महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? यहां पढ़ें इस त्यौहार से जुड़ी पौराणिक कथा
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भगवान शिव के भक्त पूरे साल बड़ी बेसब्री के साथ महाशिवरात्रि का इंतजार करते हैं। भोले के भक्तों के लिए यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन पूरे देश में धूमधाम के साथ शिवजी की बारात निकाली जाती है। इतना ही नहीं मंदिर और शिवालयों में भी महाशिवरात्रि की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। महाशिवरात्रि के मौके पर कई मंदिरों में महादेव का विशेष श्रृंगार किया जाता है। महाशिवरात्रि का व्रत कर विधिपूर्वक पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है। वहीं कुंवारी कन्याओं के सुयोग्य और मनचाहा जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। तो आइए अब जानते हैं कि आखिर महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसके पीछे की मान्यताएं क्या हैं।
महाशिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती के साथ हुआ था। दक्ष महादेव को पसंद नहीं करते थे इसलिए उन्होंने शिव जी को अपने दामाद के रूप में कभी नहीं स्वीकारा। एक बार दक्ष प्रजापति ने विराट यज्ञ का आयोजन करवाया जिसमें उन्होंने भगवान शिव और माता सती को छोड़कर हर किसी को निमंत्रण दिया। इस बात की जानकारी जब माता सती को लगी तो वह बहुत दुखी हुई लेकिन फिर भी वहां जाने का निर्णय ले लिया। महादेव के समझाने के बाद भी सती जी नहीं रुकी और यज्ञ में शामिल होने के लिए अपने पिता के घर पहुंच गई। सती को देख प्रजापति दक्ष अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान शिव का अपमान करना शुरू कर दिया। भगवान शिव के लिए दक्ष द्वारा कहे गए वाक्य और अपमान को माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में खुद को भस्म कर लिया।
इसके बाद कई हजारों साल बाद देवी सती का दूसरा जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ। पर्वतराज के घर जन्म लेने की वजह से उनका नाम पार्वती पड़ा। शिवजी से विवाह करने के लिए माता पार्वती को काफी कठोर तपस्या करनी पड़ी थी। कहते हैं कि उनके तप को लेकर चारों तरफ हाहाकर मचा हुआ था। मां पार्वती ने अन्न, जल त्याग कर वर्षों भोलेनाथ की उपासना की। इस दौरान वह रोजाना शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाती थी, जिससे भोले भंडारी उनके तप से प्रसन्न हो। आखिर में देवी पार्वती के तप और निश्छल प्रेम से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी संगिनी के रूप में स्वीकार किया। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा था कि वह अब तक वैराग्य जीवन जीते आए हैं और उनके पास अन्य देवताओं की तरह कोई राजमहल नहीं है, इसलिए वह उन्हें जेवरात, महल नहीं दे पाएंगे। तब माता पार्वती ने केवल शिवजी का साथ मांगा और शादी बाद खुशी-खुशी कैलाश पर्वत पर रहने लगी। आज शिवजी और माता पार्वती का वैवाहिक जीवन सबसे खुशहाल है और हर कोई उनके जैसा संपन्न परिवार की चाह रखता है।