वक्फ बिल पर मचे घमासान को आसान भाषा में समझें

वक्फ संशोधन बिल कुछ ही दिनों में संसद में पेश होगा. इससे पहले बिल को लेकर घमासान मचा हुआ है. विपक्ष सरकार पर हमलावर है. तो हिंदू संगठनों को कहना है कि विधेयक का विरोध करने वाले संगठनों के खिलाफ कार्रवाई हो. इन सबके बीच आइए जानते हैं कि असल मामला क्या है? क्या हैं वो शक्तियां जो वक्फ बोर्ड को ताकतवर बनाती हैं? साथ नए बिल में डीएम को क्या पावर मिलने वाली? सबसे पहले बात करते हैं सत्यापन प्रोसेस की, जो नए बिल के तहत डीएम करेंगे. डीएम अगर प्रोसेस करेंगे तो जाहिर सी बात अभी तक कौन करता था?
अभी तक सत्यापन की कोई जरूरत नहीं है. जो वक्फ ने बोल दिया कि ये संपत्ति जो है संबंधित व्यक्ति ने हमें दान की थी और ये वक्फ बोर्ड की संपत्ति है तो ऐसी स्थिति में आप जो संबंधित सामने वाला व्यक्ति है जो ये दावा कर रहा है कि नहीं इसके कागजात हमारे पास हैं तो ऐसी स्थिति में फिर वो मामला ट्रिब्यूनल के समक्ष जाता था और ट्रिब्यूनल के हाथ भी बंधे हुए होते थे क्योंकि उसमें ये जरूरी नहीं है कि जो कागज सामने वाले की तरफ से पेश किया जा रहा है उसे मान लिया जाए. क्योंकि उसके पहले का दावा कर दिया गया.
एक उदाहरण से समझते हैं
उदाहरण के तौर पर 1995 में एक जमीन किसी के पास थी. अचानक भूकंप आया या कोई आपदा आ गई, इसके बाद किसी तरह से वो संपत्ति किसी और को सरकार ने अलॉट कर दी. ऐसी स्थिति में ये बिल्कुल जायज है कि वक्फ ये दावा करता है लेकिन अब एक व्यक्ति जो खरीद कर चुका है और अपनी सारी व्यवस्था कर चुका है तो कोई भी उसके पास उपचार नहीं है कि वो कह दे सरकार से कि नहीं इनको कहीं और जमीन दे दें या कोई व्यवस्था कर दें.
यही वजह है कि इस बार सबसे ज्यादा अगर ख्याल रखा गया है तो यही कि किसी भी तरीके से संतुलन कायम किया जा सके. वक्फ अधिनियम के जिस सेक्शन-40 पर बहस छिड़ी हुई है, इसके तहत जो बोर्ड को रीज़न टू बिलीव की शक्ति मिल जाती है. मतलब बिलीव पर आप जो है सारा जमीन पर दावा कर सकते हैं. अगर बोर्ड का मानना है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो वो खुद से जांच कर सकता है. मतलब आप दावा भी कर रहे हैं, आप खुद से जांच भी कर रहे हैं. ये तो असीमित शक्ति हुई ना?
अपना हक साबित करना चुनौती
मान लीजिए तीन-चार लोगों को ये शक्ति मिल जाती है कि हिंदू लॉ के तहत कि किसी भी जगह मंदिर होने का या मंदिर की संपत्ति होने का दावा कर सकते हैं. साथ ही ये भी शक्ति मिल जाए कि जो उसका सत्यापन होगा, वो भी हम ही करेंगे. ऐसी स्थिति में सामने वाले के पास तो उपचार होगा ही नहीं उसको साबित करना होगा कि उसकी जमीन है और वो भी जिसने दावा किया है वहां पर जाकर करना होगा.
अगर बोर्ड का मानना है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो वो खुद से जांच कर सकती है और वक्फ होने का दावा पेश कर सकती है. अगर उस संपत्ति पर कोई रह रहा है तो वो अपनी और अपनी आपत्ति को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास दर्ज करा सकता है. ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. मगर ये प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है. उस व्यक्ति के लिए जिसके पास जमीन के कागज हैं.
असीमित शक्ति का प्रभाव
असीमित शक्ति होगी तो जाहिर सी बात है कि उसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है. तो ऐसी स्थिति में सामने वाले के पास क्या उपचार है और उसकी प्रक्रिया इतनी जटिल हो जाती है कि अगर कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है तो हमेशा वक्फ ही रहती है. फिर उस पर कोई विवाद सामने भले ही आए लेकिन ऐसे विवादों से सरकार भी बचने की कोशिश करती है. सरकार भी उस व्यक्ति का क्यों साथ देगी जो एक अकेला खड़ा हुआ है और ये कह रहा है कि नहीं ये जमीन हमने खरीदी थी और वक्फ ये दावा कर दे कि नहीं अमुक समय में ये जमीन वक्फ की संपत्ति थी तो ऐसे में कोई खरीद-फरोख्त मायने नहीं रखती.
उसके बाद ट्रिब्यूनल जाइए, आप हाई कोर्ट जाइए, सुप्रीम कोर्ट जाइए, आप चलते रहिए, लिटिगेशन करते रहिए तो कब्जा किसका होगा? वक्फ का कब्जा होगा क्योंकि उसके पास तो पूरा बोर्ड है, शक्तियां हैं, विधायक हैं, सांसद हैं, मुतवल्ली हैं. ये सारी चीजें ध्यान में रखते हुए सरकार ने ये प्रयास किया है कि इस मामले में किसी भी तरीके से संतुलन कायम किया जा सके और यही वजह है कि संशोधन विधेयक लेकर के आई है. 1995 का जो विधेयक था उसकी जो त्रुटियां थीं या कह दें कमियां थीं. उन कमियों को दूर करने का प्रयास ये किया गया है.