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बीजेपी को यूपी के लिए तलाश एक अदद चेहरे की है.....मगर पूरी नहीं हो रही
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दो टूक फैसले के लिए पहचान रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक करियर में पहली बार किसी निर्णय को लेकर बहुत मुश्किल व उलझन में हैं। भाजपा की भावी सियासत के लिहाज से बेहद अहम यूपी के विधानसभा चुनाव के लिए करिश्माई चेहरे की तलाश वे पूरी नहीं कर पा रहे। जबकि मैदान में सपा-बसपा व कांग्रेस के सीएम दावेदार समर्थकों के साथ जोर-शोर से उतरकर भाजपा को ललकार रहे।सूबे के सियासी समीकरण के खांचे में फिट न बैठने वाला चेहरा मिलने में हो रही देरी से मोदी चिंतित बताए जा रहे।
कहा जा रहा कि मोदी विरोधी दलों के अपने कुछ शुभचिंतक करीबी मित्रों से भी इस बारे में रायशुमारी कर रहे।
राजनाथ को चाहते थे मोदी मगर उन्होंने खड़े किए हाथ
कल्याण सिंह के बाद यूपी में भाजपा से कोई बड़ा चेहरा सामने दिखता है तो वह राजनाथ सिंह ही हैं। राजनाथ 2002 तक यूपी में बतौर मुख्यमंत्री सरकार भी चला चुके हैं। कद भी उनका विरोधी दलों के दावेदारों के टक्कर का है। मगर राजनाथ सिंह यूपी चुनाव में बतौर सीएम दावेदार उतरने का साहस नहीं जुटा रहे। उन्हें लग रहा कि अगर पार्टी नहीं जीतेगी तो हार का ठीकरा पार्टी के विरोधी उनके सिर फोड़ेंगे। जिससे केंद्र में नंबर दो की हैसियत वाला गृहमंत्रालय जो संभाल रहे हैं, वह भी हाथ से फिसल सकता है। मोदी राजनाथ को चाहते रहे, इसी वजह से सरकार के दो साल पूरे होने पर सहारनपुर में 26 मई को रैली की तो उन्हें साथ ले गए। मगर राजनाथ की ना के बाद मोदी अब नए विकल्प देख रहे हैं।
नए दौर की सिसासत में उमा भारती फिट नहीं
कई चेहरे खारिज हुए तो मोदी के करीबियों ने उमा भारती का नाम मोदी के सामने पेश किया। समर्थन में तर्क दिए गए कि मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री होने का अनुभव है। वाकपटु हैं। पिछड़े वर्ग की सियासत में अहम चेहरा मानी जातीं हैं। हिंदुत्ववादी भी हैं। एक साथ कई खूबियां हैं। यूं तो मोदी भी उमा भारती को काफी तवज्जो देते हैं मगर उन्हें यूपी में मुख्यमंत्री का दावेदार बनाने को तैयार नहीं। वजह कि उमा भारती परंपरागत राजनीति में ज्यादा यकीन रखती हैं। जबकि मोदी आज की हाईटेक राजनीति करने वालों को ही पसंद कर रहे। दूसरी बात कि 2012 का जो इलेक्शन हुआ था यूपी में उसमें उमा भारती का काफी विरोध हुआ था, इस नाते भी मोदी उन्हें लाकर अंदरखाने कोई बगावत पैदा नहीं करना चाहते।
विकास के दौर में फायर ब्रांड योगी को नहीं लाना चाहते मोदी
योगी आदित्यनाथ पर संघ की भी कृपा रही। उनके समर्थक भी दो महीने पहले से उन्हें दावेदार मानकर सोशल मीडिया पर कैंपेनिंग चला रखे हैं। मगर पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि अब विकास का दौर चल रहा है। सपा सरकार यूपी में विकास के दम पर विरोधी दलों को ललकार रही है। ऐसे में मोदी प्रखर हिंदुवादी और फायरब्रांड नेता आदित्यनाथ को दावेदार नहीं बनाना चाहते। इससे भाजपा पर विरोधी दल सांप्रदायिकता की राजनीति का सहारा लेने की तोहमत मढ़ेंगे। उधर बीते दिनों गोरखपुर की रैली में जब मोदी पहुंचे तो उन्होंने बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। बंद पड़ी फर्टिलाइजर फैक्ट्री की रीलांचिंग पर पूर्वांचल के लगभग सभी सांसदों को बुलवाकर साझा श्रेय दिया। 40 मिनट के भाषण में योगी का जिक्र भी उतना नहीं हुआ, जितना की समर्थक उम्मीद पाले थे। ऐसे में बताया जा रहा कि मोदी ने योगी की दावेदारी खारिज कर दी है।
स्मृति के सितारे गर्दिश में, यूपी में लाने का रिस्क नहीं
सियासत में या तो उगते सूरज को सलाम किया जाता है। नहीं तो जिनके अच्छे दिन चल रहे होते हैं या फिर कोई सदाबहार नेता। स्मृति ईरानी के सितारे अचानक गर्दिश में चले गए हैं। स्मृति के गुस्से वाले एटीट्यूड के चलते जिस तरह से उनसे तमाम नेता और मंत्रालय के अफसर कन्नी काटते हैं, उससे मोदी उन्हें यूपी की राजनीति में उतारकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। इस प्रकार पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि मोदी व अमित शाह की लिस्ट से ईरानी का नाम भी गायब है।
वरुण पर भारी पड़ा गांधी सरनेम
गांधी परिवार का विरोध करते-करते भाजपा राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य में पहचान बनाने में सफल रही। वरुण गांधी भले ही भाजपा में हैं, मगर गांधी सरनेम भी लगा है। ऐसे में कहीं न कहीं उन्हें भाजपा नेताओं के ही पूर्वाग्रह का शिकार होना पड़ता है। दूसरी बात है वरुण गांधी के रौबीले स्वभाव के कारण भी मोदी व अमित शाह उन्हें पसंद नहीं करते।
हरियाणा व महाराष्ट्र जैसा हो सकता है फैसला
यूपी और देश की राजनीति में पहचान रखने वाले प्रमुख चेहरों के समीकरण में फिट न बैठने से मोदी व अमित शाह की जोड़ी यूपी के लिए नया चेहरा ला सकती है। इसके लिए संघ की मदद भी ली जा रही है। कहा जा रहा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरह से अन्जान रहे मनोहर लाल खट्टर व महाराष्ट्र चुनाव के बाद देवेंद्र फड़णवीस को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई, उसी तरह से कोई नया चेहरा यूपी के लिए लाया जा सकता है। अंतर सिर्फ इतना है कि इस बार भाजपा पर चुनाव से पहले ही सीएम दावेदार घोषित करने का दबाव है। क्योंकि बिहार चुनाव में बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ने का खामियाजा पार्टी भुगत चुकी है।
कहा जा रहा कि मोदी विरोधी दलों के अपने कुछ शुभचिंतक करीबी मित्रों से भी इस बारे में रायशुमारी कर रहे।
राजनाथ को चाहते थे मोदी मगर उन्होंने खड़े किए हाथ
कल्याण सिंह के बाद यूपी में भाजपा से कोई बड़ा चेहरा सामने दिखता है तो वह राजनाथ सिंह ही हैं। राजनाथ 2002 तक यूपी में बतौर मुख्यमंत्री सरकार भी चला चुके हैं। कद भी उनका विरोधी दलों के दावेदारों के टक्कर का है। मगर राजनाथ सिंह यूपी चुनाव में बतौर सीएम दावेदार उतरने का साहस नहीं जुटा रहे। उन्हें लग रहा कि अगर पार्टी नहीं जीतेगी तो हार का ठीकरा पार्टी के विरोधी उनके सिर फोड़ेंगे। जिससे केंद्र में नंबर दो की हैसियत वाला गृहमंत्रालय जो संभाल रहे हैं, वह भी हाथ से फिसल सकता है। मोदी राजनाथ को चाहते रहे, इसी वजह से सरकार के दो साल पूरे होने पर सहारनपुर में 26 मई को रैली की तो उन्हें साथ ले गए। मगर राजनाथ की ना के बाद मोदी अब नए विकल्प देख रहे हैं।
नए दौर की सिसासत में उमा भारती फिट नहीं
कई चेहरे खारिज हुए तो मोदी के करीबियों ने उमा भारती का नाम मोदी के सामने पेश किया। समर्थन में तर्क दिए गए कि मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री होने का अनुभव है। वाकपटु हैं। पिछड़े वर्ग की सियासत में अहम चेहरा मानी जातीं हैं। हिंदुत्ववादी भी हैं। एक साथ कई खूबियां हैं। यूं तो मोदी भी उमा भारती को काफी तवज्जो देते हैं मगर उन्हें यूपी में मुख्यमंत्री का दावेदार बनाने को तैयार नहीं। वजह कि उमा भारती परंपरागत राजनीति में ज्यादा यकीन रखती हैं। जबकि मोदी आज की हाईटेक राजनीति करने वालों को ही पसंद कर रहे। दूसरी बात कि 2012 का जो इलेक्शन हुआ था यूपी में उसमें उमा भारती का काफी विरोध हुआ था, इस नाते भी मोदी उन्हें लाकर अंदरखाने कोई बगावत पैदा नहीं करना चाहते।
विकास के दौर में फायर ब्रांड योगी को नहीं लाना चाहते मोदी
योगी आदित्यनाथ पर संघ की भी कृपा रही। उनके समर्थक भी दो महीने पहले से उन्हें दावेदार मानकर सोशल मीडिया पर कैंपेनिंग चला रखे हैं। मगर पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि अब विकास का दौर चल रहा है। सपा सरकार यूपी में विकास के दम पर विरोधी दलों को ललकार रही है। ऐसे में मोदी प्रखर हिंदुवादी और फायरब्रांड नेता आदित्यनाथ को दावेदार नहीं बनाना चाहते। इससे भाजपा पर विरोधी दल सांप्रदायिकता की राजनीति का सहारा लेने की तोहमत मढ़ेंगे। उधर बीते दिनों गोरखपुर की रैली में जब मोदी पहुंचे तो उन्होंने बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। बंद पड़ी फर्टिलाइजर फैक्ट्री की रीलांचिंग पर पूर्वांचल के लगभग सभी सांसदों को बुलवाकर साझा श्रेय दिया। 40 मिनट के भाषण में योगी का जिक्र भी उतना नहीं हुआ, जितना की समर्थक उम्मीद पाले थे। ऐसे में बताया जा रहा कि मोदी ने योगी की दावेदारी खारिज कर दी है।
स्मृति के सितारे गर्दिश में, यूपी में लाने का रिस्क नहीं
सियासत में या तो उगते सूरज को सलाम किया जाता है। नहीं तो जिनके अच्छे दिन चल रहे होते हैं या फिर कोई सदाबहार नेता। स्मृति ईरानी के सितारे अचानक गर्दिश में चले गए हैं। स्मृति के गुस्से वाले एटीट्यूड के चलते जिस तरह से उनसे तमाम नेता और मंत्रालय के अफसर कन्नी काटते हैं, उससे मोदी उन्हें यूपी की राजनीति में उतारकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। इस प्रकार पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि मोदी व अमित शाह की लिस्ट से ईरानी का नाम भी गायब है।
वरुण पर भारी पड़ा गांधी सरनेम
गांधी परिवार का विरोध करते-करते भाजपा राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य में पहचान बनाने में सफल रही। वरुण गांधी भले ही भाजपा में हैं, मगर गांधी सरनेम भी लगा है। ऐसे में कहीं न कहीं उन्हें भाजपा नेताओं के ही पूर्वाग्रह का शिकार होना पड़ता है। दूसरी बात है वरुण गांधी के रौबीले स्वभाव के कारण भी मोदी व अमित शाह उन्हें पसंद नहीं करते।
हरियाणा व महाराष्ट्र जैसा हो सकता है फैसला
यूपी और देश की राजनीति में पहचान रखने वाले प्रमुख चेहरों के समीकरण में फिट न बैठने से मोदी व अमित शाह की जोड़ी यूपी के लिए नया चेहरा ला सकती है। इसके लिए संघ की मदद भी ली जा रही है। कहा जा रहा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरह से अन्जान रहे मनोहर लाल खट्टर व महाराष्ट्र चुनाव के बाद देवेंद्र फड़णवीस को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई, उसी तरह से कोई नया चेहरा यूपी के लिए लाया जा सकता है। अंतर सिर्फ इतना है कि इस बार भाजपा पर चुनाव से पहले ही सीएम दावेदार घोषित करने का दबाव है। क्योंकि बिहार चुनाव में बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ने का खामियाजा पार्टी भुगत चुकी है।
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