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प्राइम टाइम 30: अगले दंगों के ख़ून से पत्रकारों, बुद्धिजीवियों के हाथ सने होंगे
BY Suryakant Pathak9 July 2017 7:40 AM GMT

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Suryakant Pathak9 July 2017 7:40 AM GMT
नमस्कार,
मैं दंगा फैलाने वाला पत्रकार,
यूँ तो रिया गौतम नाम की लड़की को छुरे से गोदकर मार देना एक आम घटना है, जो कि हमारे इस देश में शायद हर दो मिनट पर कहीं ना कहीं होता रहता है, फिर भी इसका महत्व थोड़ा बढ़ जाता है आज के परिपेक्ष्य में।
और आज का परिपेक्ष्य क्या है? आज का परिपेक्ष्य है कि अगर मरने वाला मुसलमान हो, मारने वाला हिन्दू तो बवाल काट दो कि अल्पसंख्यकों को, जो कि भारत की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या है, और जिसके कुछ नेता ये कहते फिरते हैं कि पंद्रह मिनट के लिए पुलिस हटा लो फिर देखो हम हिन्दुओं का क्या हाल करते हैं, बहुसंख्यक जीने नहीं दे रहे।
आज का परिपेक्ष्य ये है कि जुनैद को मारने वाला महाराष्ट्र में पकड़ा जाता है लेकिन उसी दिन बबन मुसहर, मुराहु मुसहर, मिथुन हँसदा को किसने मारा इसका पता आपको नहीं चलता। क्योंकि मुसहर भाईयों ने किसी शकील मियाँ के घर चोरी की थी और घेरकर मार दिये गए। किसने घेरा? पता नहीं। हाँ, जुनैद को किसने मारा ये पूरे देश की समस्या है क्योंकि मुसलमान की जान की क़ीमत है, हिन्दू तो वैसे भी सौ करोड़ हैं, मरने दो इनको।
आज का परिपेक्ष्य यही है कि मीडिया के दलाल, जो ख़बरों की वेश्यवृति में लगे रहते हैं और पोजिशन बदल-बदल कर ख़बरों का बलात्कार करते हैं, वो हत्या के समीकरण देखते हैं कि एलएचएस और आरएचएस में कौन है। अगर लेफ़्ट हेंड साइड वाले को राइट हैंड साइड वाले ने मारा है तो बवाल, और अगर उल्टा हुआ तो हैन्स प्रूव्ड नहीं हो पाएगा। क्योंकि लेफ़्ट हमेशा राइट पर भारी पड़ा है। इसीलिए पिंक फ़िल्म देखने के बावजूद, उसकी बड़ाई में क़सीदे काढ़ने वाली बिंदीधारी नारीवादी पत्रकार, बुद्धिजीवी जमात रिया गौतम के नो को आदिल के यस के समकक्ष पाती हैं। आदिल का रिया को स्टॉक करना, चाकुओं से गोदकर मार देना ज़ायज है क्योंकि वो लेफ़्ट हैंड साइड में है।
रिया गौतम, या रामपुर में अकेले 14 लड़कों द्वारा छेड़ी जा रही बच्ची, सिर्फ लड़कियाँ नहीं है। वो इस समाज के वो प्रतीक चिह्न हैं जो कहते हैं कि जहाँ हमारी चलेगी, हम चलाएँगे क्योंकि हमारे अपराधों को डाउनप्ले करने वाले, नैरेटिव मेकर अभी भी उन जगहों पर हैं जिसे गम्भीरता से लिया जाता है। एक व्यक्ति और पार्टी के विरोध में एक बिलबिलाया हुआ तबक़ा खड़ा हो गया है जिसकी रीढ़ उसके मालिकों के सेफ़ में बंद है। एक गिरा हुआ गिरोह मुसलमानों के दंगे, मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं के घर जलाने को, मुसलमानों द्वारा हिन्दू लड़कियों के मोलेस्टेशन, हत्या और बलात्कार को, मुसलमानों द्वारा की गई लिंचिंग को उसी चश्मे से नहीं देख पाता जिससे वो 2002 के दंगे देखता है, जिससे वो मुसलमानों की गौरक्षकों द्वारा की गई लिंचिंग को देखता है। क्यों, क्योंकि उसके लिए रीढ़ चाहिए और उस जगह में दम, जहाँ से वो जो मन चाहे हगता रहता है।
ये संदेश है। ये एक दुर्घटना नहीं है। दुर्घटना तो रिया गौतम का चाकुओं से गोदकर मार दिया जाना है। दुर्घटना तो ये है कि एक लड़का, एक लड़की को मार देता है। दुर्घटना ये भी है कि एक हिन्दू को कोई मुसलमान, या किसी मुसलमान को एक हिन्दू मार देता है। इतने बड़े देश में ये होता आया है, होता है, होता रहेगा, हाँ, दिखाया ज्यादा जाएगा।
संदेश ये है कि मीडिया और बुद्धिजीवियों का एक हिस्सा शांत रहेगा। ये संदेश है। संदेश ये है कि ऐसी हत्याओं को ग़ैरज़रूरी, और वैसी हत्याओं को साम्प्रदायिक रंग दिया जाएगा। संदेश ये है कि मुसलमानों को शान्तिप्रिय और हिन्दुओं को दंगाई बताया जाता रहेगा। संदेश ये है कि जो जहाँ मेजोरिटी में है, और अगर वो मुसलमान है तो उसका इस्तेमाल दंगा कराने के लिए, वोटबैंक की राजनीति के लिए होता रहेगा।
ये बात और है कि ये लोग बहुत ही आराम से भूल जाते हैं कि इस देश में जहाँ 31% वोट से फ़ुल मोजोरिटी की सरकार बन जाती है, वहाँ मुसलमानों की हिंसा को, आगज़नी को, दंगे को, बलात्कार को, हत्या को सोशल मीडिया के दौर में छुपाने या हवा देने से मुसलमान अगर एकजुट हो रहे हैं, तो आप अस्सी प्रतिशत हिन्दुओं को भी अनजाने में कट्टरता की ओर ढकेल रहे हैं। फिर तो गजवा-ए-हिन्द के सपने देखने वालों के फ़न कुचल दिए जाएँगे क्योंकि अगर मुसलमान दो घंटे में लाठी-पत्थर लेकर सड़क पर आ सकता है, तो हिन्दुओं के भी व्हाट्सएप्प ग्रुप होते हैं।
इस देश में अगर कोई बड़ा दंगा हुआ तो उसका मुख्य कारण हमारे देश के पत्रकार होंगे। इन कोर्ट और टाइ लगाकर बैठे पत्रकारों के हाथ उस ख़ून से रंगे होंगे क्योंकि इन्होंने दो धर्मों को आमने-सामने लाकर रख दिया है। इसका बिल ये मोदी और शाह पर जरूर फाड़ेंगे, लेकिन इनको पता है कि दंगों को हवा देने का काम कौन कर रहा है। इन दोगले पत्रकारों को नकारिये जो मरने वाले का धर्म तलाश कर प्राइम टाइम में आँकड़े बताते हैं। इन बुद्धिजीवियों से बचिए जो टट्टी के रंग में जाति खोजते हैं।
ये आपको जागरुक नहीं करते, ये आपको भड़काते हैं कि तुम बग़ल वाले से घृणा करो क्योंकि इसके धर्म के किसी बंदे ने तुम्हारे धर्म के किसी आदमी का क़त्ल तुम्हारे घर से तीन हज़ार किलोमीटर दूर कहीं कर दिया। ये तुम्हें समझदार नहीं बनाते, ये तुम्हें दंगा करने के लिए उकसाते हैं। इनका काम बताना भर नहीं रह गया, ये अब उस विडियो का हिस्सा हैं जो ग्रुपों में शेयर होते हैं और आपको लगता है कि पूरे देश में एक धर्म के लोग आपके धर्म वालों को खोज-खोजकर काट रहे हैं।
जबकि ऐसा हो नहीं रहा, ऐसा आपको बताया जा रहा है। अगर आपको लग रहा है कि ऐसा हो रहा है, तो देर हो चुकी है, टीवी देखना बंद कीजिए, और सोशल मीडिया के ग्रुपों से बाहर आईए। वर्ना किसी दिन आपके हाथ में कोई तलवार दे जाएगा और आपको किसी गर्भवती महिला का क़त्ल करने में परेशानी नहीं होगी क्योंकि वो या तो बुर्क़े में थी, या उसकी माँग में सिंदूर था।
नमस्कार!
अजीत भारती
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