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उत्तर प्रदेश

आकलन में चूका प्रशासन...विकल्प पर विचार करें..

आकलन में चूका प्रशासन...विकल्प पर विचार करें..
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प्रेम शंकर मिश्र

वाराणसी। काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र... गंगाघाट से मैदागिन वाया चौक के बीच महज चार किलोमीटर का दायरा...। सड़क की चौड़ाई 25 से 30 फीट... यहीं काशी का सबसे पुरातन इलाका है... और इसी इलाके में स्थित हैं काशीपुराधिपति श्रीकाशी विश्वनाथ.. काशी के कोतवाल कालभैरव.. मृत्यु को हरण करने वाले महामृत्युंजय... और पूरी दुनिया में "अतुल्य भारत" की पहचान के रूप में विख्यात दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती..... महाकुंभ में प्रयागराज से लौटी आस्थावानों की अपार भीड़ काशी के इन्हीं चार बड़े तीर्थ के इर्द गिर्द सिमट कर रह गई है।

इसे भीड़ कहना शायद मुनासिब नहीं? यह स्वत स्फूर्त आस्थावान है जो अपने आराध्य शिव की एक झलक पाने के लिए 12 घंटे तक नंगे पांव खड़े हैं.... इनमें कोई 80 साल का बुजुर्ग है.. तो कोई पांच साल के बच्चे को गोद में या कंधे पर बिठाए महिला.... इनकी पीड़ा जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी कभी नहीं समझ सकते। खुद लक्जरी लाइफ जीने एवं "सब ठीक है" का रंगीन चश्मा लगाए अधिकारियों जनप्रतिनिधियों के लिए यह एक आयोजन हो सकता है लेकिन दो हजार किलोमीटर दूर महाराष्ट्र, तेलंगाना, केरल, उड़ीसा, असम, आंध्रा प्रदेश, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों से महाकुंभ स्नान कर "आस्था की गठरी" लेकर रोजाना लाखों लोग ट्रेन, बस और निजी वाहन से पहुंच रहे इन श्रद्धालुओं

की संख्या इतनी अत्यधिक भी हो सकती है इसका आकलन करने में स्थानीय प्रशासन चूक गया।

वैसे भी कुंभ स्नान के बाद काशी का रुख करने की परंपरा धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से गहरी है। कुंभ में स्नान जहां शरीर और आत्मा को पवित्र करने का माध्यम है, वही काशी विश्वनाथ के दर्शन को मोक्ष प्राप्ति का अंतिम चरण माना जाता है। प्रयागराज के संगम में जिस गंगा में स्नान कर भक्त आस्था की डुबकी लगाते हैं वहीं गंगा काशी में शिवलिंग के चरणों में जाकर श्रद्धालुओं के मोक्ष कामना को साकार करती हैं।

काशी से कुंभ का गहरा नाता रहा है। कुंभ में गंगा स्नान के बाद काशी विश्वनाथ पर गंगाजल चढ़ाने की यह पौराणिक परंपरा रही है यह प्रतीकात्मक रूप से आत्मा को शिव के साथ जोड़ने का कार्य करता है । गंगा घाट पर होने वाली भव्य आरती श्रद्धालुओं की भावनाओं को और भी प्रबल बना देती है। शिव और शक्ति का संगम काशी में ही है। काशी में विश्वनाथ का दर्शन भक्तों के लिए कुंभ के अनुभव का अंतिम और परम उद्देश्य होता है । इसलिए भी शिव को मोक्ष का का दाता माना जाता है और काशी में उनके निवास भक्तों को जीवन की पूर्णता का एहसास कराता है।

बीते छह माह से केंद्र और राज्य सरकार महाकुंभ के आयोजन को सफल बनाने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारी कर रही थी। खूब ब्रांडिग भी हुई। 40 करोड़ लोगों के पहुंचने का अनुमान पहले से ही लगाया जाता रहा। इस लिहाज से महाकुंभ के दौरान यदि 30 प्रतिशत लोग काशी पहुंचे तो यह संख्या 10 से 12 करोड़ के आसपास होगी। अब जिस सड़क पर अतिक्रमण हो। हजारों दुकानदार, कामगार, गद्दीदार, रेहड़ी, ठेला, फल कपड़ा वाले हों। काशीवासियों की अलमस्त जीवनशैली हो। निर्माणकार्य चल रहा हो। उस काशी में रोजाना लाखों की संख्या में पहुंच रहे आस्थावानों को संभालना अकेले प्रशासन के बूते की बात नहीं। प्रशासन सड़क पर डंडा फटकारने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा। जहां तहां गाड़ी खड़ी करके लोग बाबा दरबार पहुंच रहे। काशीवासियों के लिए यह नजारा पहली बार दिख रहा। दरवाजे पर किसकी गाड़ी खड़ी है पता नहीं। गलियां मुहल्ले सब ठसाठस हैं। अफसरों को समझ नहीं आ रहा कि आखिर इतनी भीड़ को कहा और किस स्थान पर रोकें। विश्वनाथ मंदिर जाने वाली हर गली, चौराहे पर बैरकेडिंग है। जो काशी "अतिथि देवों भव" को आत्मसात करती है और तीज त्यौहार पर भंडारा करती है उसी काशी के स्थानीय बाशिंदे पुलिस के रोकटोक से परेशान है।

अभी तो मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के पांच बड़े स्नान बाकी है। इसके बाद होली पर तमाम नागा संतों के अखाड़े काशी पहुंचते है। अलग अलग अखाड़ों की बाबा दरबार में पेशवाई निकलती है। यह भीड़ अभी अगले दो माह तक ऐसी ही रहने वाली है।

अभी भी वक्त है। प्रशासन वैकल्पिक तौर पर गंगा उस पार से विश्वनाथधाम तक पीपे का अस्थाई पुल बनवाने और स्टीमर चलवाने का इंतजाम करे। साथ ही सामनेघाट से राजघाट के बीच गंगा उस पार वाहनों को खड़े करने के लिए लोहे की चादर बालू को रेती पर लगाने पर गंभीरता पूर्वक सोचे। तभी भीड़ का दवाब शहर में कम हो पाएगा। अन्यथा काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में रहने वाले लोगों के साथ काशीवासियों को घरों में कैद रहने की मानसिक यंत्रणा झेलना होगा।

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