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व्यंग ही व्यंग

श्रध्येय श्री श्री १०८ योगी जी महराज जी.... झुकाता हूँ, उठाता हूँ और फिर झुकाता हूँ.. शीश

श्रध्येय श्री श्री १०८ योगी जी महराज जी.... झुकाता हूँ, उठाता हूँ और फिर झुकाता हूँ.. शीश
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स्पोंडीलाईटिस की समस्या से गर्दन में दर्द होने के बावजूद सर्वप्रथम महराज के चरणों में शीश नवाता हूँ।
फिर शीश उठाता हूँ। लेकिन चूँकि आप केवल राजनेता और एक बड़े राज्य के सरदार भर नहीं बल्कि हिन्दू धर्म उन्नयन के नित प्रति दिन बढ़ रहे विश्वव्यापी धर्म रथ के पार्थसारथी भी हैं इसलिए फिर झुकाता हूँ, उठाता हूँ और फिर झुकाता हूँ।

धार्मिक आदमी हूँ,
साधु योगी संत के चरण में स्वर्ग खोजता हूँ इसलिए आपका चरण एक बार धर लेने के बाद छोड़ने का मन तो करता ही नहीं पर चूँकि दोनों हाथ से चरणवे धरले रखूँगा तो चरण वंदन हेतु आरती और ये पत्र कैसे लिखूँगा, यही सोंच चरण छोड़ कुर्ता फुलपैंट झाड़ खड़ा हो रहा हूँ।

महराज जी, नेता के आगे तो आदमी हाथ जोड़े चापलूसी में खड़ा होता है जैसे मुलायम या मायावती के आगे लेकिन सामने जब आप जैसा राजनेता+संत-योगी जैसा दुर्लभ महात्मा+cm खड़ा हो तो आदमी को चापलूसी के साथ श्रद्धा भी बराबर मात्रा में रख तब हाथ जोड़ना चाहिए।

महराज मैं जात का पंडित, जिस दिन एक संत को भगवा वस्त्र पहिने एक मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते देखा तो उस दिन भर दिन बभनटोली में डीजे बजा के नाचा था।
मैं क्या नाचता, राह चलते देखा सब पंडित ठाकुर टिक्की और तलवार लहरा नाच रहे तो मैं भी नाच आया।

पर हाँ,नाचते टाइम ठीक वैसे ही प्रगतिशील टाइप फील हो रहा था जैसे लालू-मुलायम के नाम पर कुछ यादव जी को नाचते हुए होता है और मायावती के नाम पर कुछ दलित जी को और शहाबुद्दीन और मुख्तार मियां के नाम पर कुछ मियां जी को नाचते हुए होता है।

आप तो जात से ठाकुर क्षत्रिय थे,पर काम धंधा बभनौती वाला..मठ के मठाधीशी का काम,योगी का तमगा,भगवा चोला,साधु का चरित्र..आप तो हमारे ब्रह्मक्षत्रिय अवधारणा के पहले सफल आदर्श अवतार थे जिन्हें लोगो ने कलयुग में अवतार लेते देखा।
स्वाभाविक ही था कि, आपके आने पर बभना ठकुरा दोनों झूम बराबर झूम भोरे से साँझ तक झुमे।

घरों में कर्ज़ के लाये रूपये से किसी त्रिपाठी, शुक्ला ने घी के दीये जलाये तो किसी सेठ से उधार लेकर किसी ठाकुर ने नगाड़ा बजवाया,......देखो जोगी आया....जोगी आया।

आपको जब भगवा कुरता पर सेम कलर के लुंगी पर काला चश्मा में देखा तो लगा अब आया"आज का अर्जुन"। cm ऑफिस में नारंगी रंग के आराम कुर्सी cum सोफासेट पर जब आप फूले नाक के भाव भंगिमा में बैठते हैं तो लगता है कि त्रेता युग के बाद पुनः "धर्मराज युधिष्ठिर रिटर्न" को विराजते देख रहा हूँ।

आपको देख ही लगा कि, लोकतंत्र का छद्म स्वांग रचते इस देश ने अब जा के अपना वास्तविक चरित्र पाया है।
प्राचीन गौरव लौटेगा, हम वैदिक काल की तरफ जायेंगे।
राम राज आयेगा, तंबू में रहते राम परिवार वाले अपना निजी फ्लैट भी पा जायेंगे।

प्राचीन संस्कृति और परंपरा पुनः जागृत होगी।
भारत आर्यावर्त बनेगा..नदिया गाय के गोबर-घी से भरी रहेंगी।

जात पात छुआछूत ख़तम हो जायेगा,राम सबरी के घर रोज दुपहरिया उपमा और खिचड़ी खाएंगे।

देश स्वदेशी शुद्ध भगवा होगा।
हम अपने मोहल्ले के एक एक गजनी और बाबर को खोज खोज उठा के कंधार से उधर फरगना साइड फेंक देंगे।

जिस तरह से अभी हम लोग 90- 100 करोड़ हिन्दू बिना किसी जात पात आपस में मिल जुल के प्रेम भाव से रहते हैं उसी तरह जब बाकि के 30-35 करोड़ को बाहर निकाल उस एरिया को भी स्वर्ग में तब्दील कर लेंगे जो अभी मस्जिद और मदरसा के कारण नरक के कॉलोनी के रूप में जाने जाते हैं।

तब आपके राज में तो कम से कम किसी रागिनी दुबे नाम की ब्रह्मकन्या की हत्या प्रिंस तिवारी नाम के एक अफगानी तुर्क के द्वारा तो नहीं होगी।

आप आ जायेंगे तो पूरा भरोसा था कि ये देश 100% शुद्ध स्वदेशी भारत होगा और मुंजवत पर्वत पर हमारे पतंजलि का अपना उद्योग स्थापित होगा। कैलाश पर्वत पर हमारा अपना शेयर मार्केट होगा।

गोबर बम परमाणु पर भारी होगा।
मंत्र पढ़ के चीन को हरा देंगे।
सीमा पर सैनिक नहीं,ऋषि दुर्वासा के रूप में हम पंडितों की बहाली होगी।
ठाकुर साब के घर का वीर बहादुर लड़का गांडिव ले के आजमगढ़ से तीर चला के बीजिंग भेद देगा।

कुल मिलाकर मेरे जैसा घनघोर जातिवादी और कट्टर हिन्दू आपके आने से मारे खुशी के देह हाथ में अपने ही गुदगुदी कर बिछौना पर घोलटता और जोगी जोगी जोगी का नारा लगा के टांग उठा चिचियाता,दांत चिहारता।

एक दिन मुझसे 9 क्लास कम पढ़े बेवकूफ लड़के ने मुझे बताया कि, ऐसा कुछ नहीं होने वाला बे।
योगी हों या कोई भी, लोकतंत्र में राज़ धर्म से नहीं बल्कि संविधान से चलता है और प्रशासन की दक्षता से चलता है। देखना योगी जी सबके हित का ध्यान रखते हुए धर्म से ऊपर उठ एक मुख्यमंत्री के रूप में काम करेंगे।

मैं ये सुन निराश हो गया।मैंने घर से पुस्तैनी त्रिशूल निकाला और जय श्री राम का नारा लगाते हुए उसे दौड़ा दिया।
रास्ते में मेरे मित्र ठाकुर साब मिले, उन्होंने हौंसला दिया कि सब होगा बस धीरज रखिये।

मैं चिंता में डूबा रहता, मुँह चुटक के नासपाती हो गया था।मन में आशंका थी कि कहीं आप सच में राजधर्म निभाने लगे और योगी की जगह जनता द्वारा निर्वाचित मुख्यमंत्री के रूप में काम करने लगे तो हमारे प्राइवेट धर्म का क्या होगा जिसके उद्धार के लिए आपका जगत में आगमन हुआ है।
फिर एक दिन इसी उहापोह के बीच जब आपने एक ऐसा आदेश निकाला कि सारी शंका ख़तम।
आदेश था" गूलर के सारे पेड़ काट दिए जायें क्योंकि ये अपशकुन होते हैं "

अब जा के लगा कि, जहां पूरी बेवकूफ दुनिया ने पर्यावरण जैसे बेतुके मुद्दे पर फ़ालतू की चिंता किये पेड़ पौधे लगाने का अभियान छेड़ा हुआ है वहां वो आप ही के जैसे किसी वैदिक ऋषि से ही संभव था कि राज्य हित में मनहूस गूलर के हरे पौधे को खोज खोज उखाड़ फेंकवा दे।

राज्य को आपदा से बचाने का इतना वैदिक मैकेनिज्म एक संत ,एक योगी के पास ही हो सकता है।
एक राज्य के तिथि,मुहूर्त,पत्रा, पञ्चाङ्ग, अक्षत,अबीर जैसे कई मुलभुत अंग होते हैं और इन्ही अंगों के सुचारू संचालन से ही राम राज्य आ सकता है।

योगी जी महाराज, आप केवल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि महा संत विराट पुरुषोत्तम सकलउत्तराधिपति योगी आदित्यनाथ जी महाराज भी हैं।
आप अगर दिन जत्रा और प्रकृति का संदेश नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा?

तो सुनिये महराज, आपको आपके ही वैदिक पञ्चाङ्ग ने एक संकेत दिया है।
आप परसों भद्रा में मनहूस पंचक के दौरान अपने इलाके गोरखपुर गए।

बड़े श्रद्धा के साथ मदरसा में झंडा फहराने का प्रवचन दे के लौटे ।

फिर ठीक अगले दिन चौठ तिथि को उसी गोरखपुर में 30 से 50 मासूम की मौत का हो जाना ?इतना अशुभ पैर?

महा अनर्थ..एक संत के आगमन का ये अभिशाप?
इतना अपयश...वहाँ जहां खोज खोज मनहूस गूलर उखाड़ दिया गया हो।

यानी धर्मानुसार,आपकी यात्रा भयंकर मनहूस तिथि में हुयी थी जिसका मनहूस परिणाम ये निकला कि जिस राज्य में शर्म के अभाव में सरकार को मर जाना चाहिए था,वहां ऑक्सीजन के अभाव में मासूम बच्चे काल के ग्रास में समा गये।

हे संत, एक योगी के राज में मासूमों की इतनी नृसंश् हत्या और महायोगी अभी तक गंगा में समाधि लेने की बजाय cm आवास में है?

जिस धर्म के,जिस जीवन पद्दति के आप अनुसरणकर्ता हैं उसी धर्म ने जब आपको अपयशी और अभागा साबित कर दिया है तो फिर धर्म की विश्वसनीयता और वैद्यता के लिए अभी तक आपको खून रंगी कुर्सी त्याग देनी चाहिए थी न हे संत शिरोमणि cm।

क्यों भगवा को भगंदर बना के राजनीति के मैदान खुल्लम खुल्ला उसे नीलाम कर रहे।
धर्म का ही राज़ हो,पर लाज़ तो हो।
कैसे धोईयेगा ये बालहत्या का पाप?
हवन या वाजपेय यज्ञ से या राजसूयज्ञ या फिर गोरखनाथ के हठ योग से?

धर्म कहता है कि इस पाप का प्रायश्चित करिये, खून से रंगी कुर्सी गंगा में बहा आईये महराज।आप धर्म के रक्षक हैं,आप क्या बच्चे बचाते,आप धर्म तो बचा लीजिये कुर्सी छोड़ के महराज।बाकि हम सब तो शर्म से डूब मरेंगे ही,इसके लिए कोई आपके भरोसे थोड़े हैं।जय हो।


नीलोत्पल मृणाल
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