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उत्तर प्रदेश

आतंकियों ने कैसे दिया पहलगाम हमले को अंजाम? बाल-बाल बचे पर्यटक ने बताई मौत के तांडव की अनसुनी कहानी

आतंकियों ने कैसे दिया पहलगाम हमले को अंजाम? बाल-बाल बचे पर्यटक ने बताई मौत के तांडव की अनसुनी कहानी
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नई दिल्ली। पहलगाम आतंकी हमले को आज 5 दिन बीत चुके हैं, लेकिन इसके जख्म अभी तक हरे हैं। बैसरन घाटी में परिजनों को खोने के बाद कई परिवारों में मातम का माहौल है, तो कई लोगों ने मौत के इस मंजर के बेहद करीब से देखा है। ऐसे ही एक शख्स ने सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती सुनाई है।

बैरसन घाटी में तकरीबन 2:30 बजे जब आतंकियों ने पर्यटकों पर हमला बोला, तो वहां सेना का एक अधिकारी भी मौजूद था। परिवार के साथ छुट्टियां मनाने पहलगाम पहुंचे इस अधिकारी ने 30-40 पर्यटकों की जान बचाई।

सोशल मीडिया पर शेयर किया पोस्ट

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रसन्न कुमार भट्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दावा किया है कि आतंकी हमले के दौरान वो भी पहलगाम की बैसरन घाटी में मौजूद थे। प्रसन्न अपनी पत्नी, भाई और भाभी के साथ श्रीनगर और फिर पहलगाम की यात्रा पर गए थे। प्रसन्न ने बताया कि उनके भाई सेना में अधिकारी हैं, जिनकी सूझबूझ से 30-40 लोगों की जान बची है।

प्रसन्न के अनुसार,

22 अप्रैल की दोपहर 12:00 हम पहलगाम पहुंचे। वहां से बैसरन घाटी के लिए घोड़ा किया और 1:35 बजे हम बैसरन घाटी पहुंच गए। बैसरन घाटी तक पहुंचने का रास्ता काफी उबड़-खाबड़ और पथरीला था। पूरी घाटी चारों तरफ से पाइन के पेड़ों से घिरी थी। हम मुख्य द्वार से अंदर घुसे और घाटी की खूबसूरती को निहारते हुए चाय का आनंद लिया। 2 बजे के आसपास हम उठे और मुख्य द्वार की उल्टी तरफ चल दिए।

AK-47 की आवाज से कांपी घाटी

प्रसन्न ने बताया कि, हम मुख्य द्वार से सिर्फ 400 मीटर की दूरी पर थे, तभी हमने गोली की आवाज सुनी। लगभग 2:25 का समय था। पूरी घाटी में सन्नाटा पसर गया। किसी को कुछ समझ नहीं आया। दूर खड़े लोग अभी भी छुट्टियों का मजा ले रहे थे। हालांकि मेरे आर्मी ऑफिसर भाई ने तुरंत इस आवाज को पहचान लिया। उसने कहा यह AK-47 की आवाज है। यहां आतंकी हमला हो गया है।

प्रसन्न ने आगे लिखा -

हम जल्दी से भागकर एक टॉयलेट के पीछे छिप गए। हमने देखा कि मुख्य द्वार के पास 2 लाशें पड़ी हैं। घाटी में मौजूद पर्यटकों में भगदड़ मच गई। सभी घाटी से भागने की कोशिश करने लगे। आश्चर्य तो तब हुआ जब पता चला कि पूरी घाटी के चारों तरफ फेंसिंग हुई है और वहां से बाहर निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता है, वो है मुख्य द्वार, जहां आतंकी पहले से मौजूद थे। लोगों को गेट की तरफ बढ़ता देखकर उन्होंने सभी को धर दबोचा।

कैसे बची जान?

प्रसन्न के अनुसार, उनके भाई ने सभी को मुख्य द्वार से दूर पीछे की तरफ चलने के लिए कहा। हमारे आसपास लगभग 30-40 पर्यटक अपनी जान बचाकर छिपे थे। तभी हमने देखा फेंसिंग के पास एक पाइप गई थी, उस जगह पर फेंसिंग थोड़ी सी खुली थी। मेरे भाई ने सभी को फेंसिंग के नीचे से उस पार जाने के लिए कहा। सारे पर्यटक एक-एक करके फेंसिंग पार कर गए। नीचे जाने का रास्ता काफी मटमैला, फिसलन भरा था। कई पर्यटक वहां गिर भी गए, लेकिन सभी जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर वहां से भागे और आगे जाकर पेड़ों के पीछे छिप गए।

जान बचाने के लिए पेड़ों में छिपे

प्रसन्न ने अपनी पत्नी के साथ एक तस्वीर भी शेयर की है, जिसमें वो पेड़ों में छिपे दिखाई दे रहे हैं। प्रसन्न ने कहा कि "हमें नहीं पता वो जगह कितनी सुरक्षित थी। हमें समझ नहीं आ रहा था कि कुछ देर यहीं छिपे रहें या फिर यहां से भी जान बचाकर भागें। मेरे भाई ने 2:45 पर श्रीनगर स्थित आर्मी हेडक्वाटर पर फोन किया और इस घटना की जानकारी दी। हम छिपे थे, तभी आसमान में हेलीकॉप्टर उड़ते दिखे और हमने सेना के जवानों के देखा। तब हमारे अंदर उम्मीद जगी कि अब हम सब सुरक्षित हैं।

26 पर्यटकों की गई थी जान

बता दें कि 22 अप्रैल की दोपहर आतंकियों ने सेना की वर्दी में बैसरन घाटी पर हमला कर दिया। इस दौरान 25 भारतीय पर्यटक और 1 नेपाली नागरिक को गोली मार दी गई। इस घटना से पूरे देश में सनसनी फैल गई है। हमले के विरोध में भारत सरकार ने पाकिस्तान से सारे रिश्ते खत्म कर दिए। साथ ही सिंधु नदी जल समझौते को भी रद कर दिया गया है।

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