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उत्तर प्रदेश

गोरखपुर पहुंचे आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण, कहा- अपूर्व और विलक्षण है प्रयागराज महाकुंभ

गोरखपुर पहुंचे आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण, कहा- अपूर्व और विलक्षण है प्रयागराज महाकुंभ
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सुपरिचित संत, आध्यात्मिक विचारक एवं सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास धाम अयोध्या के महंत आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण ने प्रयागराज महाकुंभ 2025 को अपूर्व और विलक्षण बताते हुए कहा है कि दुनिया के इस सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन को व्यवस्था की दृष्टि से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस सुचारुता से सुनिश्चित किया वह अभिनंदनीय है। उन्होंने कहा कि हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि हमारे पास धर्मनिष्ठा से संपन्न नायक योगी आदित्यनाथ हैं।

आचार्य मिथिलेशनंदिनी शनिवार को महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़ के कला संकाय के तत्वावधान में ‘महाकुंभ 2025 : परम्परा, अनुष्ठान और महत्ता’ विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रयागराज महाकुंभ 2025 कई आयामों में अपूर्व है।

अतीत के कुंभ आयोजनों को देखें तो यह महाकुंभ में श्रद्धाज्वार अपूर्व है। इतनी बड़ी संख्या में समाज का इस महाकुंभ में आना और यहां की सुचारू व्यवस्था भी अपूर्व है। उन्होंने कहा कि पहले की सरकारों ने केंद्रीय कार्यक्रम मानकर कभी कुंभ को पुरस्कृत नहीं किया लेकिन यह ऐसा पहला कुंभ है, जिसमें मुख्यमंत्री ने चप्पे-चप्पे पर जाकर व्यवस्था की सुचारुता सुनिश्चित की।

मुख्यमंत्री के समर्पित प्रयास के चलते ही उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के रूप में इस धरती का सबसे बड़ा मेला आयोजित हुआ।

आध्यात्मिक और धार्मिक वैभव का वैश्विक अग्रदूत है उत्तर प्रदेश

आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण ने कहा कि उत्तर प्रदेश आध्यात्मिक और धार्मिक वैभव का वैश्विक अग्रदूत है और इसके मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। उन्होंने कहा कि अयोध्या, काशी और मथुरा के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती और यह तीनों महत्वपूर्ण स्थल उत्तर प्रदेश में है।

देश के अन्य राज्यों में तीर्थ हैं लेकिन तीर्थराज प्रयाग उत्तर प्रदेश में है। प्रयागराज में इस बार का महाकुंभ इसलिए भी विलक्षण है कि जहां पहले के कुंभ प्रश्नों और चिताओं के कुंभ होते थे, वहीं इस बार का महाकुंभ उत्तर का कुंभ है।

पहले कुंभ के आयोजनों में यह प्रश्न उठते थे या चिंताएं होती थीं कि अयोध्या में रामलला विराजमान हो पाएंगे क्या, कश्मीर से धारा 370 हट पाएगी क्या लेकिन इस बार के कुंभ में इन सभी सवालों के उत्तर पर विमर्श हो रहा है। केंद्र से उत्तर प्रदेश तक धर्मसत्ता अनुप्राणित जीवन की अवधारणा को समझने वाली सरकार के होने से यह संभव हुआ है।

शिव की तरह महाकुंभ से निकले विष को आत्मसात किया सीएम योगी ने

श्रीहनुमन्निवास धाम अयोध्या के महंत ने कहा कि प्रयागराज महाकुंभ को 1947 के बाद सबसे बड़ा आंदोलन या धार्मिक पुनर्जागरण कहा जाना चाहिए। 60 करोड लोग एक ही शहर की यात्रा पर हों, ऐसा पहली बार हुआ है। उन्होंने कहा कि कुछ व्यवस्थागत कठिनाइयां जरूर हुई लेकिन भारतीय चेतना दुर्घटना से कुंठित नहीं होती।

भारतीय चेतना महाभारत जैसे विशाल युद्ध में भी गीता जैसे ज्ञान अमृत को निकालने वाली है। आचार्य मिथिलेशनंदिनी ने कहा कि मंथन से अमृत निकालने में उससे निकलने वाला गरल (विष) भी पचाना पड़ता है। समुद्र मंथन से निकले गरल को महादेव शिव ने अपने कंठ में ग्रहण किया तो इस बार महाकुंभ के गरल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आत्मसात किया और देश-दुनिया ने इसे देखा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा ऐसा करने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।

गंगा को मात्र नदी खाने वाले दया के पात्र

आचार्य मिथिलेशनंदिनी ने कहा कि गंगा को मात्र नदी खाने वाले दया के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि विश्व को संकट या खतरा अज्ञ (अनपढ़), विज्ञ (ज्ञानी) से नहीं बल्कि कम जानने वालों से है। गंगा के जल के प्रदूषित होने की बात वही लोग कह रहे हैं जो ठीक से न जानने वाले हैं। उन्होंने कहा कि गंगा जी को लेकर विज्ञान का हौव्वा उपनिवेश की कुंठा से जनित अवधारणा है।

भारतपुरुष का विराट रूप दर्शन है महाकुंभ 2025

आचार्य मिथिलेशनंदिनी ने प्रयागराज महाकुंभ 2025 को भारतपुरुष का विराट रूप दर्शन बताया। उन्होंने कहा कि इस महाकुंभ ने सारे दुष्प्रचारों को दरकिनार कर यह दिखाया है कि भारत की पारंपरिकता और एकात्मकता की निष्ठा सर्वोपरि है।

यह ऐसा आयोजन है जहां संपूर्ण भारत भाषा, वेशभूषा, भोजन, क्षेत्र आदि सारे विभेद भूलकर एक साथ सोच रहा है। एक साथ आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि दुनिया में ऐसा कोई धर्म दर्शन नहीं है जहां मनुष्य, ईश्वर के समकक्ष माना जाता हो। जीव और ईश्वर साथ चल सकते हैं तो यह भारतीय चेतना का ही अमृत है। प्रयागराज महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा उत्सव है जहां एक भाव, एक विचार, एक लक्ष्य लेकर लोग एक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

मलिनता से मुक्त करती हैं मां गंगा

श्रीहनुमन्निवास धाम अयोध्या के महंत ने कहा कि मां गंगा मलिनता से मुक्त करती हैं। पतित से पतित व्यक्ति भी मां गंगा से अपनी शुद्धि की कामना करता है। उन्होंने कहा कि अन्य धार्मिक अवधारणाओं में जहां पाप करने वालों को उनके ही पाप में जलाने की बात है तो वहीं भारतीय चिंतन में यह कहा गया है कि यदि पाप की पराकाष्ठा वाला व्यक्ति भी आत्मग्लानि के भाव से मां गंगा में डुबकी लगा ले तो वह पाप मुक्त हो जाता है। उन्होंने बताया कि 10 हजार मुख्य तीर्थों और 60 करोड़ गौड़ तीर्थो का निवास प्रयागराज में है। संगम इस तीर्थराज का सिंहासन है और अक्षय वट इसका छत्र।

अपनी शुद्धि प्रमाणित करें गंगा की शुद्धि पर बोलने वाले

आचार्य मिथिलेशनंदिनी ने गंगा की शुद्धता पर प्रतिकूल टिप्पणी करने वाले लोगों को दो टूक सुनाते हुए कहा कि गंगा की शुद्धि पर बोलने वाले पहले अपनी शुद्धि प्रमाणित करें। उन्होंने कहा कि वास्तव में यह ऐसे और असंतोष से भरे लोग हैं जो मीडिया की नजर में आपदा में अपना अवसर खोज रहे हैं।

पौराणिक काल मे अमृत की चाह में कुछ और चाटकर दो भाग में अपनी जीभ कराने वाले सर्पों की भांति ऐसे लोगों की जीभ भी मीडिया में लपलपा रही है। उन्होंने कहा कि यह गंगा की पावनता है कि घर पर आरओ वाटर पीने वाले लोग भी महाकुंभ स्नान के बाद बोतल में भरकर गंगाजल अपने घर ला रहे हैं। मां गंगा सबको शुद्ध करने वाली पावन धारा हैं। उनकी पवित्रता पर बोलने वालों ने भारतीय परंपराओं को मलिन करने का काम किया है।

आस्था का पुनर्जागरण काल है प्रयागराज महाकुंभ

आचार्य मिथिलेश नंदनी शरण ने कहा कि 2025 में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ आस्था का पुनर्जागरण काल है और इतिहास इसे इसी रूप में दर्ज करेगा। उन्होंने कहा कि परंपरा, अनुष्ठान के रूप में महाकुंभ सदैव बना रहेगा। प्रयागराज महाकुंभ ने 60 करोड लोगों को एकात्मक कर दिया।

इस महाकुंभ ने बताया कि भारतीय हैं तो हम अविच्छिन्न आस्था की सदानीरा में डुबकी लगाएंगे। इस महाकुंभ ने बताया कि भारत एकात्मक होकर जीता है। इस दिव्य और भव्य आयोजन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जितना अभिनंदन किया जाए वह कम है। ऐसे कुंभ की कल्पना नहीं की जा सकती थी। उन्होंने कहा कि इस आयोजन के जरिए सनातन धर्म का मान पूरे विश्व में बढ़ गया है और यही कई लोगों के लिए चिंता का विषय भी है।

कुंभ अनेकता में एकता का प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम : प्रो. रेड्डी

महाकुंभ पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आयुर्वेद संकाय के आचार्य प्रो. के. रामचंद्र रेड्डी ने कहा कि महाकुंभ अनेकता में एकता का एक प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम है। उन्होंने महाकुंभ को आयुर्वेद और ज्योतिष ग्रह विज्ञान की दृष्टि से समझाते हुए कहा कि चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में गंगा के प्रवाह का उपचारीय उल्लेख मिलता है।

कुंभ का आयोजन ग्रहों विशेष युति परिस्थितियों में होता है। बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा के एक सर्किल में आने का प्रभाव धरती और मानव जीवन पर काफी महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं उनसे मानव शरीर के लिए महत्वपूर्ण विटामिन डी की प्राप्ति होती है प्रोफेसर रेड्डी ने कहा कि कुंभ स्नान के बाद सूर्य नमस्कार से मानव स्वास्थ्य को और सुदृढ़ किया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के एक अन्य विशिष्ट अतिथि त्रिभुवन विश्वविद्यालय नेपाल में संस्कृत विभाग के आचार्य डॉ. सुबोध कुमार शुक्ल ने कहा कि प्रयागराज महाकुंभ में गंगा परंपरा, यमुना अनुष्ठान और सरस्वती महत्ता के रूप में प्रवाहित होती हैं।

उन्होंने कहा कि महाकुंभ के संबंध में धर्मग्रंथो में विस्तार से वर्णन मिलता है। भूमंडल के मनुष्य मात्र के पाप को दूर करना ही कुंभ की उत्पत्ति का हेतु है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ की परंपरा उच्चतम और श्रेष्ठ परंपरा है। प्रयागराज को प्राकृतिक यज्ञ वाला स्थान बताते हुए उन्होंने यहां गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम को ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों के एकाकार स्वरूप जैसा बताया।

उन्होंने कहा कि महाकुंभ हमें अशुद्धि का शमन करने, मस्तिष्क में ज्ञान का प्रकाश लाने और विवेक जागृत करने अर्थात कर्तव्यबोध की प्रेरणा देता है। उन्होंने इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन को सारगर्भित और सामूहिक बताते हुए महाविद्यालय परिवार के प्रति आभार भी व्यक्त किया।

वैचारिक महाकुंभ का आयोजन है अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी : डॉ. प्रदीप राव

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में आए सभी अभ्यागतों का स्वागत करते हुए आयोजन समिति के अध्यक्ष एवं महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़ के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी वैचारिक महाकुंभ है। यह एक ऐसा आयोजन है जिसमें ऐसे लोग भी कुंभ की भावना से ओतप्रोत होकर नहा लेंगे जो किंचित कारणों से प्रयागराज महाकुंभ नहीं जा सके हैं।

उन्होंने कहा कि प्रयागराज महाकुंभ पर दुनिया अध्ययन कर रही है। कोई भी इससे अछूता नहीं रहा है। अनपढ़, पढ़े लिखे मूर्ख, विद्वान, वैज्ञानिक, आलोचक, पक्ष, निष्पक्ष सभी अपने-अपने तरीके से इसका अध्ययन और विमर्श कर रहे हैं। डॉ. राव ने कहा कि हमारे जीवन में रोज महाकुंभ का मंथन चलता है और इस मंथन में विष और अमृत दोनों निकलता है।

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथिद्वय ने महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़ के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव द्वारा संपादित पुस्तक ‘सनातन परंपरा का महापर्व : महाकुंभ’ का विमोचन किया।

संगोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन तथा मां सरस्वती, मां भारती, गुरु गोरखनाथ, महाराणा प्रताप, महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ के चित्रों पर पुष्पार्चन से हुआ। संगोष्ठी का संचालन हरिकेश यादव ने किया इस अवसर पर परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश राजेश्वर शुक्ला समेत कई गणमान्य नागरिक, अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रतिभागी, महाविद्यालय परिवार के शिक्षक, कर्मचारी और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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