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उत्तर प्रदेश

श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित गजेंद्र मोक्ष की कथा

श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित गजेंद्र मोक्ष की कथा
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बस्ती : भगवान अपने इस संसार रूपी उद्यान की रक्षा उसी प्रकार करते हैं जैसे एक माली अपने बगीचे की देखभाल करता है। यह संसार भगवान की सृष्टि है, और वे समय-समय पर इसकी रक्षा व संतुलन बनाए रखने के लिए अवतार धारण करते हैं। भगवान के स्मरण करने मात्र से सभी पाप कट जाते हैं। प्रसंग अनुसार अजामिल ने अंतिम समय में पुत्र के बहाने नारायण नाम उच्चारण किया परिणाम भगवत धाम की प्राप्ति हुई। प्रह्लाद ने अपने सत्संग उपदेश एवं करुणा से सभी दैत्यों के कल्याण का मार्ग प्रसस्त किया।

गजेंद्र मोक्ष समुद्र मंथन एवं मत्स्य अवतार की कथा सार गर्भित ढंग से सुनाईं।

मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के दस अवतारों (दशावतार) में से पहला अवतार है। यह अवतार प्रलय के समय राजा सत्यव्रत (जो आगे चलकर वैवस्वत मनु बने) की रक्षा के लिए हुआ था।

एक बार सत्यव्रत राजा नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उनके कमंडल में एक छोटी मछली आई। राजा ने उसे जलाशय में छोड़ दिया, लेकिन वह लगातार बढ़ती गई। अंत में वह विशालकाय हो गई और राजा को ज्ञात हुआ कि यह स्वयं भगवान विष्णु हैं।

भगवान मत्स्य ने राजा को बताया कि शीघ्र ही प्रलय आने वाला है और एक महान जलप्रलय में पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। उन्होंने राजा को सप्तर्षियों और जीवों सहित एक विशाल नौका में सवार होकर बचने का आदेश दिया। भगवान मत्स्य ने उस नौका को वासुकि नाग से बाँधकर स्वयं समुद्र में खींचा और प्रलय समाप्त होने पर वेदों का उद्धार किया।

सूर्यवंश में प्रभु श्री राम के चरित्र का वर्णन एवं चंद्रवंश में भगवान श्री कृष्ण के पावन प्रकट्योत्स्व की कथा को श्रोताओं ने पूरे भाव से सुना। भगवान भक्तों की रक्षा के लिए निर्गुण से सगुण, निराकार से सरकार, अंतरंग से बहिरंग होकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।कथा के मध्य उल्लास से भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाया गया। श्रोताओं सजीव झांकी का दर्शन कर सोहर मंगल बधाइयां पंडाल गुंजयमान हो उठा।

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