Janta Ki Awaz
व्यंग ही व्यंग

फेसबुक का माहौल भी तनावपूर्ण परंतु नियंत्रण में

फेसबुक का माहौल भी तनावपूर्ण परंतु नियंत्रण में
X
सुप्रभात,
कृष्ण जन्माष्टमी की सभी मित्रो को बधाई। पिछले एक हफ्ते से एक के बाद एक, ऐसी कई घटनाएं हुयी हैं जिससे सबके मन व्यथित और उद्वेलित है।
फेसबुक का माहौल भी तनावपूर्ण परंतु नियंत्रण में है।
एक दिन किसी ने मुझसे पूछा आपने रागिनी वाली घटना पे कुछ नहीं लिखा। कल किसी ने मुझसे पूछा आपने गोरखपुर की घटना पर अभी तक कुछ नहीं लिखा।
सच कहूँ तो मै अब लिख कर थक गया हूँ।
हमारा काम बस लिखना रह गया है। अपने सुविधानुसार, अपने पसंद के अनुसार, अपने फायदेनुसार।
सही गलत की परिभाषाये भी हम अपने हिसाब से बदलते हैं। कल किसी और के समय जो गलत था वो आज सही है और आज जो गलत है वो कल गलत था।
ये अंतहीन बहस चलती रहेगी। हम हमेशा आपस में सिर टकरा कर फोड़ते रहेंगे। अपने सुविधानुसार अपनी स्थिति बदलते रहेंगे। लेकिन अगर कोई चीज नहीं बदलेगी तो वो है हमारी सड़ी हुयी व्यवस्था। और जो कुछ भी हो रहा है उस सड़े हुए व्यवस्था का परिणाम है। रागिनी को एक युवक ने नहीं मारा। उसे मारा है हमारे सड़े हुए तंत्र ने। अगर उसकी शिकायत पर उस नरपिशाच की आँखे निकाल ली गयी होती तो हत्या तो दूर की बात है, कभी कोई किसी लड़की को आँखे उठा कर भी नहीं देखता।
लेकिन ये हमारे सड़े तंत्र का ही नतीजा है कि जिस राक्षस को चैराहे पर लटका दिया जाना चाहिए, वो मुस्कुराते हुए समर्पण करता है जैसे उसने दुनिया का सबसे बड़ा कारनामा किया हो।
गोरखपुर में 60 बच्चे मर गए और इसके साथ ही शुरू हो गया आरोप प्रत्यारोप का दौर। कोई नेता को दोषी कह रहा है, कोई डॉक्टर को।
लेकिन असली दोषी सड़ा हुआ तंत्र और व्यवस्था है।
अगर हमारे पास जबाबदेही की कठोर व्यवस्था होती त फिर ये गेंद इस पाले से उस पाले फेकने का खेल नहीं चलता। इसके जिम्मेदार लोग अभी तक सलाखों के पीछे होते। फिर आज एक रेल दुर्घटना पर नैतिकता का हवाला देकर अपने पद का त्याग करने वाले शास्त्री जी के विरासत संभालने वाले उनके पोते को बेशर्मी से इस नरसंहार को जस्टिफाई करने की हिम्मत नहीं होती।
मै नहीं लिख रहा इसका मतलब ये नहीं कि आप भी मत लिखिए। लेकिन मेरी सलाह है कि संभल के लिखिए।
क्योकि ये भ्रस्ट तंत्र कभी भी किसी को निगल सकता है।
आज से 14 साल पहले सबसे बड़े ईमानदार प्रधानमंत्री को मेरे मित्र ने लिखा था। उनके ड्रीम प्रोजेक्ट स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क योजना में व्याप्त भ्रस्टाचार पर और भ्रस्टाचार से मुक्ति के बदले में उन्हें ही जीवन से मुक्त कर दिया गया।
इसीलिए अगर ताकत है, हिम्मत है तो आईये लड़ते है इस सड़े हुए तंत्र से।


धनंजय तिवारी
Next Story
Share it