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उत्तर प्रदेश

क्‍यों चुनावों के वक्‍त पूर्वी यूपी में कौमी एकता दल किसी भी पार्टी के लिए खास हो जाता है?

क्‍यों चुनावों के वक्‍त पूर्वी यूपी में कौमी एकता दल किसी भी पार्टी के लिए खास हो जाता है?
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कौमी एकता दल वर्ष 2010 में बना है, लेकिन पूर्वी यूपी के पांच जिलों में अंसारी बंधुओं के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। यह पांच जिले हैं गाजीपुर, मऊ, बलिया, वाराणसी और आजमगढ़। इनमें 20 विधानसभा सीटें मुस्‍लिम बहुल हैं। बात बाहुबली नेता मुख्‍तार अंसारी की हो या फिर अफजाल अंसारी और सिगब्तुल्‍ला अंसारी की, हर एक ने वोटरों के बीच एक पहचान कायम की हुई है। ऐसा भी नहीं है कि यह प्रभाव या पहचान सिर्फ बाहुबली नेता की छवि के दम पर है।
मुख्‍तार अंसारी के पिता मुख्‍तार अहमद अंसारी की शिक्षाविद् और राजनीतिज्ञ वाली शख्‍सियत भी इस प्रभाव की एक बड़ी वजह है। दूसरा एक कारण है जातिगत आधार। बताया जाता है कि पांचों जिलों में मुस्‍लिम समाज से ताल्‍लुक रखने वाली बुनकर जाति बड़ी संख्‍या में रहती है।
गाजीपुर में 9.89 प्रतिशत, मऊ में 19.04, बलिया में 6.57, वाराणसी में 14.88 और आजमगढ़ में कुल आबादी का 15.07 प्रतिशत मुसलमान रहते हैं। तीनों अंसारी भाई भी इसी बुनकर जाति से आते हैं। इसके साथ ही दूसरी मुस्‍लिम जातियों के बीच भी अंसारी बंधु स्‍वीकार किए जाते हैं। वहीं कौमी एकता दल के लिए सपा की दिलचस्‍पी के पीछे एक बड़ी वजह बसपा भी है। बसपा ने इस बार करीब 100 मुस्‍लिम उम्‍मीदवारों को टिकट दिया है। बसपा के इस दांव से सपा में बेचैनी है।
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