अखिलेश यादव को खुला पत्र : आपकी वाणी, आपके हर कृत्य मे परिपक्वता की जरूरत – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव
![अखिलेश यादव को खुला पत्र : आपकी वाणी, आपके हर कृत्य मे परिपक्वता की जरूरत – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव अखिलेश यादव को खुला पत्र : आपकी वाणी, आपके हर कृत्य मे परिपक्वता की जरूरत – प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव](https://www.jantakiawaz.org/h-upload/uid/nullw4NjaY8ISefD3uvKfIneP5RVo4T8ewn47623035.jpg)
प्रिय अखिलेश ! खुश रहो ;
अपनों के बीच मे पाकर आज खुद को भावुक होने से आप बचा नहीं पाये। आपको मंचों से जो नहीं बोलना चाहिए था, आप वह बोलते चले गए । जबसे चुनाव शुरू हुआ है, तबसे आप जिस प्रसंग से बचते आए, जिसके बारे मे हर प्रेस मे, हर सभा मे पत्रकार आपको कुरेदते रहे । यदि जवाब देने की विवशता हुई, तो आपने ऐसे संकेतों मे बात की, कि वह बात कइयों को समझ मे नहीं आती थी ।
किन्तु आज करहल की चुनावी सभा से जो सिलसिला आपने शुरू किया, उसकी पूर्णाहुति आपने इटावा के नुमाइश ग्राउंड मे पूरी कर दी। करहल की सभा मे आपने बिना शिवपाल सिंह का नाम लिए उन पर हमला बोला। पहले तो मैं समझा कि अपने घर से 2.5 किलोमीटर दूर स्थित इस सभा मे आपके अपने होंगे, अभी-अभी उस विषय पर कुछ बात हुई होगी, इसलिए आपके दिमाग मे वही था, और आपने भूमिका के रूप मे वह बात कह गए। लेकिन जब हर सभा मे आपने नए-नए दृष्टांतों का प्रयोग करके उसी बात के विभिन्न अंशों को दुहराते रहे, तो मेरा माथा ठनका, कि जो परिपक्वता अखिलेश मे होनी चाहिए, वह अभी नहीं आई है । प्रिय अखिलेश ! समाजवादी राजनीतिक ऐसी है, कि दफ्तर के अंदर कुछ हो, घर के अंदर कुछ हो, आपस मे कुछ हो, लेकिन वह बात मंचों से नहीं कही जाती, चौराहों पर चर्चा नहीं की जाती। जो आज आपने कर दी।
एक अच्छे समाजवादी नेता की यही पहचान होती है। जैसे-जैसे समय बीतता है, उसकी जिम्मेदारिया बढ़ती जाती हैं, वैसे-वैसे गंभीरता भी बढ़ती जानी चाहिए। दूसरी बात यह कहनी है कि 25 साल के पहले के युवा जिस तरह से राजनीति करते हैं, 25 साल बाद के युवा की राजनीति करने के तरीके से बिलकुल भिन्न होती है। कभी-कभी मुझे आपके अंदर वही 25 साल वाला समाजवादी पैदा होता हुआ दिख जाता है। अब आपको हर पल इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, आपकी हर हरकत इस प्रदेश और देश के समाजवादी कार्यकर्ता और नेता के लिए नजीर बनती है। अब आप समान्य नेता नहीं हैं। अब आपको बाहर निकलने के पहले पूरी वेषभूषा मे निकलना पड़ेगा। आप तो खिलाड़ी रहे हैं, और अच्छे खिलाड़ी रहे हैं, बिना उसकी निर्धारित भेषभूषा के वह खेल नहीं खेला जाता है। फिर खेल मे हार –जीत सहित खेल के दौरान की हर गतिविधि खेल के साथ ही समाप्त हो जाती है, सभी गले मिलते हैं, हाथ मिलाते हैं और हँसते- खेलते अपनी हार और जीत का विश्लेषण करते अपने घर को चले जाते हैं। हार या मैदान के अंदर घटी किसी अप्रिय घटना के घटना के कारण दुश्मनी जैसे व्यवहार नहीं करते। इसी तरह से समाजवादी राजनीति भी है। हो सकता है, कई लोग आपके अनुरूप कार्य न करें। उनके विचार आपसे भिन्न हों, उनके कार्य करने के का तरीका अलग हो, लेकिन यह जान लीजिये हर कोई अपना बेस्ट देने की कोशिश करता है। ठीक उसी तरह अब आपको भी बेस्ट देने की कोशिश करना चाहिए ।
आपकी एक बात और समाजवादी दृष्टिकोण से सही नही दिखाई दे रही है, आप आए दिन जिलो के अध्यक्षों को बदल रहे हैं। जो समाजवादी दर्शन के अनुसार बिलकुल उचित नहीं है। माना कि वे किसी दुर्भावना से ग्रसित हों, लेकिन ऐसे समय मे यानि चुनाव के समय मे चोर के हाथ मे ही चौकीदारी देने जैसा काम करना पड़ता है। इससे जो और नेता होते हैं, उन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। और नेता की उदारता की जय-जयकार होती है।
बस आपसे इतनी ही अपील है कि चुनाव इस समय चरम पर है। सभी बातों को भुला कर केवल प्रत्याशियों को कैसे जिताया जाये, सभाओं मे क्या बोला जाए, उस पर होमवर्क करिए । शुरू के दिनों मे आपने मेरे कहने पर अपनी सभाओं को संबोधित करते हुए स्थानीय मुद्दों को बोलने मे प्रयोग किया, लेकिन इस समय फिर आप बहक गए हैं। यदि आप स्थानीय मुद्दों को अपनी स्पीच मे शामिल करेंगे, तो लोगों का दिली जुड़ाव होगा, और लोग चुनाव के दिन आपके चुनाव चिह्न का बटन दबाने के लिए आगे आएंगे। चुनाव मे हमें नए लोगों को जोड़ना होता है, जो आपके हैं, वे तो वोट करेंगे ही, आपने नए कितने लोगों को जोड़ा, यही जीत का आधार बनता है। इस बात का ध्यान रखिए। मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं ।
आपका अपना ही
प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव