

अजीत भारती
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