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व्यंग ही व्यंग

चाइनीज माल............रिवेश प्रताप सिंह

चाइनीज माल............रिवेश प्रताप सिंह
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जब यह बात पूरी दुनिया जानती है कि चाइना का माल बहुत जल्दी धाराशायी हो जाता है तो फिर कैसे,यह हमारे बाजारों में बारह-पन्द्रह वर्षों से लगातार टिका हैं? और अभी भी इसके बहुत से संगी-साथी लगातार घुसपैठ की ताक में बैठे हैं।
दरअसल हम अपने संकल्पों पर नहीं टिकते और ये शीघ्रपतित सामग्रियाँ केवल सस्ते के नाम पर बाज़ार में अपना साम्राज्य स्थापित करती चलीं जा रहीं हैं।

मैं यह नहीं कहता कि संकल्प लेने में कोई बुराई है लेकिन मौसमी संकल्प में बुराई जरूर है। हमारा संकल्प भी बिल्कुल चाइना के माल की तरह हो गया है, न टिकने वाला, क्षणभंगुर, शीघ्रपतित.....

आप यह समझें कि दाम भी उसी का ऊंचा रहेगा जो देर तक मैदान में टिकेगा अब कोहली का दाम ऊंचा क्यों है? इसीलिए न कि वह पिच पर देर तक टिकता है। जो छुल्ल से आकर लौट जायेगा तो भला कौन, उस पर दाम लगाने का रिस्क लेगा।
सब्जी बाज़ार में कम देर तक टिकने वाली सब्जियाँ रात तक औने-पौने बेचनी पड़ती हैं।

आज भी चाइना बाजारों में जीवन रक्षक और संवेदनशील वस्तुओं पर जनता का विश्वास न के बराबर है।
अगर कोई दुकानदार कहे कि यह चाइना का जहर है तो आत्महत्या के मजबूत इरादे के साथ आया ग्राहक चाईनीज जहर कतई न लेगा। क्योंकि वह जानता है कि चाईनीज जहर खाने से, मरने से रहे और समाज के भीतर जो लोलर और छीछालेदर होगी वह अलग।
आज भी बाबा रामदेव शिलाजीत और केसर जैसी युद्धक औषधियों में एक विश्वास बना के बैठे हैं। एक बड़ी आबादी दाड़ी वाले स्वदेशी बाबा के शरण में जाना पसंद करता है। क्योंकि ऐसे संवेदनशील मौकों पर देश ही काम आता है।

वैसे रामदेव बाबा ने स्वदेशी का बड़ा संकल्प उठाया है। उन पर दायित्व भी बड़ा है। इधर घी तेल के कस्टम ही इतने हैं कि कौन दीपावली में बैठकर झालर बीने। पतंजलि का स्वदेशी मोबाइल फोन बनाने का दबाव अलग, टार्च से लेकर पालीथीन तक कहां-कहां अनुसंधान करें बाबा। ऊधर जनता है कि समारोह के मुफ़्त चाऊमीन के मोहपाश से निकल नहीं पा रही और क्या कहा जाये।
इसलिए जरूरी है एक मजबूत संकल्प की.....इरादे की....

मुझे याद है जब मैं अमरोहा जनपद में कार्यरत था तो मेरे विद्यालय के सामने एक क्रेसर मशीन लगी थी जहां आस-पास के गन्ना किसान अपना गन्ना तौलवाते और बेचते थे। क्रेसर मालिक की मशीन ताबड़तोड़ चलती, रस उगलती और अपनी लौह ध्वनि में निरन्तर चिल्लाती, चीखती और हल्ला मचाती। मशीन का शोर इतना था कि अध्यापक की आवाज़ कंठ से निकलती नहीं की मशीन के आवाज द्वारा उसका एक फीट पर ही दमन कर दिया जाता। बहुत तेज बोलने या चिल्लाने पर ऊर्जा का इतना क्षरण होता कि दस मिनट में तीन गिलास पानी पीना पड़ता। विद्यालय के हेड श्री Vivek Singh जो एक कुशल और सख्त विद्यालय प्रबन्धक थे इस शोरगुल के निवारण हेतु क्रेसर स्वामी से साइलेंसर लगवाने का आग्रह बहुत बार कर चुके थे। क्रेसर मालिक को तो कमाई की धुन थी भला क्यों करे माट्साब के आग्रह की परवाह।
एक दिन कक्षा में तेज शोर से परेशान होकर माट्साब तल्खी से पेश आये लेकिन क्रेसर मालिक ने माट्साब से नकारात्मक और रूखा व्यवहार कर दिया। माट्साब ने इसे अपने प्रतिष्ठा पर ले लिया और अपने दो सौ बच्चों के साथ विद्यालय गेट के सामने बैठ गये और बोले कि अब पढ़ाई तभी होगी जब यह क्रेसर बंद होगा, विद्यार्थियों ने भी माट्साब की प्रतिष्ठा को अपनी प्रतिष्ठा समझ कर हुंकार भरी। एक दिन के अन्दर पूरे गांव मे हल्ला हो गया और ग्रामवासियों ने यह संकल्प लिया कि अब यहां गन्ना बेचना ही नहीं है। सारे गन्ना किसान गांव से तीन किलोमीटर दूर गन्ने की सप्लाई देने लगे। विद्यालय के समीप वाला क्रेसर पूरे सीजन गन्ने के लिये तरस गया। जब माल नदारत हुआ तो मशीन और मालिक दोनों की आवाज भी नदारत हो गई। एकदम सन्नाटा फैल गया गांव में। अब तो वह किसी कुतिया को बच्चा जनने के लिये सबसे महफूज़ जगह हो गई।
वास्तव में संकल्प कुछ ऐसा होना चाहिए कि तीन किलोमीटर की दूरी बरदाश्त, खर्चा मंजूर ,समय भी गवांना मंजूर लेकिन तुम्हरे दुवारे गन्ना गिराना ना मंजूर।
तो टिकना जरूरी है भई! यह नही कि 4GB रैम का सस्ता मोबाइल देखें और लपक लें और फिर उसी मोबाइल पर अपनी संकल्प यात्रा की परेड करने लगें।

रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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