जानें NTPC हादसे पर क्या कहतें हैं विशेषज्ञ
BY Anonymous2 Nov 2017 2:59 AM GMT
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Anonymous2 Nov 2017 2:59 AM GMT
ऊंचाहार के थर्मल पावर स्टेशन के बॉयलर में हुआ विस्फोट क्या कोयले की सप्लाई में आए असंतुलन से बिगड़े प्रेशर की वजह से हुआ? थर्मल पावर के क्षेत्र में कई वर्षों तक काम कर चुके वरिष्ठ बिजली इंजीनियर शैलेंद्र दुबे फिलहाल ऐसा ही मानते हैं।
घटना के बाद एनटीपीसी से जुड़े विशेषज्ञों से मिली जानकारियों और अपने अनुभवों के आधार पर वे बताते हैं कि कोयले के 10 मीटर आकार के क्लिंकर को तोड़ रहे मजदूर इस विस्फोट की चपेट में आए। उनके जरिए घटना के पीछे की स्थितियां और थर्मल पावर जनरेशन से जुड़ी जानकारियों को समझा जाए तो इस विस्फोट की पूरी कहानी सामने आ जाती है।
स्टेज 1 :
कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले थर्मल पावर स्टेशनों पर खदानों से खोद कर लाया गया कोयला ढेलों के रूप में होता है। ये ढेले कुछ सेंटीमीटर से आधा-एक मीटर तक के आकार केहो सकते हैं। छोटे-बड़े आकार के ये ढेले एक समान तापमान पर नहीं जल सकते। वे अपने आकार के अनुसार गर्मी पैदा करते हैं। जबकि बॉयलर को यह कोयला एक नियंत्रित मात्रा में 'फीडिंग रेट' पर चाहिए होता है। ऐसे में इन्हें जलाने से पहले पीसा जाता है। इसके पीछे यह भी वैज्ञानिक तर्क दिया जाता है कि बारीक पीसा कोयला ज्वलनशील गैस जैसी कुशलता से भी जलेगा। इसीलिए इसका पाउडर बनता है, जिसे पल्वराइज्ड कोयला कहते हैं। इसे आमतौर पर सिलेंडर रोलरों में पीसा जाता है।
स्टेज 2 :
पीसा हुआ कोयला करीब 340 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाली गर्म हवा फेंकते डायर से गुजारा जाता है ताकि इससे पानी की मात्रा खत्म हो जाए। इस कोयले के पाउडर को यही गर्म हवा सीधे बॉयलर में मौजूद बर्नरों पर ले जाती है। बर्नर का काम होता है पाउडर कोयले को हवा के साथ और गर्मी देना। हवा इसलिए ताकि वे जल सकें। इस जलते हुए कोयले से पानी को उबाला जाता है। इस पानी की भाप को स्टीम ड्रम के जरिए आगे बढ़ाया जाता है।
स्टेज 3 : यही भाप पाइप के जरिए टर्बाइन तक पहुंचाई जाती है। भाप की ऊर्जा से टर्बाइन घूमने लगती हैं और इन टर्बाइन से जुड़े जनरेट बिजली पैदा करने लगते हैं। यही बिजली विभिन्न चरणों से गुजरते हुए हमारे घरों तक पहुंचती है।
गड़बड़ी कहां हुई...
शैलेंद्र दुबे का दावा है कि कोयले के ढेलों को तोड़ने की जरूरत होती है ताकि वे रोलरों से पीसे जाने योग्य हो सकें। ऊंचाहार के इस मामले की जड़ यहीं पर है। बताया जा रहा है कि करीब 10 मीटर का कोयले का क्लिंकर मजदूरों के सामने रखा गया, जिसे उन्हें तोड़कर पीसने के लिए भेजना था।
यह बेहद मजबूत होता है, इसे हथोड़ों और सरियों-सब्बलों की चोट से तोड़ा जाने लगा। इतने बड़े कोयले के ढेले को तोड़ने के लिए मजदूरों की बड़ी संख्या लगानी पड़ी। समय भी बीतता गया। इसी दौरान बॉयलर में भेजने के लिए पाउडर कोयले की मात्रा (फीडिंग रेट) कम होती गई। इसने बॉयलर में प्रेशर का संतुलन बिगाड़ दिया। यही बिगड़ा संतुलन धमाके के रूप में सामने आया।
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