अपनी पहचान खो रही डोली
BY Anonymous19 Dec 2021 5:44 AM GMT

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Anonymous19 Dec 2021 5:44 AM GMT
धुंधली से रह गई हैं यादें।
आधुनिकता के इस दौर में।।
अपनी पहचान खो रही डोली।
इस जगह ले लिया कुछ और है।
सुनने में शादियों मिलते हैं।
गीत डोली सजा के रखना।।
आयेंगे लेने गोरी......।
तुमको तुम्हारे सजना।।
वर्तमान में यह डोली सिर्फ।
गीत के बोल बन कर रह गई है।।
लेकिन आज इस प्रथा को।
महंगी गाड़ियों ने दखल दे गई है।
बारात के दिन रहता था।
गांव में जश्न का माहौल।।
एक ही चीज होती थी ख़ास।
डोली का होता था अहम मोल।।
पौ फटते ही होती थी विदाई।
बहन का पांव धोता था भाई।।
हमारी संस्कृति का यह।
विशेष था जो अंग।।
अब स्मृति में रह गई।
धूमिल यह जो प्रसंग।।
जिनका था यह पेशा।
कर लिए अब किनारा।।
डोली ही था एकमात्र।
जिनके जीने का सहारा।
अब ना शौक डोली का।
ना ही कहार की जरूरत।।
आज के पिया लगाते हैं।
बस फॉर्च्यूनर की जुगत।।
अभय सिंह। ...........
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