आचार्य अवधेशानंद गिरि ने कहा- इतने श्रद्धालु, इतनी विराटता... अब तो सनातन कुंभ कहिए

हम भारत के लोग भावनात्मक रूप में जीते हैं। जिस तरीके से श्रद्धालु इस महाकुंभ में आ रहे हैं, मुझे तो लगता है कि महाकुंभ भी इसके लिए छोटा शब्द है। इसे विराट, अनंत या फिर सनातन कुंभ कहना चाहिए। यह कहना है देश के सबसे बड़े पंच दशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि का।
इस देश में खेल का कुंभ, किसान का कुंभ, विद्यार्थियों का भी कुंभ लगता है। कुंभ का आशय विशालता से है। विराटता से है। हम भारत के लोग भावनात्मक रूप में जीते हैं। जिस तरीके से श्रद्धालु इस महाकुंभ में आ रहे हैं, मुझे तो लगता है कि महाकुंभ भी इसके लिए छोटा शब्द है। इसे विराट, अनंत या फिर सनातन कुंभ कहना चाहिए। यह कहना है देश के सबसे बड़े पंच दशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि का। महाकुंभ नगर के शिविर में आचार्य से बातचीत के अंश...
महाकुंभ को लेकर बड़ी भ्रांतियां हैं। कोई कुंभ कह रहा है, तो कोई महाकुंभ। 144 बाद के योग का भी जिक्र आता है। आप क्या मानते हैं?
कुंभ का आशय विशालता से है। विराटता से है। हम भारत के लोग हर चीज को भावनात्मक तरीके से जीते हैं। इस दृष्टि से तो हमने अर्द्धकुंभ को भी कुंभ कहा था। जब बहुत विशाल आयोजन होते हैं, तो ऐसे भावनात्मक शब्द कहे ही जाते हैं। हो सकता है 144 साल बाद कोई सुयोग बना हो। जिसके कारण महाकुंभ कहा गया। महाकुंभ में 50 करोड़ से अधिक लोग आ चुके हैं। इतने लोगों के लिए तो महाकुंभ भी छोटा शब्द है। इसे विराट कहें, अनंत कहें या सनातन कुंभ कहें।
50 करोड़ लोग स्नान कर चुके हैं, कैसे देखते हैं आप ?
हमारी चीजें सब अनंत हैं। सब अजेय हैं। प्राचीन हैं। हम लोग शाश्वत हैं। सनातन हैं। चिर काल से हैं। हमारे संस्कार पुरातन हैं। कुंभ आज का तो है नहीं, यह तो सतयुग के समय से है। जब समुद्र का मंथन हुआ और देवताओं और असुरों के बीच हुए युद्ध में अमृत की बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं, तब से कुंभ है। हमारे सनातन के प्रतिमान विराट और महनीय हैं। यह सनातन धर्म है कि हर कोई यहां चला आ रहा है।
कुंभ की स्वीकार्यता को आप कैसे देखते हैं ?
आप कल्पना करके देखो, इस महाकुंभ की कितनी स्वीकार्यता है। जो नहीं आ सके, वह भी इसके सहभागी हैं। कुंभ की विश्वव्यापी स्वीकार्यता है। यूनेस्को ने कुंभ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया है। इसलिए यह सिर्फ भारत का ही कुंभ नहीं है। यह मानवता का कुंभ है। मनुष्यों का इससे बड़ा मिलन कोई और नहीं हो सकता है, जो यहां होता है। और यह अब से नहीं, कब से हो रहा है। न जाति का बंधन है, न संप्रदाय का। कोई जाति नहीं पूछ रहा है। सामाजिक समरसता, अनेकता में एकता के दर्शन यहां हो रहे हैं। इसके लिए मैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद देता हूं कि उनके प्रयास से इतना अच्छा महाकुंभ संपन्न हो रहा है।
हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा चल रही है, क्या कहेंगे आप ?
प्रकृति और परमात्मा ने, नियंता और नियति ने, विधि और व्यवस्था ने अलग-अलग लोगों में अनेक क्षमताएं दी हैं। हमारा जीवन संभावनाओं से भरा है। अंतहीन संभावनाओं से भरा है। उन संभावनाओं को साकार करने के लिए जन्म से ही हमारे पास ऊर्जा, योग्यता, पात्रता और विचार हैं। ये सभी तत्व सफलता हासिल करने में मदद करते हैं। इसलिए जो अच्छी बातें हमारे पास हैं, उनका लाभ लेना सभी को सीखना चाहिए।
संगम स्नान के लिए पहले घर के बुजुर्ग आते थे, इस बार महाकुंभ में युवाओं की संख्या बहुत ज्यादा है। इस बदलाव को कैसे देखते हैं?
आज का युवा बेहद सचेत है। महाकुंभ में आए युवाओं में हमने सत्य को जानने की प्यास देखी है। इस कुंभ में न केवल भारतीयों में आकर्षण है, बल्कि विदेशों में भी इसको लेकर काफी आकर्षण है। इस बार विदेशी श्रद्धालुओं में यहां के योग, आयुर्वेद, उपनिषदों के प्रति उनका आकर्षण दिखा। इन स्थितियों को देखकर मैं ऐसा कह सकता हूं कि सनातन का जो सूर्य है, उसका प्रकाश, ओजस पूरे विश्व में फैल रहा है। युवा वर्ग जल, अग्नि, वायु, निहारिका-नक्षत्र हैं, उस संस्कृति का मर्म जानना चाहता है। एक ब्रह्म सर्वत्र विस्तृत है। यहां एकत्व दिखाई दे रहा है। युवा भारतीयों को इसके बारे में जानने की उत्कंठा हमने महाकुंभ में देखी है।