अखिलेश-शिवपाल की शीटो की रार खा गया गठबंधन की धार
BY Suryakant Pathak11 Nov 2016 3:26 AM GMT
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Suryakant Pathak11 Nov 2016 3:26 AM GMT
मुलायम सिंह के इस फैसले के पीछे भी चाचा-भतीजे की लड़ाई है, जिसकी वजह से सीटों पर सहमती नहीं बन पाई।
चाचा-भतीजे की लड़ाई सीटों के बंटवारे पर ही फंसी हुई है।
अखिलेश चाहते हैं कि सीटों के बंटवारे में उनकी राय से ही टिकट दिए जाए। इसके अलावा दागियों को टिकट से दूर रखा जाए। साथ ही उनके करीबियों को भी टिकट दिया जाए।
इसके उलट चुनाव जीतने के लिए शिवपाल यादव अपने हिसाब से टिकट बांटना चाहते हैं।
इसका उदाहरण तब मिला जब शिवपाल यादव ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही नौतनवा गोरखपुर से अमरमणि के बेटे अमनमणि को टिकट दिया था और अखिलेश के करीबी मेरठ के सरधना से अतुल प्रधान का टिकट काट दिया था।
सूत्र यह भी कहते हैं कि अगर अखिलेश समर्थकों को टिकट नहीं दिए गए तो अखिलेश समर्थक अपनी मनपसंद सीट से निर्दलीय भी उतर सकते हैं।
सूत्रों की मानें तो मुलायम गठबंधन के लिए राजी थे, लेकिन उनके सामने अभी सबसे बड़ी समस्या पारिवारिक कलह है।
महागठबंधन को लेकर चल रही कवायद सीटों के गणित से गड़बड़ा गई है।
चाचा शिवपाल और भतीजा अखिलेश गठबंधन को लेकर अपनी सीटों को कुर्बान नहीं करना चाहते हैं।
अखिलेश यादव ज्यादातर सपा की जीती हुई सीट चाहते हैं जिस पर वह अपनी पसंद के कैंडिडेट उतारना चाहते हैं। इन सीटों की गिनती 170 से 210 तक है।
जबकि शिवपाल भी जीती हुई सीटों पर अपना उम्मीदवार चाहते हैं। इसके अलावा सपा जिन सीटों पर दो नंबर पर रही है वो सीटें भी अपने पास ही रखना चाहती है।
वहीं, कांग्रेस की तरफ से प्रशांत किशोर 125 से 150 सीटें चाहते हैं जिसमें से 28 अपनी 2012 चुनाव में जीती हुई सीट भी शामिल है।
जबकि सपा कांग्रेस को सिर्फ 50 से 55 सीटें ही देना चाहती है, जिसमें कांग्रेस की जीती सीटों के अलावा वो भी शामिल हैं, जहां वह दूसरे नंबर पर आई है।
28 अक्टूबर से ही महागठबंधन के लिए प्रयास होना शुरू हुए थे जब शिवपाल रजत जयंती का निमंत्रण पत्र लेकर दिल्ली में अजीत सिंह से मिले थे। इसके अलावा रजत जयंती में आए नेताओं को भी निमंत्रण दिया गया था।
जेडीयू नेता केसी त्यागी ने शिवपाल और पीके की मुलाकात कराई थी।
इस पूरे मामले में मुलायम अपना बिखरता परिवार बचाना चाहते हैं, जो इतनी कोशिशों के बाद एक साथ खड़ा हो पाया है। वहीँ उन्होंने एक बार फिर 2019 के लिए राष्ट्रीय नेता बनने का मौका छोड़ दिया है।
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