आलू पुराण
BY Suryakant Pathak16 July 2017 3:26 AM GMT

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Suryakant Pathak16 July 2017 3:26 AM GMT
सेवा में ;श्रीमान् आलू जी।
भारतीय रसोईघर, रेक नंबर प्रथम
भारतीय रसोई में आपकी मजबूत दावेदारी और लोकप्रियता को भला कौन नकार सकता है। गृहणियों के चिंता हरण में आप सबसे सुलभ एवं प्रबल विकल्प आप जो ठहरे। आपका अति सामान्य रंग-रूप और बनावट के बाद भी लोगों में आपका पहली पसंद बनकर रहना, निस्संदेह यह आपके,आन्तरिक सौन्दर्य और लंबे समय तक साथ निभाने के अद्भुत और अद्वितीय गुण का परिचायक है।
भारतीय रसोई में आपकी सर्वाधिक उपलब्धता और महिलाओं की खनकती चूड़ियों के साथ उनके हाथों से लगभग प्रत्येक दिन आपको स्पर्श (वो बात अलग है कि आप भी हम लोंगों की तरह छीले ही जाते हैं) आपकी श्रेष्ठता के कारण ही है। मान्यवर ,आपकी लोकप्रियता और महत्ता हम लोगों से कहीँ बहुत ऊपर है। बच्चे हमारी अनुपस्थिति में स्कूल तो चले जाते हैं लेकिन टिफिन में आप अनुपस्थित हों;यह भी भला हो सकता है क्या ?
हिन्दी साहित्य में भी आपकी घनघोर उपस्थिति है। एक तरफ जब हिन्दी का साहित्यकार अकादमिक पुरस्कार अकादमिक पद रुपी स्वर्गिक आनंद प्राप्त करने का अभिलाषी होता है वहीं दूसरी तरफ बेढब बनारसी ने लिखा कि -
बाद मरने के मेरे कब्र पर आलू बोना।
हश्र तक ये मेरे ब्रेकफास्ट के सामां होंगे।
उम्र सारी तो कलम घिसते बीते ऐ बेढब
अब आखिरी वक्त में क्या खाक पहलवां होंगे।।
शादी में दूल्हा भले विवाह के एक दिन पहले घर आये लेकिन पन्द्रह दिन पहले से ही दो बोरे में भरकर आप किचन की दीवार से सटा कर खड़े कर दिये जाते हैं। या फिर किसी कमरे में आप लिटा दिये जाते हैं। विवाह के अन्तिम दिनों तक आपकी विभिन्न वेश-भूषा में उपस्थिति अवश्य रहती है। व्यक्ति की संख्या और हैसियत के अनुसार आप थाली में सूखे, लटपटे या रसदार बनकर चले आते हैं। सच तो यह है कि गृहणियां आपसे इतना घुली-मिली हैं कि अनेक विधाओं के प्रयोग से वह आपके रूप-रंग बदल देती हैं और आप हैं कि किसी भी दशा में अपने गुणों को बिखरने नहीं देते वहीं भिंडी जैसी नकचढ़ी जरा सा हेरफेर में इज्जत ले लेतीं है।
मान्यवर ,आपका आवश्यकता से अधिक सामाजिक व्यक्तित्व, सबके साथ मिलकर "सबका साथ सबका विकास" की अवधारणा लिये एक मिश्रित स्वाद का अनुभव प्रदान करता है उस गठबंधन में आप ही प्रभावी व्यक्तित्व होते हैं जैसे- आलू-परवल, आलू-बैगन, आलू-मटर, आलू-गोभी.....सभी रेसिपी में आप मोदी जी की तरह मुख्य चेहरा हैं।
पुरूषों की तो कोई बात नहीं किन्तु महिला सब्जियों के साथ भी आपका सामंजस्य गजब का है। आप महिला सब्जी के साथ धड़ल्ले से थाली में चले आते है और आपकी गलबहियों के बाद भी कोई आपके व्यक्तित्व पर अश्लीलता का आरोप नहीं मढ़ सकता। यह आपके उदार और व्यापक व्यक्तित्व का परिचायक है।
पन्द्रह-बीस दिन के बाद भ्रमण से लौटे परिवार के लोग जब रसोई खोलते हैं तो सिर्फ आप ही इन्तज़ार में खड़े रहते हैं और आपके सभी संगी-साथी दम तोड़ कर अपने में गठबंधन कर लेते हैं। यह बात अलग है कि प्रतीक्षा की आग में जलकर आपका वजन और आकार पहले जैसा नहीं रहता। कहीं-कहीं से आपकी घूरती आंखें आपकी वेदना को कह जाती हैं लेकिन फिर भी आप दो घंटे में मुस्कुरा कर थाली में चले आते हैं गजब हैं भाई आप भी..
ईश्वर ने आपको ऐसे रंग से नवाज़ा है जो आपको धार्मिक और साम्प्रदायिक मसलों से अलग करता है हां कभी-कभी आप थोड़े हरे होने लगते हैं लेकिन जनता को आपका यह रंग बिल्कुल पसंद नहीं इसलिए ऐसे में वह आपको अस्वीकार करके किचन से बाहर ढकेल दिया जाता है।
यह भी सत्य है कि समाज द्वारा मृदुल व्यक्तियों का शोषण निरन्तर हुआ है और आप भी उससे वंचित नहीं। हर परिस्थिति में अच्छे स्वाद का प्रदर्शन आपकी दुर्गति करा देती है। महिलाओं द्वारा आपका छीला जाना, काटा जाना, कसा जाना, कूटा जाना, तला जाना, घिसा जाना, भुना जाना, पीसा जाना कुचला जाना, मसला जाना और उबाला जाना आम बात है। आपका इतने मरम्मत के बाद भी स्वाद और कलेवर में उतर जाना, वास्तव में यह एक शोध का विषय है कि प्रायमरी के मास्टरों वाला यह गुण कहाँ से पाया?
ये तो हो गई रसोई की बात... चलिये जनाब जरा चटोरी गली में टहल आया जाये। कौन नहीं जानता कि समोसे का सारा भौकाल आपके समर्थन पर ही टिका है यदि आप न सपोर्ट करें तो देंखें कैसे अकड़ के नोक बना कर खड़े होते हैं। टिक्की चाट में तो आपका प्रभाव वैसे ही है जैसे मोदी जी का पूरे मंत्रिमंडल पर। आप न हों तो महिलाओं की जीभ, तृप्त न हो बन्धु!
चिप्स की श्रृखला में तो आप नखरे दिखाने लगते हैं जनाब़ पांच रूपये में तो केवल हवा भरकर आप हवा कर देते हैं उसी समय आपसे मुझे शिकायत जरूर रहती है। होटल के मैन्यू कार्ड पर तो आप पहचान में ही नहीं आते कि आप वहीं हैं.... जिनसे ऊब कर मैं यहाँ आया हूँ वहाँ भी...आप बहत्तर आइटम में इठलाते मिल जाते हैं।
रेलगाड़ी के डिब्बों में तो जैसे आपने पेटेंट करा रखा है हजारों स्टेशनों पर आपका ही सिक्का नाचता है बन्धुवर।
पराठों की श्रेणी में तो आप प्रथम पंक्ति में ही दिखाई देते हैं मजाल है कि रेस्टोरेंट में पराठों का मीनू आए और न0 एक पर कोई अन्य पराठा छप जाए..... संभव ही नहीं है प्रभु चाहें तो शर्त लगा लीजिये।
और यह कमाल देखिये उपवास या व्रत में भी आपको ही गेट पास आवंटित है अन्य सभी सब्जियों का तो कढ़ाई में प्रवेश निषेध है कंठ और जिह्वा की तो बात ही छोड़िये.......
प्रभु.... सुख के दिनों के तो सभी साथी हैं लेकिन किसी के विपत्ति काल में जो खड़ा होता है वह असली या खांटी मित्र है। किसी परिवार या पट्टीदारी में किसी के मृत्यु के उपरांत, सूतक के दिनों में जब समस्त खाद्य पदार्थों पर जब ग्रहण लगता है उस समय भी आपकी उपस्थित भोजन में प्राण के समान होती है वो अलग बात है कि आपकी भी शक्ल-सूरत मनहूस की तरह बनाकर चोखे के रूप में परोसा जाता है। यक़ीन जानिये उस समय जो भी गले के नीचे उतरता है कसम से आपके ही सहयोग से,नहीं तो कंठ से निगलना अग्नि-परीक्षा बन जाती बन्धुवर!
हमारी व्यक्तिगत व्यस्तताओं में श्रीमती जी द्वारा फोन पर यह बताया जाना कि घर में आपको छोड़कर कोई सब्जी नहीं है। उस समय भी हमलोगों द्वारा यह कहकर जान छुड़ा लेना कि आलू ही बना लो। कसम से जान बचा लेते हैं आप, नहीं तो पांच किलोमीटर से गपशप की महफिल छोड़कर उठना बड़ा कठिन होता है। आपके इस सहयोग के लिये आपको अतिरिक्त साधुवाद।
पूजा के वैकल्पिक स्थलों पर जब अगरबत्ती जलाकर खड़ी करना हो तो आप सबके जुबान पर तुरन्त आप आ जाते हैं और आप पूरा अगरबत्ती सुलगा कर ही मानते हैं। कितना कोमल हृदय है आपका।
वैसे मुझे पता है कि आपकी महिमा का गुणगान करने के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं पर जो भी हो ज़नाब गज़ब शख्सियत हैं आप।
रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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