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व्यंग ही व्यंग

हरी चूड़ियाँ जो नानी हर साल भेजती है

हरी चूड़ियाँ जो नानी हर साल भेजती है
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माताजी से बात हो रही थी। बता रही थी कि चूड़ी पहनने के लिए नानी ने मामा जी के माध्यम से पैसे भिजवाए।

मैंने पूछा, "कितने पैसे भिजवाए?"

माताजी ने जवाब दिया, "डेढ़ सौ रुपए।"

मैं हँसने लगा कि अभी तक नानी अपनी बेटी के लिए चूड़ी के पैसे भेजती है! पता चला कि जबसे शादी हुई है तब से ही हर सावन में हरी चूड़ियाँ पहनने के लिए या तो चूड़ियाँ ही भिजवा देती है, या फिर पैसे भेज देती है। ताकि माँ उसी पैसे से हरी चूड़ियाँ, सिंदूर, लोहरंगा (नेल पॉलिश), हरी टिकली (बिंदी) और पैर रंगने का अलता ख़रीद ले।

आज भी मेरी माँ जब नैहर जाती है तो नानी पूरा घर हरे गोबर से लीपती है जो कि समृद्धि और सुख का प्रतीक है। इस पर मेरी माँ को आश्चर्य होता है कि आजतक वो मेरे पापा और माँ के आगमन पर इतने इंतज़ाम करती है।

मेरी माँ कह रही थी कि उसकी माँ जब मर जाएगी तो वो कैसे जिएगी! ये वो इस उम्र में कह रही है जब मेरी बहन सप्ताह भर में माँ बन जाएगी। मतलब मेरी माँ नानी, और उसकी माँ परनानी बन जाएगी। और मेरे पापा ने उधर से ज्ञान दिया, "एक आप ही की माँ हैं दुनिया में? सबकी माँ ऐसी ही होती है।"

माताजी ने पापा को चुप करा दिया, "ना, मेरी माँ जैसी किसी की माँ नहीं है। माय मॉम इज़ द बेस्ट।" ये वार्तालाप ठेठी में चल रहा था।


अजीत भारती
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