शिवपाल के इस्तीफे के बाद हो सकती है पार्टी के विभाजन की शुरुआत
BY Suryakant Pathak16 Sep 2016 1:11 AM GMT
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Suryakant Pathak16 Sep 2016 1:11 AM GMT
शिवपाल सिंह यादव का मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा समाजवादी पार्टी के गठन के बाद सबसे बड़ा राजनीतिक संकट माना जा रहा है। यदि सपा नेतृत्व ने डैमेज कंट्रोल नहीं किया तो यह पार्टी में विभाजन की शुरुआत बन सकता है। सपा के कुछ नेता और मंत्री भी इस्तीफा दे सकते हैं।
शिवपाल के इस्तीफे की सूचना मिलने के बाद गुरुवार आधी रात को उनके आवास पर सैकड़ों समर्थक जमा हो गए और नारेबाजी करने लगे। शिवपाल सपा के प्रदेश अध्यक्ष और नेता विरोधी दल रह चुके हैं। मौजूदा सरकार में वे सबसे कद्दावर मंत्री थे। तीन दिन पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह ने उन्हें अखिलेश यादव की जगह सपा का प्रदेश अध्यक्ष नामित किया था।
इसके रिएक्शन में मुख्यमंत्री ने शिवपाल से लोकनिर्माण, सिंचाई, सहकारिता और राजस्व जैसे अहम विभाग छीन लिए। इससे शिवपाल काफी आहत थे। शिवपाल, मुलायम के बेहद नजदीक रहे हैं। उनके एजेंडे के लिए सब कुछ करते रहे हैं। वे पार्टी में लंबे समय से अहम भूमिका में हैं।
सपा नेताओं का मानना है कि सपा के गठन के बाद पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन शिवपाल के इस्तीफे से उपजे संकट जैसे हालात पहले नहीं बने। यदि सपा मुखिया हालात संभालने में नाकाम रहे तो पार्टी में विभाजन की स्थिति भी बन सकती है।
इसके रिएक्शन में मुख्यमंत्री ने शिवपाल से लोकनिर्माण, सिंचाई, सहकारिता और राजस्व जैसे अहम विभाग छीन लिए। इससे शिवपाल काफी आहत थे। शिवपाल, मुलायम के बेहद नजदीक रहे हैं। उनके एजेंडे के लिए सब कुछ करते रहे हैं। वे पार्टी में लंबे समय से अहम भूमिका में हैं।
सपा नेताओं का मानना है कि सपा के गठन के बाद पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन शिवपाल के इस्तीफे से उपजे संकट जैसे हालात पहले नहीं बने। यदि सपा मुखिया हालात संभालने में नाकाम रहे तो पार्टी में विभाजन की स्थिति भी बन सकती है।
सपा में हो सकती है उठापटक
मुलायम ने सपा की स्थापना 1992 में की थी। इससे पहले मुलायम 1989 में मुख्यमंत्री चुने गए थे। उनके सामने पहला राजनीतिक संकट तब आया था जब लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में राम मंदिर निर्माण के लिए यात्रा निकाली गई थी। मुलायम के मुख्यमंत्री रहते कारसेवकों पर गोली चली। मौजूदा संकट को उससे भी गंभीर माना जा रहा है।
शिवपाल के इस्तीफे के बाद सपा में जबर्दस्त हलचल है। हालांकि परिवार का विवाद होने के कारण कोई भी खुलकर नहीं बोल रहा, लेकिन शिवपाल के पक्ष में कुछ दिनों में और नेताओं के इस्तीफे आने की संभावना है। शिवपाल जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं से जुड़े हैं।
पिछले चार साल में प्रदेश में उनकी सर्वाधिक सक्रियता रही है। वे पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से सर्वाधिक मिलते भी हैं। इस कारण उनके इस्तीफे से पार्टी में बड़ी उठापटक की संभावना जताई जा रही है। सपा से जुड़े नेता तो यहां तक मान रहे हैं कि यदि शिवपाल का सम्मान बहाल नहीं हुआ तो कुछ मंत्री और विधायक उनके पक्ष में खुलकर सामने आ सकते हैं।
शिवपाल के इस्तीफे के बाद सपा में जबर्दस्त हलचल है। हालांकि परिवार का विवाद होने के कारण कोई भी खुलकर नहीं बोल रहा, लेकिन शिवपाल के पक्ष में कुछ दिनों में और नेताओं के इस्तीफे आने की संभावना है। शिवपाल जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं से जुड़े हैं।
पिछले चार साल में प्रदेश में उनकी सर्वाधिक सक्रियता रही है। वे पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से सर्वाधिक मिलते भी हैं। इस कारण उनके इस्तीफे से पार्टी में बड़ी उठापटक की संभावना जताई जा रही है। सपा से जुड़े नेता तो यहां तक मान रहे हैं कि यदि शिवपाल का सम्मान बहाल नहीं हुआ तो कुछ मंत्री और विधायक उनके पक्ष में खुलकर सामने आ सकते हैं।
सपा के गढ़ में है शिवपाल की पकड़
सपा मुखिया मुलायम सिंह के परंपरागत गढ़ समझे जाने वाले इटावा, मैनपुरी, एटा, फर्रुखाबाद आदि जिलों में शिवपाल यादव की मजबूत पकड़ है। अन्य जिलों में भी उनकी टीम है। को-ऑपरेटिव आंदोलन से भी उन्होंने तमाम नेताओं को पार्टी से जोड़ा है।
दरअसल, शिवपाल सपा के गढ़ में तमाम नेताओं व कार्यकर्ताओं ही नहीं, आम लोगों का भी ध्यान रखते हैं। वे मैनपुरी और इटावा में सर्वाधिक समय देते हैं। उनके संसदीय क्षेत्र जसवंतनगर में सपा को एकतरफा बढ़त मिलती रही है।
राजनीति के शुरुआती दौर से ही शिवपाल नेताजी (मुलायम सिंह) के चुनाव अभियान की कमान संभालते रहे हैं। इसके लिए उन्होंने कई बार जोखिम भी उठाए हैं। राजनीतिक हलकों में उन्हें मुलायम का हनुमान कहा जाता है।
दरअसल, शिवपाल सपा के गढ़ में तमाम नेताओं व कार्यकर्ताओं ही नहीं, आम लोगों का भी ध्यान रखते हैं। वे मैनपुरी और इटावा में सर्वाधिक समय देते हैं। उनके संसदीय क्षेत्र जसवंतनगर में सपा को एकतरफा बढ़त मिलती रही है।
राजनीति के शुरुआती दौर से ही शिवपाल नेताजी (मुलायम सिंह) के चुनाव अभियान की कमान संभालते रहे हैं। इसके लिए उन्होंने कई बार जोखिम भी उठाए हैं। राजनीतिक हलकों में उन्हें मुलायम का हनुमान कहा जाता है।
मुलायम की अनदेखी से भी आहत
सपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक शिवपाल इस बात से भी आहत हैं कि पार्टी में नेताजी (मुलायम) की अनदेखी की जाने लगी है। पार्टी व सरकार में मचे घमासान का हल निकालने में भी वे खुद को बहुत सहज नहीं पा रहे हैं।
शिवपाल उन्हें इस स्थिति में नहीं देखना चाहते। इसीलिए उन्होंने खुद ही रास्ता निकाला और प्रदेश अध्यक्ष व मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। सपा सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव चुनावी साल में प्रदेश अध्यक्ष पद नहीं छोड़ना चाहते हैं।
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