"पूरे गांव के मामा"- (सत्य कथा)
BY Suryakant Pathak9 Aug 2017 8:21 AM GMT

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Suryakant Pathak9 Aug 2017 8:21 AM GMT
मैं बचपन में चूंकि गांव कम जाता था, तो मुझे ज्यादा कुछ पता नहीं रहता था। एक बार भाई के साथ अपने नहर वाले खेत में था मैं। अचानक भाई ने नहर के उस पार साइकिल से आते हुए एक 55-60 साल के आदमी की ओर ध्यान दिलाया मेरा। वो सफेद लकदक कुर्ता धोती पहने हुए मजे में साइकिल चलाते हुए आ रहे थे।
भाई ने मुझसे कहा,... "भईया इनको मामा बोल कर नमस्ते करो, ये बहुत खुश होते हैं।"
मैंने अच्छा संस्कार मानते हुए ज़ोर से जयकारा लगा दिया,.... "मामा जी प्रणाम...!!"
मेरे मुँह से मामा निकला ही था कि वो महोदय अपनी साइकिल फेंक फांक कर नहर में कूद पड़े,.. और चिल्लाने लगे,... "रुक तोहरी माइ के, रुक तोहरी बहिन के,.... ₹-&₹&₹₹&.... "
मैं भौंचक होकर भाई की ओर देखा,.. तो वो ज़ोर ज़ोर से अपना पेट पकड़ कर हँसते हुए विपरीत दिशा में भागा जा रहा था। मेरी कुछ छठी इंद्रिय जागी, और मैं भी उसी ओर भाग लिया।
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घर पहुंच कर, हम पापा को सारी बात बताए, और पूछे कि ये क्या चक्कर है। तब पापा बताए,.... कि ये महोदय बगल के गांव के बृजमोहन हैं। पहले बृजमोहन का बिरजू नाम पड़ा, फिर दुनिया इनको मामा के नाम से बुलाने लगी।
हुआ यूँ कि,... खुद को बड़ा ज्ञानी समझते थे, लेकिन उनको कोई सिरियसली लेता ही नहीं था। यहां तक कि ये कुछ उठ कर कहें भी, तो लोग इनकी बात को सुनते ही न थे। मतलब एकदम इनको इग्नोर मार देते थे। बेचारे बड़े परेशान थे समाज में अपने अप्रासंगिक होने को लेकर।
फिर एक दिन एक हूँशियार बन्दा मिला उनको, और कहा कि, "हजार रुपया दो, तो चुटकी में तुम्हें गांव ही नहीं दूर दूर तक कई कोस तक फेमस कर दूँगा।" अब फेमस होने की ललक तो ऐसी होती है कि इंसान कुछ भी कर जाय। तो उपरोक्त महोदय ने झट्ट से हजार रुपए निकाल कर उसके हाथ पर धर दिए।
उस बंदे ने पैसे जेब में खोंसते हुए कहा,... "आपको कुछ नहीं करना है, बस जब बच्चे आपको मामा-मामा कहें, तो गुस्से में मारने को दौड़ा लेना।" बस फिर उस आदमी ने आसपास खेलते कुछ बच्चों के पास जाकर कहा कि... "वो जो दूर आदमी खड़ा है, उसको कोई मामा कहे तो बहुत चिढ़ता है, बहुत चिटकता है।"
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अब बच्चो को एक नया खेल मिल गया, और वे ज़ोर से चिल्लाये,.. "का हो मामा??" अब मामा सुनते ही महराज चिटक के दौड़ा लिए बच्चों को, और बच्चे भाग गए। धीरे धीरे उन्हीं बच्चों ने पूरे एरिया जवार में बात फैला दिया कि "फलाने" मामा बोलने से चिढ़ते हैं। अब धीरे धीरे सब लोग मामा कह कर चिटकाना शुरू कर दिए।
इससे शुरू शुरू में महोदय को खुद को "प्रासंगिक" समझ कर खूब मजा आया, लेकिन अब कुछ साल बाद,.. बच्चों के पापा उनको "अपना साला" बोलने लगे। तर्क भी था कि बच्चों के मामा हो तो हमारे साले साहब ही तो हुए।
अब साहब सच में चिढ़ने लगे मामा कहने से, लेकिन जो प्रथा चल निकली थी, वो बंद कैसे हो।
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आँखें खोल कर देखिए, आपके आसपास भी ऐसे लोग भरे बैठे हैं। "बदनाम हुए तो क्या नाम नहीं हुआ" की तर्ज पर हर जगह अपनी टाँग घुसेड़े मिलेंगे ऐसे लोग। कुछ लोगों को, कोई बहुत ज्यादा ज्ञानी कामरेड लोग ज्ञान दिए हैं कि,.... "सेक्स, बलात्कार, औरतों के अंगों, पुरुषों के अंगों पर खुल कर बोलो, लिखो,.... ये कम पड़े तो हिंदुओं के देवी देवताओं को गाली दे दो,.. फिर देखो झट्ट से फेमस हो जाओगे/ जाओगी।"
बस ये ट्रेंड चल पड़ा। अब ये लोग यही सब लिखना बोलना शुरू किए, तो मामा बोलने वाले भी जुटने लगे।
केवल एक गलती हो गई, एक चूक हो गई इन होशियारों से,.. कि "वो बच्चे" अब केवल "मामा" ही नहीं कह रहे हैं, अब उनके दौड़ा लेने पर भाग नहीं रहे हैं। बल्कि उन्हीं मामाओं को उठा के पटक कर सीने पर चढ़ बैठ रहे हैं। इसी बात का रोना है इनको।
बस इतना सा अंतर आ गया है।
इं.प्रदीप शुक्ला
गोरखपुर
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