"बाढ़- तू हमरा किहाँ काहे ना आवेलू !"
BY Suryakant Pathak17 Aug 2017 7:22 AM GMT

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Suryakant Pathak17 Aug 2017 7:22 AM GMT
इ एगो अइसन सवाल रहे जवन हम हर साल बाढ़ से पूछी अपनी लइकाई में। लइकाई के उमिर, ओ समय तक इ बुद्धि ना विकसित भईल रहे की हम ओकर लाभ हानि के आकलन क सकी। हमरा अउरी हमरा टोली के लइका कुल के बाढ़ के माने बस इहे रहे कि खायींची भर के ख़ुशी अउरी स्कूल से छुट्टी। कबो कबो बरखा के दिन में हमरा स्कूल के अहाता में ठेहुना भर पानी लाग जाओ। नारियल के सूखल लकड़ी पड़ल रहे। फेरु स्कूल के लईका कुल एगो छोट लकड़ी लेके नारियल के लकड़ी पर खड़ा हो जा सं अउरी उ लकड़ी हमनी के डेंगी बन जाऊ। ओके लेके हमनी के चारू ओर घूमी जा पानी में अउरी खूब माजा आवे। एहि से हमनी के लागे कि जहवाँ बाढ़ आवत होइ ओइजा के लईका कुल के खूब आनंद आवत होई। वइसे त हमनी के गांव भी अन्य गांव जइसन ही रहे लेकिन नदी गंडक से करीब २० किलो मीटर दूर भईला से हमनी किहाँ कबो बाढ़ ना आवे। गांव भी उचास पर रहे त पानी भी लागे। बरखा के दिन में जब भी इ सुनाऊ की फलाना गांव में बाढ़ आयिल बा त अपना गांव में जनम लेहला के बड़ा अफ़सोस होखे। मन में कचोट उठे की हम काहे ना ओहि गांव में पैदा भईनी।
एक साल बाढ़ हमनी के गांव से सात किलोमीटर दूर तक पहुचल रहे। बढ़ बुजुर्ग लोग देखे जाऊ अउरी आके ओकर बखान करे लोग त जियरा जरी बुताऊ। मन करे की हमहू जाके देख आयी। पर फेरु बाबूजी के लाठी याद आ जाऊ। उहाँ के साफ़ साफ़ कहनाम रहे की बाढ़ से लईका लोग के दूर ही रहे के चाही। जबसे बाढ़ अकटहि पहुचल रहे, माई के भी खास अगोराई रहे हमरा ऊपर। स्कूल छोड़े अउरी लियावे दीदी के भेजस।
धीरे धीरे लइकाई से सयान हो गईनी। बाढ़ के कभी प्रत्यक्ष त देखे के मौका ना मिलल पर बाढ़ के मायने का होला इ टीवी अखबार में देख के बुझा गईल। लइकाई में बाढ़ के मतलब रहे ख़ाली मजा लेकिन सयान भईला पर जननि कि एकर माने होला महाविनाश, पलायन, विस्थापन अउरी कभी ना ख़तम होखे वाला पीड़ा। गांव के गाँव उजड़ जाला, लोग के जिंदगी भर के मर मर के इकठ्ठा कईल तिनका, एक पल में बिखर जाला अउरी जान से भी प्यारा अपना घर, गांव अउरी जवार से नाता टूट जाला।
जी हां इहे होला बाढ़ जवन की हम सयान होके बुझनी अउरी फेरु हमके अपना गांव के पैदा भईला के ख़ुशी महसूस भईल। मने मन ऊपरवाला के भी धन्यबाद देहनी की उ हमार कबो इच्छा ना पूरा कईले।
खैर हमरा सवाल के जबाब त हमरा बड़ भईला पर मिल गईल पर एगो सवाल के जबाब आजले ना मिलल। वशीर वदर जी के एगो शेर में तनिक सा बदलाव क के हम उ सवाल बाढ़ से पूछतानी -
तिनका तिनका जोड़त, लोग टूट जाला एगो पलानी छवावे में।
ऐ बाढ़, तहरा तनिको दया ना आवेला नगर के नगर दहावे में।
आजू फेरु से बाढ़ के बिहार के एगो बहुत बड़ भाग के अपना चपेट में ले लेले बिया अउरी लोग के मर मर के बनावल आशियाना उजड़ रहल बा.
अब बस ईश्वर से इहे प्रार्थना बा कि हे भगवान केहू के बाढ़ से सामना ना होखे.
केहू किहाँ बाढ़ मत भेज.
धनंजय तिवारी
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