हे पिता : पुष्पा

हे पिता
न तू बचा न मैं बचा
भीषण प्रचंड प्रहारों से
धूं-धूं जलते घर सारे
कोई मन्दिर,कोई मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारे
हे पिता हम तेरी कैसी संताने
न तू बचा न मैं बचा ।
बुभुक्षा का दम टूट रहा
परिश्रम सड़को पर घिसट रहा
मानवता तिल तिल मर रही
हाहाकार मच रहा
हे पिता हम तेरी कैसी संताने
न तू बचा न मैं बचा ।
जो हाथ गढ़ सकते नया शिल्प
वे छुरी,चाकू, तमंचे नचाते
आपस में ही मरते मारते
नातों की कड़ियाँ को तोड़ते
हे पिता हम तेरी कैसी संताने
न तू बचा न मैं बचा
गृह स्वामिनी, शुशोभित कामिनी
भयभीत वो, देह बचाये चलती
आँचल में जिसके विश्व समाया
वह आज ठौर अपनी ढूढ़ती
हे पिता हम तेरी कैसी संताने
न तू बचा न मैं बचा ।
धरा उगती थी सोना
वह ऊसरपन पर अपने रोती
चीर-फाड़ खोखली हुई अब
हे मानव भाग्य पर भी तेरे मैं रोती
हे पिता हम तेरी कैसी संताने
न तू बचा न मैं बचा ।
क्या संकेत छिपा है इसमें
मानव न पहचान रहा
क्या लड़ लड़ अवसान होगा
क्या कट कट इति हो जायेगा
या सभ्यता का नया दौर फिर लौट के आएगा
महा तांडव के मूल्यों पर कुछ मिला भी तो क्या मिला
हे पिता हम तेरी कैसी संताने
न तू बचा न मैं बचा ।