सीबीएसई बनाम आईबी बोर्ड: एक भारतीय गुरुकुल प्रणाली की दृष्टि से तुलना

सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) और आईबी (इंटरनेशनल बैकलॉरिएट) बोर्ड की तुलना भारतीय गुरुकुल प्रणाली के दृष्टिकोण से करने के लिए हमें तीनों की विशेषताओं, शिक्षण पद्धति, मूल्य-आधारित शिक्षा और समग्र विकास पर ध्यान देना होगा। गुरुकुल प्रणाली प्राचीन भारतीय शिक्षा का आधार थी, जो ज्ञान, नैतिकता, प्रकृति के साथ सामंजस्य, और समग्र विकास पर केंद्रित थी।
लेखक: प्रकाश पांडेय
भारत में शिक्षा प्रणाली का स्वरूप समय के साथ बदलता रहा है। एक समय था जब भारत की गुरुकुल प्रणाली विश्व में श्रेष्ठ मानी जाती थी – जहाँ ज्ञान केवल किताबी नहीं, बल्कि जीवन से जुड़ा, व्यावहारिक और अनुभवात्मक होता था। आज के समय में जब हम सीबीएसई (CBSE) और आईबी (IB) बोर्ड की तुलना करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि आईबी बोर्ड कहीं न कहीं उस प्राचीन गुरुकुल परंपरा के अधिक समीप है, जबकि सीबीएसई ब्रिटिश औपनिवेशिक शैक्षिक ढांचे से प्रेरित प्रणाली पर आधारित है।
सीबीएसई: एक पुरानी ब्रिटिश शासन से प्रेरित प्रणाली
सीबीएसई की स्थापना औपनिवेशिक युग के बाद हुई थी, परंतु इसकी संरचना और उद्देश्य उस ब्रिटिश मॉडल से मेल खाते हैं जिसे औपनिवेशिक शासन ने भारत में लागू किया था। इस मॉडल का मुख्य उद्देश्य था क्लर्क, बाबू और प्रशासनिक कर्मचारी तैयार करना – जो आदेशों का पालन करें, न कि स्वतंत्र रूप से सोचें या प्रश्न पूछें।
सीबीएसई प्रणाली मुख्यतः परीक्षा आधारित है, जिसमें अंक और रैंक प्राथमिकता रखते हैं। बच्चों को एक निश्चित सिलेबस के अंतर्गत पढ़ाया जाता है और उनकी योग्यता को अंकों से मापा जाता है। रचनात्मकता, जीवन कौशल, सामाजिक भावनाएं और आलोचनात्मक सोच जैसे पहलू अक्सर उपेक्षित रह जाते हैं।
आईबी बोर्ड: गुरुकुल परंपरा की आधुनिक झलक
आईबी (International Baccalaureate) बोर्ड का दृष्टिकोण व्यापक और बहुआयामी है। इसमें केवल किताबी ज्ञान पर ध्यान नहीं दिया जाता, बल्कि विद्यार्थियों को अपने चारों ओर की दुनिया को समझने, सवाल पूछने, टीम वर्क करने और समाज में योगदान देने के लिए तैयार किया जाता है। यह वही सिद्धांत है, जो हमारे गुरुकुल सिस्टम में निहित था – गुरु और शिष्य के बीच व्यक्तिगत संवाद, परियोजनाओं पर आधारित शिक्षण, व्यावहारिक अनुभव और समाज के प्रति उत्तरदायित्व।
आईबी की कक्षाओं में चर्चा, रिसर्च, प्रेजेंटेशन, और अनुभवजन्य शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाता है। यह प्रणाली विद्यार्थियों को न केवल परीक्षा पास करने योग्य बनाती है, बल्कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करती है।
ज्ञान साझा करने की संस्कृति
गुरुकुल प्रणाली में ‘ज्ञान’ को केवल शिक्षक से शिष्य तक पहुँचाने की प्रक्रिया नहीं माना जाता था, बल्कि उसे साझा करने, प्रयोग करने और दूसरों को सिखाने की प्रक्रिया के रूप में देखा जाता था। आईबी बोर्ड की शिक्षा प्रणाली में भी ‘Collaborative Learning’ और ‘Inquiry-Based Learning’ पर जोर दिया जाता है। विद्यार्थी अपनी राय रखते हैं, एक-दूसरे से सीखते हैं और समूहों में मिलकर कार्य करते हैं।
जहाँ एक ओर सीबीएसई प्रणाली अभी भी उस औपनिवेशिक सोच से पूर्णतः मुक्त नहीं हो पाई है, वहीं आईबी बोर्ड ने भारतीय गुरुकुल की मूल आत्मा – संपूर्ण विकास, ज्ञान की व्यावहारिकता और नैतिकता – को आधुनिक रूप में अपनाया है।
आज समय की माँग है कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली को फिर से आत्मनिरीक्षण करें। यदि हम अपने बच्चों को सिर्फ परीक्षा पास करने के लिए नहीं, बल्कि जीवन में सफल, आत्मनिर्भर और संवेदनशील नागरिक बनाना चाहते हैं, तो गुरुकुल की शिक्षा पद्धति को समझना और उसे आधुनिक संदर्भों में लागू करना अत्यंत आवश्यक है।